Samajhdar Kaun
Samajhdar Kaun

समझदार कौन

( Samajhdar kaun )

 

लहू लुहान पैरों का दर्द
हाथों मे पड़े छाले
माथे से टपकती स्वेद की बूंदे
धौकनी सी धड़कती छाती का हिसाब
शायद ईश्वर की किताब मे भी नही
औलादें तो अभी व्यस्त हैं
अपनी ही औलादों को खुश रखने मे…

औलादों ने शायद
छोड़ दिया है खुद को की किसी की औलाद होना
यह कहकर की
मम्मी डैडी ने तो सिर्फ
अपना फर्ज ही निभाया है हमारी तरह….

कौन कुछ करता नही औलाद के खातिर
इसमें बदले की नीयत नही
प्रेम का छिपा संसार होता है
उम्मीदें तो स्वयं को कमजोर समझने का बहाना है
आदमी को वर्तमान ही नही
भविष्य मे भी जीना होता है….

जिन्होंने समझा जमाने को
समझाया भी जमाने को
बेचारे ! आज वे ही समझ नही पा रहे की
समझदार वे रहे या जमाना ?

मोहन तिवारी

 ( मुंबई )

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