Sahityakar
Sahityakar

साहित्यकार

( Sahityakar ) 

 

जीता है जो औरों की खातिर
साहित्यकार वही कहलाता है
करता नही प्रहार गलत पर खंजर से
लेखन से ही वह युगदृष्टा बन जाता है

साहित्य नही केवल शब्दों का संचय
यह तो विष और अमृत दोनो का समन्वय
आवश्यकता होती है जब जैसे
साहित्य का होता है सृजन तब तैसे

कलम चलाता जो निज हित मे
वह भला साहित्य समझ ही कहां पता है
चाहे जो केवल छपना या सम्मान
वह तो कोल्हू का बैल बना रह जाता है

जो कर दे रक्त संचालित जमे लहू मे भी
जो टूटे कर मे भी खड़ग थमा दे
जो मृत जीवन में भर दे प्राण भविष्य का
वही है लेखक सच्चा साहित्य में

बलिदानी हो जाते हैं शहीद मगर
रहती अमर लेखनी युगों युगों तक
लिखने वाले लिखकर चले गए
बने दीप स्तंभ सा वे जीवित रह गए

 

मोहन तिवारी

( मुंबई )

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