समझदारी

( Samajhdari )

 

यह संभव ही नहीं कि लोग
मिले आपसे पहले की तरह ही
उनका काम निकल जाने के बाद भी
रहे नहीं संबंध अब पहले जैसे

आपकी अपेक्षाएं और विश्वास ही
कष्ट अधिक देते हैं
उम्मीदों का दौर अब खत्म हुआ
अपने पैरों को मजबूत आप ही बनाए रखें

भरोसा दिलाते हैं ज्यादा वे ही
जो आप पर भरोसा रखते ही नहीं
उन्हें तो सिर्फ आपसे ही
मिल जाने का भरोसा रहता है

अधिक समझदार होते हैं वह लोग
जो आपको समझदार कहते हैं
किंतु ,वे मानते नहीं आपको
आपकी मूर्खता में ही उनकी समझदारी है

रोशनी के एक रंग के भीतर ही
छुपे रहते हैं सात रंग और
उनकी पहचान कर लेने में ही
आपकी ही समझदारी है

 

मोहन तिवारी

( मुंबई )

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