संजय जैन की कविताएं | Sanjay Jain Poetry

जिंदगी के रंग

दास्ताने ए जिंदगी की
वक्त ने बदल दी धीरे-धीरे।
आशियाना मिटा दिया है
वक्त ने देखो धीरे-धीरे।
थी मोहब्बत जिससे हमें
वक्त ने भूला दिया धीरे-धीरे।
वक्त को हम समझ न सके
इसलिए भूला दिया धीरे धीरे।।

वक्त के चलते तुम देखो
कितने बाग उजड़ गये।
वक्त के कारण ही देखो
जिंदगी के रंग उड़ गये।
कर सके न कद्र वक्त की
इसलिए बेसहारा हो गये।
खो दिया सम्मान अपना
वक्त के चक्र में फसके।।

वक्त ने दिखा दिया
अपना प्रभाव सभी को।
पाना है ख्याति तुम्हें तो
कद्र करना सीख लो।
जिंदगी के पहलूओं को
वक्त से जोड़ना शुरू करो।
खुल जायेगी किस्मत तेरी
यदि वक्त साथ दे जायेगा।।

क्षमा वाणी ( गीत )

क्षमा भाव मन में धारण ,
कर ले ओ भोले प्राणी।
कर दे क्षमा तू सबको ,
खुश होगी जिंदगानी …. २।

नफरत के बीज बोये ,
काँटों से दिल लगाया।
सोचा न एक पल भी,
अपनों का दिल दुखाया। …२
मैं हाथ जोड़कर के,
मानू अपनी गलती।
कर दे क्षमा तू मुझको,
खुश होगी जिंदगानी।।
क्षमा भाव मन में धारण ,
कर ले ओ भोले प्राणी।
कर दे क्षमा तू सबको ,
खुश होगी जिंदगानी।

क्यों करता मेरा तेरा,
कुछ भी नहीं है तेरा।
जब नींद से तुम जागो,
समझो तभी सबेरा ….2
करके क्षमा तू सबको ,
खुश कर ले जिंदगानी।।
क्षमा भाव मन में धारण ,
कर ले ओ भोले प्राणी।

कर दे क्षमा तू सबको ,
खुश होगी जिंदगानी।
ये जिंदगी गमों की,
खुश रहना तुम सीखो।
अपनों से प्रेम करके,
अपनो का दिल जीतो। ….२
ये मूल मंत्र जीवन का,
तुम सबको ये बता दो।
करके क्षमा तू सबको,
खुश कर ले जिंदगानी।।

संजय का ये भजन ,
सब याद अब तुम रखना।
कर दे क्षमा तू सबको ,
खुश होगी जिंदगानी।।

उत्तम क्षमा
क्षमा वाणी के अवसर पर एक संदेश।
मानव अहंकार को त्याग कर सच्चे मन से अपने अंदर क्षमा का भाव बना ले, तो संसार और उसमें रहने वाले लोगों का जीवन ही बादल जायेंगा। क्योंकि क्षमा से बढ़ाकर दूसरा कोई भी त्याग धर्म नहीं हो सकता। इसलिए मैंने अपने भावों को इस गीत के द्वारा आप लोगों के सामने प्रगट किये है। आशा करता हूँ की आप लोगों को ये गीत भजन पसंद आएगा।

आशीर्वाद से

तेरा आशीष पाकर,
सब कुछ पा लिया हैं।
तेरे चरणों में हमने,
सिर को झुका दिया हैं।
तेरा आशीष पाकर …….।

आवागमन गालियाँ
न हत रुला रहे हैं।
जीवन मरण का झूला
हमको झूला रहे हैं।
आज्ञानता निंद्रा
हमको सुला रही हैं।
नजरें पड़ी जो तेरी,
मेरे पापा धूल गए हैं।
तेरा आशीष पाकर……।।

तेरे आशीष वाले बादल
जिस दिन से छा रहे हैं।
निर्दोष निसंग के पर्वत
उस दिन से गिर रहे हैं।
रहमत मिली जो तेरी,
मेरे दिन बदल गये है।
तेरी रोशनी में विद्यागुरु,
सुख शांति पा रहे हैं।।
तेरा आशीष पाकर …..।।

आज पर्युषण महापर्वराज के दसवां दिवस “उत्तम ब्रह्मचर्य किसी किसी धर्म के अवसर पर आचार्यश्री के चरणों में उपरोक्त संजय जैन मुम्बई का भजन समर्पित है।

हमसब जैन है

मेरा कर्मा तू, मेरा धर्मा तू,
मेरा जैनधर्म,सब कुछ है तू।

हर कर्म अपना करेंगे,
जैन धर्म के अनुसार।
जैनकुल में जन्म लिया है,
जैनी होने का अभिमान।
हम जीयेंगे हम मरेंगे,
जैन धर्म के अनुसार।
जैनकुल में जन्म लिया है,
जैनी होने का अभिमान।।

तू में कर्मा, तू मेरा धर्मा,
तू मेरा अभिमान है।
जैन धर्म तुम पर,
मेरा जीवन कुर्बान है।
हम जिएंगे हम मरेंगे,
जैन धर्म के अनुसार ।
जैनकुल में जन्म लिया है।
जैनी होने का अभिमान है।।

दिगम्बर, श्रेताम्बर, स्थानकवासी,
हम सब जैन है, बस हम जैन है।
जो करे पंथवाद की बाते,
वो महावीर का भक्त है ही नहीं।
हम जीएंगे हम मरेंगे,
जैन धर्म के अनुसार ।
जैनकुल में जन्म लिया है।
जैनी होने का अभिमान है।।

आज महापर्वराज पर्यूषण का नौवा दिवस उत्तम आकिंचन धर्म के उपलक्ष्य में मेरा उपरोक्त गीत भजन सभी जैन श्रावक और जैन समाज को समर्पित है।

मुंबई वालों की भावना

समयसागर जी की राह निहार के।
मुंबई वाले कब से खड़े है इंतजार में।
सब की अँखियों के नूर, सब के दिलो के सुरूर।
चाहे रहो कितनी दूर,लाना है मुंबई में ज़रूर।।
समयसागर जी की राह निहार के।
मुंबई वाले कब से खड़े है इंतजार में।

ज्ञान बरसे, दुनिया जाने।
मुंबई तरसे कोई न जाने।
दिल में लगी है मुंबई लाने।
इसलिए मुंबई वाले,आये है श्रीफल चढ़ाने।
चाहे रहो कितनी दूर,लाना है मुंबई में ज़रूर।।
समयसागर जी की राह निहार के।
मुंबई वाले कब से खड़े है इंतजार में।।

जिस दिन मुंबई को मिलेगा मौका।
ज्ञान की गंगा बहेगी यहाँ पर।
देखेगी सारी दुनिया ये चौमासा।
बस गुरुवार की हाँ का इंतजार है।
हम लोग खड़े है तेरे द्वार पर।।
समयसागर जी की राह निहार के।
मुंबई वाले कब से खड़े है इंतजार में।

सभी साधर्मप्रेमी बंधुओ को, संजय जैन, मुंबई का सदर जय जिनेन्द्र देव, आज महापर्व पर्यूषण का आठवा दिन उत्तम त्याग धर्म के उपलक्षय में उपरोक्त भजन मैंने गुरू भक्त मुंबई, कल्याण एवंम समस्त दिगम्बर जैन समाज मुंबई वालों की भावनाओं को महसूस करते हुए लिखा है।मैं आचार्य श्री समय सागर जी के चरणों में समर्पित करता हूँ।

हिन्दी मेरी माँ है

मैं हिन्दी का बेटा हूँ
हिन्दी के लिए जीत हूँ।
हिन्दी में ही लिखता हूँ
हिन्दी को ही पढ़ता हूँ।
मेरी हर एक सांस पर
हिन्दी का ही साया है।
इसलिए मैं हिन्दी पर
समर्पित करता ये जीवन।।
मैं हिंदी का ………..।।

करें हिन्दी से सही में प्यार
तो कैसे करे लिखने से इंकार।
अगर मातृभाषा है हिंदी तो
बोलने से क्यों करते हो इंकार।
हिंदी बस्ती है हिंदुस्तानीयों के
दिलकी हर धड़कनों में।
इसलिए तो प्रेम-भक्त गीत
लिखे जाते है हिंदी में।
जो हर भारतीयों का
सदा गौरव बढ़ते है।।
मै हिंदी का…….।

करो हिन्दी का प्रचार-प्रसार
तभी बन पायेगी राष्ट्रभाषा।
और भारतीयों के दिलों में
ये बस पायेगी।
चलों आज लेते हैं
हम सब एक शपथ।
की करेंगे आज से हमसब
सारा कामकाज हिंदी में।
तभी तो मातृभाषा का
उतार पाएंगे हम कर्ज।।
मैं हिंदी का……….।।

अगर सच्चे और अच्छे
हम भारतीय कहलाना है।
तो हिंदी भाषा को ही
हमें अब आगे बड़ना है।
संजय की ये रचना
समर्पित है हिंदी को।
करो उपयोग हिंदी का
तुम सब अपने जीवन में।
बहुत उपकार होगा तब
हमारी हिंदीभाषा पर।।
मैं हिंदी का बेटा हूँ
हिंदी के लिए जीता हूँ।।

गुरु भक्ति

जय जय जय जय गुरु देव ,
मुझे दर्शन दो।
अपनी शरण में तुम,
मुझको ले लो।
जय जय जय जय गुरु देव ,
मुझे दर्शन दो।।

कल रात सपने में,
मैंने तुमको देखा था।
जैसे कह रहे थे तुम,
आ जाओं मेरी शरण।
ये कैसा सपना था,
क्या सच्च हो सकता है।
यदि ये सच हो जाये,
मेरा जीवन साभर जाये।
जय जय जय जय गुरु देव ,
मुझे दर्शन दो।
अपनी शरण में तुम,
मुझको ले लो।।

हर शाम सबेरे,
संजय तुम्हें जपता है।
हर सुबह उठाते ही,
तेरी पूजा करता है।
श्रध्दा और भक्ति का,
मुझे इतना फल तो दो।
मेरे दीक्षा गुरुवार,
तेरे कर कमलो से हो।
जय जय जय जय गुरु देव ,
मुझे दर्शन दो।
अपनी शरण में तुम,
मुझको ले लो।।

गुरुदेव की चरणों मे नामोस्तु
आज महापर्व पर्यूषण राज का सातवा दिवस “उत्तम तप धर्म” पर आचार्यश्री १०८ विद्यासागर जी के चरणों में संजय जैन, मुम्बई का भजन समर्पित है।

वाणी सुनों

विद्यासागर की वाणी सुनो।
ज्ञान अमृत का रसपान करो।
ज्ञानसागर की दिव्य ध्वनि सुनो।
उत्तम संयम धर्म का पालन करो।
विद्यासागर की वाणी सुनो।।

आज हम सबका यह पुण्य है।
मिला है हमें मनुष्य जन्म ..।
किये पूर्व में अच्छे कर्म।
इसलिए मिला मनुष्य जन्म।
गुरुवर के मुख्य बिंदु से।
जिनवाणी का ज्ञान प्राप्त करो।।
विद्यासागर की वाणी सुनो।
ज्ञान अमृत का रसपान करो।

वीर प्रभुजी की एक छवि।
सदा दिखती है उनमें …. ।
वीर प्रभु के कथनों को।
साकार करने आये धरती पर।
कलयुग में मिले है हमें ।
सतयुग जैसे गुरु विद्यासागर।।
विद्यासागर की वाणी सुनो।
ज्ञान अमृत का रसपान करो।

सदा आगम का अनुसरण करे।
उसके अनुसार ही वो चले … ।
बाल ब्रह्मचारियों को ही।
देते है वो मुनि दीक्षा।
पहले भट्टी में उन्हें तपते है।
सोना बनाकर ही छोड़ते है।।
विद्यासागर की वाणी सुनो।
ज्ञान अमृत का रसपान करो।।

गुरुदेव की चरणों मे नामोस्तु आज महापर्व पर्यूषण का छठवा दिवस “उत्तम संयम धर्म” पर आचार्यश्री १०८ विद्यासागर जी के चरणों में संजय जैन, मुम्बई का भजन समर्पित है।

मोक्ष पथ को जाने

छोड़ दो मिथ्या दुनियां,
सार्थक जीवन के लिए।
इससे बड़ा सत्य कुछ,
और हो सकता नहीं।
चाहत अगर प्रभु को पाने की हो ।
तो ये मार्ग से अच्छा कुछ,
और हो सकता नहीं।।
छोड़ दो…….।।

मन में हो उमंग प्रभु को पाने की।
करना पड़ेगा कठिन तपस्या तुम्हें।
मिल जाएंगे तुमको प्रभु एक दिन।
बस सच्ची श्रध्दा से उन्हें याद करो।।
छोड़ दो……..।।

आत्म कल्याण का पथ ये ही हैं।
बस इस पर चलने की तुम कोशिश करो।
मोक्ष का द्वार तुम को मिल जाएगा।
और जीवन सफल तेरा हो जाएगा।।
छोड़ दो…….।।

पर्युषण महापार्व राज का पांचवा दिन “उत्तम सत्य धर्म” के अवसर पर संजय जैन मुम्बई का भजन आप सभी लोगो के लिए समर्पित है।

नियमित मंदिर जाए

जब भोर हुए आना,
जब शाम ढले आना।
संकेत प्रभु का,
तुम भूलना जाना,
जिनेन्द्रालाय चले आना।
जब भोर हुए आना,
जब शाम ढले आना।।

मैं पल छीन डगर बुहारूंगा,
तेरी राह निहारूंगा।
आना तुम जिनेन्द्रालाय दर्शन को ,
करना पूजा भक्ति यहां।।
जब भोर हुए आना,
जब शाम ढले आना।।

नित साँझ सबेरे मंदिर में,
पूंजा भक्ति में करता हूँ।
और करता हूँ स्वाध्य, जिनवाणी का।
आत्म शुध्दि के महापर्व पर।।
जब भोर हुए आना,
जब शाम ढ़ले आना।।

जन्म जन्म से भाव सजोये थे,
मुनि दीक्षा हम अब पाएंगे।
श्रध्दा भक्ति विनय समर्णपण का,
कुछ तो दे दो फल।
मेरी दीक्षा विद्या गुरुवर के,
हाथो से बस अब हो।
ऐसा आशीर्वाद हे मुनिवर ,
मुझे आप ये दे दो।।
जब भोर हुए आना,
जब शाम ढ़ले आना।।

श्री चन्द्रप्रभु भगवान

थाल पूजा का लेकर चले आइये।
चन्द्राप्रभु का जिनेन्द्रालय यहाँ पर बना।
आरती के दियो से करो आरती।
और पावन सा कर लो ह्रदय अपना।
थाल पूजा का लेकर चले आइये।

मन में उमड़ रही है ज्योत धर्म की।
उसको यूही दबाने से क्या फायदा।
प्रभु के बुलावे पर भी न जाये वहां।
ऐसे नास्तिक बनाने से क्या फायदा।।
डग मगाते कदमो से जाओगे फिर तुम।
तब तक तो बहुत देर हो जायेगा।।
थाल पूजा का लेकर चले आइये।
चन्द्राप्रभु का जिनेन्द्रालय यहाँ पर बना।
नाव जीवन की तेरी मझधारा में पड़ी।
झूठ फरेब लोभ माया को तूने अपनाया था।
जब तुम को मिला ये मनुष्य जन्म।
क्यों न सार्थक इसे तू अब कर रहा।।
जाकर जिनेन्द्रालय में पूजा अभिषेक करो।
और अपने पाप कर्मो को तुम नष्ट करो।।
थाल पूजा का लेकर चले आइये।

थाल पूजा का लेकर चले आइये।
चन्द्राप्रभु का जिनेन्द्रालय यहाँ पर बना।
आरती के दियो से करो आरती।
और पावन सा कर लो ह्रदय अपना।
थाल पूजा का लेकर चले आइये।

जय जिनेन्द्र देव की आज उत्तम आर्जव धर्म पर्युषण महापर्व का तीसरा दिन श्री 1008 चन्द्रप्रभु भगवान, कल्याण के दर्शन की भावना जगाने हेतु भजन आप सभी धर्मप्रेमी बंधुओ के लिए समर्पित है।

गुरुदेव की भक्ति

भक्ति मैं करता तेरे
साझ और सबेरे।
चरण पखारू तेरे
साझ और सबरे।
चरण पखारू तेरे
साझा और सबरे।
तेरे मंद मंद दो नैन
मेरे मनको दे रहे चैन।
तेरे मंद मंद दो नैन…।

क्या ज्ञान क्या अज्ञानी जन,
आते है निश दिन मंदिर में।
एक समान दृष्टि तेरी
पड़ती है उन सब जन पर।
पड़ती है दृष्टि तेरे उन सब पर।
तेरे कर्णना भर दो नैन
मेरे मनको दे रहे चैन।
तेरी कर्णना भरे दो नैन
मेरे मनको दे रहे चैन।।

त्याग तपस्या की
ऐसे सूरत हो।
चलते फिरते
तुम भगवान हो।
दर्शन जिसको
मिल जाये बस।
जीवन उनका धन्य होता।
जीवन उनका धन्य होता।
तेरा जिसको मिले आशीर्वाद।
उसका जीवन हो जाये कामयाब।
तेरा जिसको मिले आशीर्वाद।
उसका जीवन हो जाये कामयाब।।

ऐसे गुरुवर विद्यासागर के चरणों में
संजय करता उन्हें वंदन,
करता उन्हें शत शत वंदन।।

( पर्यूषण महापर्वराज का आज दूसरा दिन उत्तम मार्दव धर्म के उपलक्ष्य में मेरा गुरुभक्ति का भजन आप सभी को समर्पित है। )

वर्तमान के वर्धमान थे

तुम हो कलयुग के भगवान गुरु विद्यासागर।
तुम हो ज्ञान के भंडार
गुरु विद्यासागर।
हम नित्य करें गुण गान
गुरु विद्यासागर।।

बाल ब्रह्मचारी के व्रतधारी
सयंम नियम के महाव्रतधारी।
तुम हो जिनवाणी के प्राण
गुरु विद्यासागर।
हम नित्य करे गुण गान
गुरु विद्यासागर।।

दया उदय से पशु बचाते
भाग्योदय से प्राण बचाते
मेरे मातपिता भगवान
गुरु विद्यासागर ।
हम नित्य करे गुण गान
गुरु विद्यासागर।।

जैन पथ हमको चलाते
खुद आगम के अनुसार चलते।
वो सब को देते विद्या ज्ञान
गुरु विद्या सागर।
हम नित्य करे गुण गान
गुरु विद्यासागर।
तुम हो कलयुग के भगवान
गुरु विद्यासागर।
ज्ञान के सागर विद्यासागर
हम नित्य करे गुण गान
गुरु विद्या सागर।।

लाल बाग़ के राजा की महिमा

मन मोहक प्रतीमा है तेरी,
मजबूर करे लाल बाग़ आने के लिए,दर्शन के लिए ।
मन मोहक प्रतीमा है
तेरी ……….।।
हर कोई तरसता रहता है,
तेरी एक झलक दर्शन के लिए ,दर्शन के लिए ,
मन मोहक प्रतीमा है तेरी ………. ।।

तस्वीर बनाए क्या कोई।
क्या कोई करे तेरा वर्णन।
रंगो छन्दो में समाये ना,
किस तरह तेरी मन मोहिकिता, मोहिकिता।
मन मोहक प्रतीमा है तेरी ……….।
एक आस है आत्मा में मेरी।
कोई जान न सके इस भेद के लिए।
मन मोहक प्रतीमा है तेरी ,
मजबूर करे लाल बाग़ आने के लिए ,
राजा के दर्शन के लिए,
लाल बाग जाने के लिए ,
दर्शन के लिए।
मन मोहक प्रतीमा है तेरी,
मजबूर करे लाल बाग़ आने के लिए ,दर्शन के लिए ,
मन मोहक प्रतीमा है तेरी।।

क्यों बुलाती : गीत

खनकती चूड़ियाँ तेरी
हमें क्यों बुलाती है।
खनक पायल की तेरी
हमें लुभाती है।
हँसती हो जब तुम
तो दिल खिल जाता है।
और मोहब्बत करने को
ये दिल ललचाता है।।

कमर की करधौनी भी
तेरी कुछ कहती है।
जो प्यास दिलकी
बहुत बढ़ाती है।
और होठो की लाली
हँसकर लुभाती है।
फिर आँखे आँखो से
मिलाने को कहती है।।

पहनती हो जो भी
तुम रोज परिधान।
तुम्हारी खूब सूरती
और भी बढ़ाती है।
अंधेरे में भी पूनम के
चांद सी बिखर जाती हो।
और रात की रानी की
तरह महक जाते हो।।

तभी तो जवां दिलो में
मोहब्बत की आग लगाते हो।
और शरद पूर्णिमा की रात में
मेहबूब को बुलाते हो।
और अपनी मोहब्बत को
ताजमहल जैसी दिलमें शामाते हो।
और अमावस्या की रात को भी
पूर्णिमा की रात बन देते हो।।

तभी तो शरद पूर्णिमा की
गाथाएँ ग्रंथ अनेक है।
शिव पार्वती राधा कृष्ण की
महिमायें भी अनेक है।
युवा दिलो में मोहब्बत की
ज्योति जला देती है।
और एक नया आशियाना
ताज जैसा दिलमें बना देती है।।

चरणों में शीश झूका ( भजन )

तुम्हे दिल लगी भूल जाने पड़ेगी।
गुरु चरणों में शीश झुका के तो देखो।
तुम्हे दिल लगी भूल जाने पड़ेगी।
प्रभु चरणों में सीस झुका के तो देखो।
तुम्हे दिल लगी भूल जाने पड़ेगी।
णमोकार मंत्र को जपके तो देखो।
तुम्हारे पाप कर्म धूल जायेंगे सारे।
ये अपने जीवन में उतार के तो देखो।
तुम्हे दिल लगी भूल जाने पड़ेगी।।

निश दिन मंदिर में पूजा करो तुम।
तुम्हे शांति दिल में महसूस होगी।
तुम्हे दिल लगी भूल जाने पड़ेगी।
देव दर्शन निश दिन करके तो देखो।
तुम्हे दिल लगी भूल जाने पड़ेगी।।

दया और धर्म तुम करके तो देखो।
ये माया सभी यही रह जाएगी सारी।
तेरे अच्छे कर्म ही तेरे संग जायेगे।
बाकि अब यही पड़ा रह जायेगा सारा।
तुम्हे दिल लगी भूल जाने पड़ेगी।
दान धर्म तुम करके तो देखो।।

गुरु और प्रभु जी शरण में तो जाओ।
संतो की वाणी जा सुनकर तो देखो।
तुम्हे धर्म चेतना का आनंद यही पर मिलेगा।
गुरु और प्रभु की सेवा कर के देखो।
तुम्हे दिल लगी भूल जाने पड़ेगी।।

प्रभु चरणों में सीस झुका के तो देखो।
आचार्यश्री के चरणों मे शीश झुका के तो देखो।।

शिक्षकों का आभार

शिक्षकों ने दिया मुझे,
बचपन से बहुत ज्ञान।
तभी तो पढ़ लिखकर,
बन पाया हूँ कुछ।
इसलिए मेरे दिलमें,
श्रध्दा के भाव रहते है।
और मात पिता जैसा
देता उन्हें सम्मान।
जो कुछ भी हूँ आज मैं,
बना उन्ही के कारण।
इसलिए उनके चरणों में,
अपना शीश झुकता हूँ।।

शिक्षा का जीवन में लोगों,
बहुत महत्त्व होता है।
जो इससे वंचित रहता है
उनका जीवन अधूरा है।
शिक्षा को न बाट सका
और न ही छिन सकता है।
जीवन का ये सबसे
अनमोल रत्न जो होता है।
धन दौलत तो जीवन में
आती जाती रहती है।
पर ज्ञान हमारा संग देता
जीवन की अंतिम सांसों तक।।

जितना तुम पूजते हो
अपने मात पिता को।
उतना ही तुम पूजो
अपने-अपने गुरुओं को।
देकर आदर दोनों को
एक तराजू में तौलो।
क्योंकि ये ही आधार स्तंम्भ है,
तेरे इस जीवन के।।
इसलिए तो हमसब मातापिता
और शिक्षक दिवस मानते है।।

मैं हूँ ” जैन “

मैं हूँ “जैन ” …।
न छुरी रखता हूँ
न पिस्तौल रखता हूँ।
“जैन” का बेटा हूँ,
दिलमें जिगर रखता हूँ।
इरादों में तेज़ धार रखता हूँ।
इस लिए हमेशा
अकेला ही निकलता हूँ।।

बंगले गाड़ी तो जैनियों की
घर-घर की कहानी है..।
तभी तो दुनिया
“जैनियों” की दिवानी है।
अरे मिट गये हम
जैनीयों को मिटाने वाले।
क्योंकि आग में तपती
जैनीयों की जवानी है।।

ये आवाज नही शेर कि दहाड़ है….।
हम खड़े हो जाये तो पहाड़ है….।
हम इतिहास के वो सुनहरे पन्ने है…।
जो भगवान महावीर ने ही चुने है…।
दिलदार और दमदार है “जैनी”।।

रण भुमि में तेज तलवार है “जैनी”।
पता नही कितनो की जान है “जैनी”।
सच्चे प्यार पर कुरबान है “जैनी”।
यारी करे तो यारों के यार है जैनी।।

दुशमन के लिये तुफान है “जैनी”।
तभी तो दुनिया कहती है
बाप रे खतरनाक है “जैनी”।
शेरों के बेटे शेर ही ज़ाने जाते है।
लाखों के बीच “जैन” पहचाने जाते है।।

मौत देखकर पीछे छुपते नही।
हम “जैन” मरने से कभी डरते नही।
हम अपने आप पर गर्व करते है।
दुशमनों को प्यार से समझाने का
जिगरा हम रखते है।।

कोई न दे हमें खुश रहने की दुआ।
तो भी कोई बात नही…।
वैसे भी हम खुशीयाँ रखते नही
बाँट दिया करते है।
क्योंकि मैं हूँ “जैन”।।

मोहब्बत अमर है

रूप तेरा देखकर, हम फिदा हो गये।
तेरी आँखों में हम, एकदम खो गये।
एक मुस्कान पर, हम घायल हुए।
और चाहत में, हम दिवाने हुये।।
रूप तेरा देखकर, हम फिदा हो गये।
तेरी आँखों में हम, एकदम खो गये।।

है मोहब्बत अगर, तुमको मुझे सनम।
दिलकी धड़कनो को, तुम महसूस करो।
एक आवाज़ दिलमें, निश्चित ही गूंजेगी।
जिसको दिलमें तुम्हें, बस सुनना है।।
रूप तेरा देखकर, हम फिदा हो गये।
तेरी आँखों में हम, एकदम खो गये।।

प्यार मोहब्बत बड़ी, नाजुक होती है।
जिस पे दिल आये, उसी से होती है।
इसमें पैसों का तो, प्रश्न है ही नही।
दो दिलों का मिलन, बस जरूरी है।।
रूप तेरा देखकर, हम फिदा हो गये।
तेरी आँखों में हम, एकदम खो गये।।

आओ मिलकर हम, प्यार मोहब्बत करें।
उम्र भर साथ, रहने का वादा करें।
भूलकर भी न होंगे, एक दूजे से अलग।
सारी दुनिया में, मोहब्बत को जिंदा रखे।।
हमनें महसूस किया, बस उतना लिखा।
अब ये पन्ना, यही मोड़ दे।।

रूप तेरा देखकर, हम फिदा हो गये।
तेरी आँखों में हम, एकदम खो गये।।

दिल क्या सोचता है

मेरे दिल कि सरहद को
पार न करना I
नाजुक है दिल मेरा
वार न करना I
खुद से बढ़कर भरोसा है
मुझे तुम पर I
इस भरोसे को तुम
बेकार न करना I

दूरियों की ना
परवाह कीजिये I
दिल जब भी पुकारे
बुला लीजिये I
कहीं दूर नहीं हैं
हम आपसे I
बस अपनी पलकों को
आँखों से मिला लीजिये lI

दिल में हो आप तो कोई
और ख़ास कैसे होगा I
यादों में आपके सिवा कोई
पास कैसे होगा I
हिचकियां केहती है आप
याद करते हो…I
पर बोलोगे नहीं तो हमें
अहसास कैसे होगा ?

आरजू होनी चाहिए किसी
को याद करने की……!
लम्हें तो अपने आप ही
मिल जाते हैं I
कौन पूछता है पिंजरे में
बंद पंछियों को I
याद वही आते है
जो उड़ जाते है…!!

चाहत अनमोल है

चाहत के मामले में
सबसे अमीर हूँ।
पैसे के मामले में
सबसे गरीब हूँ।
चाहत का वैसे पैसे
लेना-देना नही होता।
जिससे दिल मिले
उसी से प्यार होता है।।

मिलन हो जाये चाहत का
चाहाने वाले से।
तो चाहत का रंग
दिल पर चड़ने लगता है।
बड़ा अजीब किस्सा है
चाहत और दिल का।
जिसे पैसे के कारण
भूलाया नही जा सकता।।

देखकर सुंदर रूप को
पाने की चाहत होती है।
क्योंकि उसकी खूब सूरती
दिल पर छाने लगती है।
इसलिए हमारी आँखे
उसी को खोजती रहती है।
और अपनी चाहत को
पाने की कोशिश करते है।।

वक्त ने मिटा दिया

दास्ताने ए जिंदगी की
वक्त ने बदल दी धीरे-धीरे।
आशियाना मिटा दिया है
वक्त ने देखो धीरे-धीरे।
थी मोहब्बत जिससे हमें
वक्त ने भूला दिया धीरे-धीरे।
वक्त को हम समझ न सके
इसलिए भूला दिया धीरे धीरे।।

वक्त के चलते तुम देखो
कितने बाग उजड़ गये।
वक्त के कारण ही देखो
घर-संसार उजड़ गये।
कर सके न कद्र वक्त की
इसलिए बेसहारा हो गये।
खो दिया सम्मान अपना
वक्त के चक्र में फसके।।

वक्त ने दिखा दिया
अपना प्रभाव सभी को।
पाना है ख्याति तुम्हें तो
कद्र करना सीख लो।
जिंदगी के पहलूओं को
वक्त से जोड़ना शुरू करो।
खुल जायेगी किस्मत तेरी
यदि वक्त साथ दे जायेगा।।

तुम्हें पाने की चाहत

तेरे चाहाने वालो के,
किस्से बहुत मशहूर है।
तेरी एक झलक के लिए,
खड़े रहते है लाइन से।
चेहरा छुपाना दुपट्टे से
लोगों की समझ से परे है।
कैसे देख सकेंगे तुझे वो,
खुले आसमान के नीचे।।

किसी पर तो तुम्हारा,
दिल आ रहा होगा।
धड़कने दिल की तेरी,
निश्चित बड़ा रहा होगा।
पर बात दिल की तुम,
व्या कर नही पा रहे हो।
मन ही मन जिसे चाह रहे हो,
क्या चाहत उसे बता पा रहे हो।।

देखते देखते भी प्यार होता है।
पत्थर दिल भी प्यार के लिए पिघलता है।
ये कमबख्त दिल भी ऐसा होता है,
जो किसी न किसी पर तो फिसलता है।
तभी तो विधाता की बनाई जोड़ीयों का,
स्वयं की चाहत से मिलन हो जाता है।।

वक्त के कारण

दर्द दिल में लेकर
भटकता रहा जिंदगी में।
मिला न मुझे सुकून
पूरी जिंदगी में।
पहले वक्त से लड़ता था
अब वक्त मुझसे लड़ रहा है।
और जिंदगी का लुप्त
वक्त के साथ उठा रहा।।

यादों का एहसास काफी है
जिंदगी जीने के लिए।
मुद्दत से चाहत थी मेरी
तुम्हें पाने की।
पर वक्त धोखा दे गया
तुम्हें देखते देखते।
और तुम गैरों के साथ
जीने लगे हमें छोड़कर।।

मोहब्बत वक्त के
अनुसार नहीं होती।
ये तो दिलों के
मिलने से होती है।
जिस पर दिल
आ जाता है।
मोहब्बत उसे ही
हो जाती है।।

अपना भारत देश

हम सबका अपना देश है
जिसको कहते भारत हम।।

हम हिल मिलकर रहने में
विश्वास बहुत करते है।
सबके अरमानों को भी
हम साकार करते है।
देश प्रेम के भावों को
जग वालों को समझता हूँ।
और देश-प्रेम की ज्योति को
घर-घर में जलता हूँ।।

कितना प्यार कितना न्यारा
ये देश हमारा भारत है।
लोकतंत्र को मानने वाला
देश हमारा भारत है।
दुनिया को दर्पण दिखता
ये देश हमारा भारत है।
लाखों महापुरुषो और भगवानों ने
जन्म लिया है भारत में।।

राम कृष्ण तुलसी सूर आदि
भी जन्में है इस भारत में।
भक्ति संगीत का भी बड़ा
उदहारण हमारा भारत है।
दुनिया की नजरों में धर्मनिपेक्ष
देश हमारा भारत है।
इसलिए मंदिर मस्ज़िद गुरुद्वारे..
फैले हुये है भारत में।।

भारत के कण-कण में बसते
लाखों देवी देवता।
चारों दिशाओं में फैले है
लाखों वीर योध्दा भारत में।
भगत चंद्रशेखर मांग पांडे
दुर्गा लक्ष्मी अहिला जैसी
महिलायें जन्मी है भारत में।
इसलिए योध्दाओं का देश
कहते है हमसब भारत को।।

हम सबका अपना देश है
जिसको कहते भारत हम।।

जय हिंद जय भारत

कृष्ण अवतार

( गीत भजन )

हम तेरे दर्शन को आये है बहुत दूर से कृष्ण।
सिर्फ एक बार मुझे चरण को छू लेने दो।
हम तेरे दर्शन को आये है बहुत दूर से कृष्ण।।

रोज सपने में दिखते हो मुझे प्यारे कृष्ण।
कहाँ है पर है नहीं तेरा ठिकाना मेरे कृष्ण।
किस जगह की छवि मुझे रोज दिखते हो।
उस जगह पर मुझे तुम बुला लो कृष्ण।।
हम तेरे दर्शन को आये है बहुत दूर से कृष्ण।।

अपनी आँखों से तुम देखते हो जग से।
हर किसी पर तेरे दृष्टि रहती है कृष्ण।
मेरे आँखों में भी दिव ज्योति दे दो।
ताकि मैं सुबह शाम तेरे दर्शन कर सकूँ।।
हम तेरे दर्शन को आये है बहुत दूर से कृष्ण।।

अपनी लीलाएं दिखाकर सबको लूभाते हैं।
खेल खेल में अंत राक्षको का कर दिया।
और कंसमामा को भी संदेश देते गए।
फिर एक दिन कीड़ा के द्वारा ही कृष्ण ने।
कंस का वध करके मथुरा को मुक्त किया।।
हम तेरे दर्शन को आये है बहुत दूर से कृष्ण।।

हम तेरे दर्शन को आये है बहुत दूर से कृष्ण।
सिर्फ एक बार मुझे चरण को छू लेने दो।
हम तेरे दर्शन को आये है बहुत दूर से कृष्ण।।

जन्माष्टमी

कितना पवन दिन आया है।
सबके मन को बहुत भाया है।
कंस का अंत करने वाले ने,
आज जन्म जो लिया है।
जिसको कहते है जन्माष्टमी।।

काली अंधेरी रात में नारायण लेते।
देवकी की कोक से जन्म।
जिन्हें प्यार से कहते है।
कान्हा कन्हैया श्याम कृष्ण हम।।

लिया जन्म काली राती में,
तब बदल गई धरा।
और बैठा दिया मृत्युभय,
कंस के दिल दिमाग में।
भागा भागा आया जेल में,
पर ढूढ़ न पाया बालक को।
रचा खेल नारायण ने ऐसा,
जिसको भेद न पाया कंस।।

फिर लीलाएं कुछ ऐसी खेली।
मंथमुक्त हुए गोकुल के वासी।
माता यशोदा आगे पीछे भागे।
नंदजी देखे तमाशा मां बेटा का।।

सारे गांव को करते परेशान,
फिर भी सबके मन भाते है।
गोपियाँ ग्वाले और क्या गाये,
बन्सी की धुन पर थिरकते है।
और मौज मस्ती करके,
लीलाएं वो दिख लाते है।
और कंस मामा को,
सपने में बहुत सताते है।।

प्रेम भाव दिल में रखते थे,
तभी तो राधा से मिल पाए।
नन्द यशोदा भी राधा को,
पसंद बहुत किया करते थे।
गोकुल वासियों को भी,
राधा कृष्ण बहुत भाते थे।
और प्रेमी युगलों को भी,
कृष्ण राधा का प्यार भाता है।।

सभी पाठको के लिए जन्माष्टमी
की शुभ कामनाएं और बधाई।

तुम हो

जिंदगी अब तो तुम्हारी हो गई है।
अब प्यार दो या दो कुछ और।
सफर वहीं तक है जहाँ तक तुम हो।
नजर वहीं तक है जहाँ तक तुम हो।।

हजारो फूल देखे हैं
इस गुलशन में मगर।
खुशबू वहीं तक है
जहाँ तक तुम हो..।।

बहुत मिले सफर में हमें मुसाफिर।
पर हमसफर तो तुम ही मिले हो।
लोग मिलते रहे और चलते रहे।
पर साथ चलने को तुम्हीं मिले हो।।

कितने लोग आते जाते है।
मिलने और मिलाने को यहाँ।
पर अपना बनकर तो देखो।
सिर्फ मेरे जीवन में तुम आये हो।।

उथल पुथल जब मचा हुआ था।
तुमने आकर थमा लिया था।
आते जाते सुख दुख में भी।
तुमने साथ निभाना सिखा दिया।।

पग पग पर कांटे बिछे थे।
पर चलना तुमने सिखा दिया।
और जीवन के काँटों को
तुमने कैसे देखो हटा दिये।।

तकदीर बदल जाती है नसीब से,
पर मेरा नसीब तो सिर्फ तुम हो।
सच कहे अगर तुमसे प्रिये तो
मेरे जीवन का आधार तुम हो।
बस तुम हो बस तुम हो।।

हमारा आपका दर्द

मेरे दिलमें जो होता है
वो ही बात कहता हूँ।
कहकर दिलकी बातों को
सुकून बहुत मिलता है।
इसलिए इस जमाने में
मुझे कम पसंद करते है।
पर जो पसंद करते है
वो बहुत अच्छे होते है।।

मैं खुद को बदल नहीं सकता
तो जमाने को कैसे बदलूगा।
और अपनी बातों को मैं
जमाने को कैसे कहूंगा।
जबकी खुदका दिल नहीं
रहता है स्वयं के बस में।
तो औरों से क्या उम्मीदें
हम आप कर सकते है।।

बड़ा ही दर्द है लोगों
जमाने की सोच में।
जो न खुद जीते है
न औरो को जीने देता।
लगा है घाव दिल पर जो
उसे वो और खुरोंदेगे।
पर उस पर महलम वो
कभी नहीं लगाएंगे।।

द्रोपदी का कसूर भी
कुछ इसी तरह का था।
जो खुदको रोक न पाई
और जुबान से कह दिया।
और फिर किस तरह का
युध्द हुआ था उस युग में।
पूरा वंश उजड़ गया
उसके कहने भर से।।

देखो फिर हालात ऐसे ही
आज बन रहे है।
सच में हमसब कलयुग में
ही जी रहे है।
कहना सुनना अब बचा नही
प्रत्यक्ष जो देख रहे है।
क्योंकि रावण राज से भी
बत्तर हालात हो गया है।।

बदलता मौसम

बदलते हुए मौसम का
स्वभाव अलग होता है।
कही गर्मी कही सर्दी
उसके स्वभाव में आता है।
इसलिए हर किसी का
स्वभाव बदलता रहता है।
जो प्रकृति के अनुसार
सदा ही चलता रहता है।।

सभी के जीवन में देखों
बहुत बदलाव आता है।
क्या पेड़ पौधे और पक्षी
सभी बदलने लगते है।
इसी तरह से जीव-जंतु
और नर-नारी बदलते है।
जो मौसम को ही अपना
आधार मानकर जीते है।।

अगर मौसम खुश मिजाज हो
तो प्रेम उमड़ पड़ता है।
सभी को मौका मिल जाता
प्रेम मोहब्बत करने का।
घटायें कालि हो या
हो वो चाँद सी सुंदर।
लूभाति है सभी को
ये अपने-अपने अनुसार।।

मौसम का और धरा का
बड़ा ही गैहरा नाता है।
जो बदलते हुए मौसम में
दिखाई सबको पड़ता है।
इसलिए धरा और
मौसम साथ रहते है।
जिस की संरचना भी
बनाने वाले ने की है।।

भारतीय होने का गर्व

पीड़ा का समंदर तू जाने
दर्द की हर लहर तू जाने
अरे तू जाने तेरा काम
सबको राम राम राम।।

हौसले बुलंद हो अगर
तो बुलंदी को छू लेंगे।
साथ रहेगा आप सबका
तो आकाश को छू लेंगे।
और स्वयं का नाम हम
भारत में अमर कर देंगे।।

गर्व होगा सच में तुम्हें
अपने भारतीय होने पर।
जब तुम सफलता के झंडे
फहरा दोगे देश के हर कोने में।।

हम भारत वालों ने
बहुत खोकर पाया है।
अपनी मेहनत लगन के
बल बूते पर यारो।
तभी तो पत्थरो में से पानी
निकाल दिया हम लोगो ने।।

बहुत ही सुंदर और प्यारा है
देखो भारत देश हमारा
कला संस्कृति का देखों
कितना भरा है भंडार।
इसलिए तो भारत को
कला का देश कहते है।।

कितने प्यारे कितने न्यारे
नर नारी है भारत के।
मिल जुलकर कैसे रहते
देखो पूरे भारत देश में।
इसलिए मनाते रहते है
हर महोत्सव को भारत में।।

स्वर ताल संगीत के
देखो सब दिवाने है।
खूब सूरती के भी देखो
कितने लोग पूजारी है।
इसलिए मर मिटते है
भारत वाले हुस्न पर।।

हम भरतवासीयों का तो
सदा ये कहना होता है।
छोटा हों या हो बड़ा
आपस में हो प्यार बहुत।
इसलिए तो हम सब के
दिलो में रहता सद्भावना।।

जय भारत के नारों से
कैसे गूँज उठा अपना देश।
क्योंकि इसमें दिख रहा
अखंड भारत का दृश्य।
जो अपनी लोक कला
और संस्कृति को बिखर रहा।।

राम भक्त हनुमान

राम कृष्ण हनुमान की
करते सब बातें।
करे नहीं अमल पर
उनके आचरणों को।।

आये जब संकट तो
याद आये हनुमान।
हे संकट मोरचन तुम
हरो हमारे कष्ट।
मैं अर्पित करूँगा
तुम्हें घी और सिंदूर।
सुख शांति मुझे दो
मेरे पालन हार।।

बात करे जब भी
हम मर्यादाओं की।
याद आ जाते है
श्रीराम चंद्र जी।
उन जैसा कोई और
नहीं हैं मर्यादापुरूषोत्तम।
इसलिए हर नारी पूजे
उन्हें श्रध्दाभक्ति से।।

मोहब्बत होना

तुम्हें रोज देखकर के
मेरा दिल मचलने लगा।
तुम्हारा रूप देखकर के
मैं अब बहकने लगा।
मुझे शायद तुमसे अब
मोहब्बत होने लगी है।
इसलिए मेरी आँखे
तेरा इंतजार करती है।।

तुम्हारे दिल के बारे में
मुझे कुछ भी खबर नही।
मुझे अपने ही दिल की
सुनाई पड़ती है धड़कन।
तुम्हारी आँखे भी क्या
मुझे रोज देखती है ?
जैसे मैं देखता तुमको
वैसे क्या देखती मुझको।।

मोहब्बत हम भी करते है
मोहब्बत वो भी करती है।
मगर हम इस जमाने के
लोगों से बहुत डरते है।
इसलिए मोहब्बत को
कबूल कर नही पाते।
और दिलकी बातों को
हम दिलमें ही रखते है।।

मेरी आँखों में तेरी
सदा तस्वीर दिखती है।
मिलन आँखो का हो या
मिलन हो अपने दिलका।
यहाँ करबट बदलते हम
वहाँ वो सो नही पाते।
यही होता है प्यार में
जब हो जाये किसी से।।

रक्षा बंधन

रिश्तों में सबसे प्यारा,
है राखी त्यौहार हमारा।
बना रहे स्नेह प्यार,
भाई-बहिन में सदा।
राखी के कारण ही बहिना,
मिलने आती भाई से।
और याद दिला देती
रक्षा के उन वचनों को।
रक्षा के उन वचनों को।।

संबंध हमेशा बना रहे,
रिश्तों की डोर से बंधे रहे।
बना रहे अपास में प्यार
मायके के सब जनो से।
इन्ही सब को जोड़ने
आता है रक्षाबंधन।
मिलना मिलाप हो जाता
हर साल में एक बार।
हर साल में एक बार।।

कैसे रक्षा की थी कृष्ण ने
अपनी बहिन द्रोपती की।
सब की आंखों में वो
दृश्य झलकता आज भी।
धागे के बंध से ही कृष्ण
बहिन रक्षा को आये थे।
और दिया वचन रक्षा का,
बहिन प्रति निभाये थे।
तभी से रक्षा बंधन का,
हम सब त्यौहार मानाते।
हम सब त्यौहार मानाते।।

डगर बड़ी कठिन है

पग पग पर कांटे बिछे
चलना तुम्हें पड़ेगा।
दौर कठिन जीवन का
तुमको संभालना पड़ेगा।
रहकर दूर अपनो से
नजदीक पहुँचना पड़ेगा।
लक्ष्य तुम्हें जीवन का
हासिल करना पड़ेगा।।

चलते है जो कांटो पर
मंजिल उन्हें मिलती है।
दु:ख के दिन बिताकर
सुख में प्रवेश करते है।
और अपनी सफलता का तब
श्रेय मेहनत को देते है।
और सच्चाई जिंदगी की
खुद व्या करते है।।

चलाते हुए क्यों न
पावों में छाले पड़ गए हो।
और दर्द सहते हुए भी
आगे बढ़ते गये हो।
और लक्ष्य की खातिर तुम
सब कुछ सह गये हो।
इसलिए तुम जीवन की
ऊँचाइयों को छू पाये हो।।

Sanjay Jain Bina

जय जिनेंद्र
संजय जैन “बीना” मुंबई

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स्वयं को बदले और

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