सँभलना जो सिखातें हैं
सँभलना जो सिखातें हैं
सँभलना जो सिखातें हैं यहाँ बापू मिले मुझको ।
बिठाकर काँध पर घूमें वही चाचू मिले मुझको ।।१
जहाँ में ज्ञान सच्चा जो सिखाये सीख लेता हूँ ।
मुझे जो राह पे लाये वही अब गुरु मिले मुझको ।।२
तमन्ना आखिरी अब यह कहीं मैं तीर्थ पे जाऊँ ।
वहाँ भगवान के ही रूप में साधू मिले मुझको ।।३
बहुत ही द्वंद्व करता आज आत्मा से सुनो अपनी ।
दिखाई जो नही देता उसी की बू मिले मुझको ।।४
कभी जो बाग में बैठे कोयलिया खूब गाती थी ।
लगाता बाग मैं हूँ खूब की अब कू मिले मुझको ।।५
कभी देखा इधर मुड़कर खत्म क्यों हो रहे रिश्ते ।
चलो मिलकर सँभाले हम कि फिर नानू मिले मुझको।।६
जगाती थी हमें पहले प्रखर आकर जो आँगन में ।
वही चिडियों कि चूँ चूँ फिर दुवाएँ दूँ मिले मुझको ।।७
महेन्द्र सिंह प्रखर
( बाराबंकी )