संजय जैन की कविताएं | Sanjay Jain Poetry
स्वयं का जन्म दिन
खुदका जन्म दिन मनाना रहा हूँ।
देखो दुनियां वालो तुम।
कितना हर्षित और प्रफुल्लित हूँ।
अपने इस जन्म दिन पर मैं।।
एक वर्ष और कम हो गया।
अपनी आयु के वर्षो में से।
फिर भी देखो कितना खुश हूँ।
अपनी घटती हुई उम्र पर मैं।।
खुश नसीब मानता हूँ खुदको।
इसलिए आया दुनियां में।
कर्मो के बंधन के कारण ही।
पाया है मैंने मानव जन्म।।
खुदके जन्म को सार्थक करना है।
इसलिए मैं लिखता और गाता हूँ ।
और दुनियां की कु-रीतियों को।
मिटाने का प्रयास निरंतर करता हूँ।।
करना है मुझको दुनियां में।
मानव सेवा वाले काम।
जिससे खुदको जिंदा रख सकूँ।
दुनियां के इस मान चित्र पर।।
तुम हो
जिंदगी अब तो मेरी,
तुम्हारी हो गई है।
अब प्यार दो या,
दो कुछ और तुम।।
सफर वहीं तक है,
जहाँ तक तुम हो।
नजर वहीं तक है,
जहाँ तक तुम हो।।
हजारों फूल देखे हैं,
इस गुलशन में मगर।
खुशबू वहीं तक है,
जहाँ तक तुम हो..।।
बहुत मिले सफर में,
हमें मुसाफिर तो।
पर हमसफर तो,
तुम ही मिले हो।।
लोग मिलते रहे,
और चलते रहे।
पर साथ चलने को,
तुम ही मिले हो।।
आते जाते है लोग,
मिलने और मिलाने।
पर अपना बनकर,
तुम ही आये हो।।
उथल पुथल जब,
मचा हुआ था।
तब तुमने आकर,
मुझे थमा लिया था।।
दुख सुख जीवन में,
आते जाते है।
पर साथ कैसे निभाना,
ये तो तुमसे सिखा।।
पग पग पर कांटे,
लाख बिछे थे।
पर उनको कैसे,
तुमने हटा दिये।।
तकदीर बदल जाती है,
किसी के नसीब से।
पर मेरा नसीब तो,
सिर्फ तुम हो प्रिये।।
यादों का सहारा
याद तन्हाईयों में आते हो।
तो कभी दिलमें शमाते हो।
सच कहे तो मुझे भाते हो।
फिर भी मुझे रुलाते हो।।
प्यार की डोर नाजुक है।
दिलकी आवाज भी भावुक है।
जो हर समय महसूस कराती है।
इसलिए ही मिलने बुलाती हो।।
रिश्ते नातों से बढ़कर प्यार होता है।
इंसानी जज्बातों से प्यार होता है।
आना जाना तो लगा रहता है।
पर तेरा सदा इंतजार रहता है।।
मौसम का महत्व
हवाएं गर्म होकर के
चली जो जा रही है।
दवाब इसका मौसम पर
बढ़ाये जा रहा है।
कही गर्मी है तो
कही है नरमी देखो।
बदलते मौसम का भी
निराला सा अंदाज देखो।।
मौसम का पृथ्वी पर
बड़ा ही महत्व होता है।
मौसम से ही जीवन में
बहुत आनंद आता है।
कही पृथ्वी गर्म ठंडी
कही होती है हरीभरी।
इसलिए तो जीवन में
मौसम का बदलना जरूरी है।।
कभी पड़ती है मौसम की मार
तो मचता है हा हा कार।
तबाही का तब दृश्य
बहुत भयानक होता है।
छलकते बनते है आँसू
सभी की आँखों से तब।
दर्द की तब पराकाष्ठा का
कोई मापदंड नही होता।।
मौसम का बदलना लोगों
अच्छा और बुरा होता है।
लाभ हानि जैसा ही
इसका फल मिलता है।
अगर सच कहे हम तो
मौसम का बदलना जरूरी है।
तभी संसारिक जीवन का
चलना संभव होता है।।
बाल दिवस
पूर्व में किये थे अच्छे कर्म
तभी तो पाया मनुष्य जन्म।
क्या मनुष्य जन्म मिलना ही
इस दुनियाँ में काफी है ?
सोचो समझो और करो विचार
फिर निभाओं अपना दायित्व यार।
क्या हम दे पा रहे है
अपने बच्चों को अच्छे संस्कार।।
पेटकी भूख मासूम बच्चों से
क्या कुछ नहीं करवाती है।
जब खिलौनो से खेलने के दिन थे
तब उनसे खिलौने बिकवाती है।
मैदान में खेलने कूदने के दिनों में
उनसे मैदान साफ करवाती है।
स्वर्थी इंसान अपने सुख के लिए
मासूमो के बचपन को छीन लेती है।।
होना था शिक्षा के मंदिर में उन्हें
तब मंदिर के बाहर फूलमाला बेच रहा।
औरो की दुआओ के लिए खुदका
भविष्य ईश्वर के समाने मिटा रहा।
होनी थी जब किताबे हाथ में तब
भूख मिटाने के लिए किताबे बेच रहा।
और देश के निर्माताओं को सच का
दर्पण बिना शिक्षित होकर दिखा रहा।।
शर्म आती नहीं देशकी सरकार को
बालनिषेध कानून बनाना काफी हैं।
बच्चों को शिक्षित करने के लिए
भरपेट खाना के साथ शिक्षा दिलाये।
और बाल मजदूरी से उन्हें बचाये
और उनका बचपन उन्हें लौटाये।
और इस नेक काम में हम आप
मिलकर अपनी भूमिका निभाये।।
नये पुराने का मेल जोल
न हम बदले न तुम बदले
बदला तो जमाना है।
जमाने के सुर ताल
के अनुसार चलना है।
तो जमाने की रफ्तार को
तुम्हें पकड़ना पड़ेगा।
उसी में फिर तुमको
स्वयं को ढलना पड़ेगा।।
तुम्हारे जीने का अंदाज
वो ही पुराने वाला है।
नये जमाने से तुम्हें
नहीं है कोई समस्या।
फिर क्यों तुम पुराने को
सजाये बैठे हो दिलमें।
और नये लोगों को भी
सीख देते हो पुरानी।।
हम अपनी सभ्यता और
संस्कारों को नहीं भूले।
नये युग वालों को भी
शामिल करते है पुराने में।
यही अदा तुम्हारी तो
सभी खूब भाती है।
इसलिए तुम्हें हम सब
खूब चाहते है।।
अमर कर दो
खुशी की उम्मीदें लेकर
चले थे सेर करने को।
चिरागे दिलमें मोहब्बत के
जलाने को हम निकले।
अगर मोहब्बत सच्ची है
तो चिराग जल उठेगें।
मोहब्बत के दीपक फिर
दिल में जल उठेगें।।
तजुर्बा अब तक का मेरा
कहता है कुछ नया नया।
जो दिलमें बसते है लम्हें
खुशी उनसे मिलती है।
तमन्नाएँ है जो दिल में
उन्हें तुम पूरा कर लो।
बुझा दो आग दिलकी तुम
मिलकर अपने मेहबूब से।।
कभी खाई थी कसम
तुम्हें बहुत प्यार करेंगे।
अपने दिल के अंदर
तुम्हें हम बैठा के रहेंगे।
मिला है अब जो मौका
उसे तुम पूरा कर लो।
मोहब्बत तुम अपनी अब
जामाने में अमर कर दो।।
बेवफा मत कहना
गुजरी हुई मोहब्बत,
आती नहीं दुबारा।
कहता है दिल हमारा।।
थी खुशियाँ कुछ दिनों की,
और गम है उम्र भर का।
तन्हाइयों में रहकर,
रोयेंगे उम्र भर अब।
कुछ दिन गुजारे थे
इक साथ रहकर हमने।।
कहता है दिल हमारा
गुजरी हुई मोहब्बत,
आती नहीं दुबारा।
कहता है दिल हमारा।।
थे मुझसे तुम्हें मोहब्बत,
तो बेवफा न कहना मुझको।
हालात ऐसे हो गए थे,
की छोड़ना तुम्हें पड़ा था।
पर हर मेरी सांस पर,
लिखा था नाम तुम्हारा।।
कहता है दिल हमारा।
गुजरी हुई मोहब्बत,
आती नहीं दुबारा।
कहता है दिल हमारा।।
मेरे लिए ये जीना,
था मरने ही जैसा।
निकलेगा अब जनाजा
मेरी बारात बन के।
अच्छा है जो तुमने,
देखा नही ये नजारा।
कहता है दिल हमारा।
गुजरी हुई मोहब्बत,
आती नहीं दुबारा।
कहता है दिल हमारा।।
तुम मेरी हो
चाँदनी रात में खिल उठा दिल मेरा।
आज फिर से आ के बाग में।
अपने मेहबूब की यादों में।
खो गये आ के फिर हम यहाँ।।
हम तुम्हें याद करते रहते है
तुम हमें याद करते हो की नही।
दिलकी गैहराइयों में समाई हो तुम।
तुमसे बड़कर और कोई है ही नही।
चाँदनी रात में…….।।
तुमसे मेरा बहुत गैहरा नाता जो है।
दो दिल एक जान होते थे हम।
डर गये उस समय हम जामने से।
इसलिए हम एक हो पाए नही।
अब हाल दोनों का एक जैसा है।
न तुम सुखी हो न हम है सुखी।।
चाँदनी रात में……….।।
प्यार मोहब्बत कोई खेल होता नही।
दिलसे दिलका मिलन कोई खेल नही।
है मेरे बहुत आरमान दिल के सुनो।
मौत आने से पहले एक बार मिलो।
है अगर तुमको मुझसे प्यार सच्चा।
तो आकर के तुम बस मिलो।।
चाँदनी रात में खिल उठा दिल मेरा।
आज फिर से आ के बाग में।
अपने मेहबूब की यादों में।
खो गये आ के फिर हम यहाँ।।
रिश्तों का मोल
पुराने रिश्तें नातो का
नये से मेल नही होता।
पुरानी दोस्ती का भी
नये से मोल नही होता।
नये नये षडयंत्रों से
जीवन में बचना पड़ेगा।
नये और पुराने रिश्तों का
फर्क समझना पड़ेगा।।
सिलाई करने वाला यंत्र
पुराना हो या हो नया।
सिलाई करने के लिए
धागा तो लेना पड़ेगा।
अगर फट जाएँ कपड़ा
रफू तो करना पड़ेगा।
तभी पहनने लायक
शायद वो बन पायेगा।।
सिलाई पुरानी हो या नई
धागा तो निश्चित टूटेगा।
इसी तरह से रिश्तों का
कोई धागा तो टूटेगा।
फिर टूटे हुए धागे को
लगाना गाँठ पड़ेगा।
इसी तरह से जीवन की
डोरी को बंधना पड़ेगा।।
राम का नाम
राम कृष्ण हनुमान का
करते है हम गुणगान।
नित्य दिन मन्दिर जा के
भजे राम का नाम।
पर उनके कथनों का
नहीं करे पालन।
झूठे दिखावा में हम
सदा रहे बस मस्त।।
रोज जपे हम राम को
राम राम कहकर।
धारण करे हम वस्त्र को
राम राम लिखकर।
ऐसा करने से क्या
मिल जायेंगे हमें राम।
जीवन की सत्यता को
कुछ तो समझो तुम।।
राम कृष्ण हनुमान को
मन में बसाओं तुम।
दया धर्म की बातों को
दिलसे लगाओं तुम।
जीवन बदलेगा हे मानव
एक दिन तेरा।
कर्म प्रधान जीवन है
जो निश्चित बदलेगा।।
राम कृष्ण हनुमान का
करते है हम गुणगान।
नित्य दिन मन्दिर जा के
भजे राम का नाम,
भजे राम का नाम।।
प्रभु के अवतार
एक राज की हम सबको
बताते है एक बात।
जो राम है वो श्याम को
रोज याद करते है।
सीताराम और राधाकृष्ण जो है
दोनों ही एक के है अवतार।
इसलिए ही दोनों के युगो का
होता है संसार में गुणगान।।
लीलाएँ सब रची विष्णुजी ने
वरदान दिये थे सबको प्रभुजी ने।
पाकर के वो वरदान सब
बन गये थे अहंकारी जब।
फिर अंत उनका करने को
नारायण ने लिया अवतार।
फिर किया उन सब का
राम-कृष्ण ने देखो संहार।।
जब-जब आया था संकट
देखो इस संसार पर।
तब-तब नारायण ने फिर
लिये पृथ्वी पर अवतार।
और स्थापित किया उन्होंने
फिर अमन शांति का राज्य।
जिसे लोग कहने लगे थे की
अब आ गया राम राज्य,
अब आ गया राम राज्य।।
बेटी की याद
बेटी की याद दिलसे निकलती ही नही।
जिस दिन से ब्याह किया हम लोगों तेरा।
उस दिन से ही घर सुना-सुना हो गया मेरा।
कितना और तुम मुझे रुलाओगें पापाजी,
रुलाओगें पापाजी।
मैं भी कहाँ भूल पाई हूँ तुम्हें।।
जिस रोज घर में आई थी लक्ष्मी बनकर।
घर द्वार और आंगन तब खिल उठा था।
तेरी किलकारीयों से गूंज उठा था तब घर।
वो याद मेरे दिलसे बेटी निकलती ही नहीं,
निकलती ही नहीं।
बस याद तेरी आते रहती है।।
अब हाल मेरा बेटी बहुत हो गया बुरा।
तेरी माँ के जाने से हो गया हूँ अकेला।
बेटा और बहू तो विदेश में रहने लगे है।
बस बातचीत उनसे होती है फोन पे,
होती है फोन पे।।
मैं अब चार दिवारी में बंद होकर रह गया।।
बस या ही अब मेरे साथ रहती है।
सुखदुख के पल को मैं याद करता हूँ।
तेरी कमी मुझे सबसे ज्यादा खलती है।
दफ्तर से घर आते ही सुनता था मैं तेरी,
सुनता था मैं तेरी।
अब याद बहुत आती हो बेटी तुम।।
भाई दूज
रिश्तों में सबसे प्यारा है
भाई दूज त्यौहार हमारा।
बना रहे स्नेह प्यार,
भाई-बहिन में सदा सदा।
भाई-दूज के कारण बहिन
मिलने आती भाई से।
और याद करा देती है
भाई बहिन के रिश्तों को।।
संबंध हमेशा बना रहे,
डोर रिश्तों की बंधे रहे।
बना रहे अपास में प्यार
मायके के सब जनो से।
इन्हीं सबको जोड़ने तो
आता है भाई-दूज का त्योहार।
मिलना मिलाप हो जाता है
हर साल में देखो एक बार।
हर साल में देखो एक बार।।
कैसे रक्षा की थी कृष्ण ने
अपनी बहिन द्रोपती की।
सबकी आंखों में वो दृश्य
झलकता है आज भी।
धागे के बंध से ही कृष्ण
बहिन रक्षा को आये थे।
और दिया वचन था रक्षा का,
तो बहिन प्रति निभाये थे।।
भाई बहिन के स्नेह प्यार का
कैसा है ये अनूठा बंध।
जिसको के कहते है लोग
भाई दूज भाई दूज भाई दूज।।
जीवन उलझा सुलझा हुआ
उलझी किस्मत सुलझी जिंदगी
किसको क्या दे सकती है।
जीने मरने में भी तो
किस्मत साथ देती है।
पर करना तुझे पड़ेगा
इसके लिए परिश्रम।
छोड़ दे तू चिंता
फल मेहनत का मिलेगा।।
खुदके कर्मों से बढ़कर
नहीं आधार जीवन का।
लेकर संकल्प जीवन में
तुझको चलना पड़ेगा।
मिट जायेगा अंधेरा
जब तू अच्छा सोचेगा।
और इसका प्रमाण तुझे
फिर दर्पण दिखायेगा।।
सुख दुख मन की सोच है
करे विचार इस पर।
जो सोचे सिर्फ सुख को
उस पर ही दुख आये।
इसलिए कहता संजय
जो दुख को अपनाये।
वही सुख शांति यारो
इस संसार में पाये।।
दीपावली का दिन
जग मग जग मग ज्योत जले
चारो तरफ प्रकाश फैले।
देख के दृश्य ये मन मेरा
अंदर अंदर खुश होवे।
जग मग जग मग ज्योत जले….।।
दिल पर पड़े जब कोई छाया
अंदर से तब वो मचलने उठे।
और डूबने लगे फिर ख्यावों में
सपने जिस संग देख रहा।
अपनी दुनियाँ अपने ख्याव
जी रहा हूँ इसमें ही आज।
क्या कोई कर सकता मेरा
मेरी जिंदगी मेरा सबेरा।।
जग मग जग मग ज्योत जले….।।
धुनी रमा के बैठे है
और प्यार की बंशी बाजा रहे।
मन कोमल और आँखे गीली
जो दीप प्यार का जला रही।
तब चंचल मन भी मेरा
भटक रहा प्यार के सागर में।
और नाप रहा कल्पनाओं में
इस प्यार भरे सागर को।।
जग मग जग मग ज्योत जले….।।
जीना लगता है अब बेकार
सच में उनके जाने के बाद।
जब वो होती थी आसपास
तो दिल खिल उठता था ।
पर अब न दिल खिलता है
और न मन मचलता है।
बस अपनी बारी आने का
अब कर रहा इंतजार।।
जग मग जग मग ज्योत जले….।।
लक्ष्मी जी की पूजा
देखो देखो लोगों अब तुम
आ गया लक्ष्मी पूजन का दिन।
कैसे कैसे और क्यों हम सब
मनाते आ रहे दीपावली को।
अनेक मान्यता है देखो इसकी
और सब का है राज अलग।
पर हर जाति समूहदाय के लोग
दीपावली को मनाते हैं अलग अलग।
खुशियों का इजहार करने को
दीप जलाते है घर आंगन में।
देख रोशनी को जब लक्ष्मीजी
करती है प्रवेश घरों में।
क्योंकि लक्ष्मी तो चंचल है
इसलिए घूमने निकलती है रात में।
देख रोशनी और स्वच्छता को वो
तब कर जाती है प्रवेश उधर।।
इसलिए सबसे कहता हूँ
मन के भावों को करो निर्मल।
पूजा आदि की कर तैयारी
शुध्द भावों से स्मरण करो।
तेरे मन और घर में लक्ष्मीजी
फिर निश्चित प्रवेश करेंगी।।
दीपावली के शुभ अवसर पर
कुछ तो तुम अच्छा काम करो।
स्नेह प्यार और आदर देकर के
ले लो बड़े बढ़ो का आशीष तुम।
चरण वंदना करो तुम सब की
और पा लो आशीर्वाद तुम।
देकर अपना आशीष तुझे वो
धन्य स्वयं को भी मानेंगे।।
धनतेरस
चहात तो रखते है
धन की सभी जन ।
पर उस धन का वो
उपयोग नही करते।
धन आने पर बंद,
तिजोरी में करते है।
पर लक्ष्मीजी तो लोगों
चंचल होती है।
तो उन्हें कैद तुम
कैसे कर सकते हो।।
धन और विद्या में
बहुत अंतर होता है।
दोनों का मिलन भी
बहुत कम होता है।
वास जहाँ लक्ष्मीजी करती है
अभाव वहाँ सरास्वती का होता है।
बड़ा ही अजीब खेल,
उस विद्यता ने रचा है।
जहाँ दोनों का साथ
कम ही रहता है।।
विद्या से जो करते है,
धन का उपयोग।
वही पुण्यात्मा और
दानवीर कहलाते है।
इसलिए समाज में,
उच्च स्थान पाते है।
और जरूरत मंदो को,
उच्च शिक्षा दिलाते है।
और शिक्षित समाज का
निर्माण कर पाते है।।
दीपावली मनाने का उद्देश्य
चलो लेते है हम संकल्प
इस दीपावली पर कुछ।
नही चलाएंगे अब से
फटके और आतिशबाजी।
और रोकेंगे हम मिलकर
जीव हिंसा को इस बार।
करेंगे भावों को निर्मल
और पूजेंगे ईश्वर को।।
हमारे ग्रंथो में मिलता है
दीपावली का वर्णन।
मनाते क्यों है हम सब
इस त्यौहार को मिलकर।
अलग अलग मान्यताएँ है
दीपावली को मनाने की।
जैनों के चौबीसवे तीर्थंकर
गये थे इस दिन मोक्ष।।
राक्षसो का अंत करके
जब लौटे थे जानकी श्रीराम।
तो स्वागत में अयोध्यावासीयों ने
जलाये थे उस समय दीपक।
और हिंसा पर अहिंसा का
मनाया था ये दिवस।
जिसे हम सब कहते है
दीपावली का त्यौहार।।
कुछ लोगों की मान्यताएँ है
की धन की देवी लक्ष्मीजी।
कार्तिक माह में अक्सर
गमन करती रहती है।
इसलिए उन्हें बुलाने को
घरों में जलाते है दीपक।
की रोशनी देखकर देवी
करें हमारे घर में प्रवेश।।
जिसे जो जो समझना है
उसे वो ही जाने माने।
हमें तो श्रृध्दा भक्ति का
मिलता है इस दिन मौका।
इसलिए मनाते है हम
दीपावली के त्यौहार को।
और अपने अपने धर्मानुसार
बस करते है पूजा और भक्ति।।
दीप जलाओं
दीप जलाओ मिलकर सबजन।
दूर करो अंधकार को तुम।
घर में रोशनी कर लो अपने।
इस दीपावली पर सबजन।।
घर का कचड़ा साफ करो तुम।
और मनको भी तुम शुध्द करो।
जगमग कर दो गली मौहल्ले।
और रोशन कर लो अपने घरको।
खुशीयाँ भर दो दिलों में सबके।।
इस दिपावली पर सबजन।।
घर-घर जाकर खुशीयाँ बाटो
और देते जाओं बधाईयाँ तुम।
तुम्हें मिलेगा सदा ही आशीष
अपने बड़े बूढ़े और गुरुजन का।
मिलजुल कर तुम रहो सभी जन
दीपावली के इस त्यौहार पर।
तभी मिलेगी धन संपदा तुमको
इस दिपावली के अवसर पर।।
दीप जलाओ मिलकर सबजन
दूर करो अंधकार को तुम।
घर में रोशनी कर लो अपने।
इस दीपावली पर सबजन।।
फिल्मी दुनियाँ
आज फिर से मिला मुझको
एक यात्रा करने का मौका।
इस बार साथ मिले मुझको
कुछ फिल्मी दुनियाँ के लोग।
जो भोपाल जा रहे थे
किसी फिल्म सूटिंग के लिए।
जो करते है हीरो हीरोईन और
अन्यो के कपड़ो का डिजाइन ।।
बातों बातों में बताया उन्होंने
फिल्मी दुनियाँ के बारे में।
कैसे क्या क्या होता है
मुंबई की फिल्मी दुनियाँ में।
किस तरह से करते है
फिल्म बनाने की तैयारी।
कितने लोगों की होती है
इस कार्य में भागेदारी।।
छोटे बड़े और आधुनिक यंत्रों की
होती है इसमें भागेदारी।
इसी तरह से लोगों की भी
होती है इसमें जिम्मेदारी।
सबको मिलकर करना पड़ता
अपना अपना रोल अदा।
तब जाकर बन पाती है
एक मनोरंजक फिल्म ।।
शोषण भी सबका होता है
चाहे हो हीरो और हीरोइन।
नीचे से ऊपर तक का
ऊपर से नीचे तक का।
सबका यहा पर होता है
कुछ न कुछ तो शोषण।
चाहे क्यों न हो फिल्म में
वो हीरो और हीरोइन।
पर काम की खातिर सबको
सब कुछ सहना पड़ता है।।
कर्म-भूमि
बहुत सुहाना मौसम है।
देखो तुम महाराष्ट्र का।
कही है सर्दी गर्मी तो।
कही है वर्षा और ठंडी।।
जन जीवन अस्त व्यस्त हुआ है।
देखो नर-नारी पशु-पक्षी का।
इधर उधर को भाग रहे है।
अपनी अपनी सुविधा अनुसार।।
कोई खुश है कोई दुखी है।
इस मानव संसार में देखो।
सोच समझ सबकी भिन है।
इस दुनियाँ के लोगों की।।
पापी पेट की खातिर देखो।
भटक रहा है वो यहाँ वहाँ।
जहाँ मिले उसको काम-धाम।
वही बन जाती उसकी कर्म-भूमि।।
पर्यावरण को सुरक्षित रखे : गीत
कदम से कदम मिलते चलो।
देश के पर्यावरण को बचाते चलो।
राह में जो भी मिले लोग।
उन्हें पर्यावरण के बारे में बताते चलो।
कदम से कदम……..।।
अभी न बचाओगे, पर्यवरण को तो।
बहुत देर फिर हो जाएगी।
दिल से वृक्षारोपण करने का,
जज्बा तुम जगाओ।
इससे ही हरयाली आएगी,
वातावरण हो जाएगा ठंडा।
कदम से कदम मिलते चलो..…..।।
जो भी करे भारत माँ से प्यार।
उसे वृक्षारोपण खुद और
लोगो को लगाने हेतु प्रेरीत करना ।
इस संदेह को सबके दिलों में बैठते चलो ।
देश का पर्यावरण…….।।
जैसे घर के बच्चों को पालो,
इसको भी साथ में पालो।
ये वो फल है,
जो आगे चल कर देंगे,
तुम्हारे बच्चो को बहुत ठंडक।
इसलिए संजय कहता तुम सब से,
इसको दिल से अपनाते चलो।
देश के पर्यावरण को ….।।
कदम से कदम मिलाकर ….।।
हमारी वेदना
बताता हूँ सभी को आज।
इस दुनियां की परिभाषा।
जिसे सुनकर सभी जन।
बहुत हैरान हो जाते है।।
अगर मिल जाए वजह तो
बहुत मुस्कराते है हम सब।
किसी की हालत पर तब
नही करते हम कोई रहम।
उड़ते है खिल्ली तब हम
जब कोई मिल जाये दुश्मन।।
जमाना आज का देखो
किसी सगे का है नही।
मिले जिसको भी मौका
लूट लेता बनकर अपना।
इसी तरह से पहले भी
होता रहता था घरों में।
पर कुछ मर्यादों के कारण
नही कुछ कहते थे वो।।
पुराने समय का देखो
अगल अंदाज होता था।
सभी एक छत के नीचे
रहते थे हिल मिलकर।
टकराते थे तब भी वर्तन
हमारे संयुक्त परिवार में।
पर घर का मुखिया तब
संभाल लेते था सबको।।
प्यार अमर है
चाँद सितारे चमक उठे है।
देखो तुम आकाश में।
रात की रानी बुला रही है।
आ जाओ तुम बाग में।।
महक उठा घर का आँगन।
रात रानी के फूलो से।
झूम रही रात की रानी
तेरे बस आ जाने से।।
कैसे अपने दिलको समझाए।
हम अब ऐसे मौहल में।
डोल रहा है इधर-उधर मन।
कैसे इसको शांत करे हम।।
रखा कदम जब से तुमने
मेरे घर के आँगन में।
काया ही बदल गई है।
देखो घर के आँगन की।
कर्ज तुम्हारा चढ़ गया है।
देखो आज से मेरे ऊपर।
कैसे इसको उतार पाऊँगा।
अपने इस मानव जीवन में।।
जन्म द्वारा लेना पडे़गा।
तेरा कर्ज उतारने को।
बनकर फिर से तेरा मेहबूब।
प्यार तुझसे करना पड़ेगा।।
करवा चौथा
करवा चौथ का ये
त्यौहार बहुत प्यारा है।
जो पत्नी पति के
आयु के लिए व्रत रखती है।
और साथ पति भी पत्नी के
साथ व्रत रखते है।
और दोनों लम्बी आयु के
के लिए पूजा करते है।।
रिश्तो का बंधन
कही छूट न जाये।
और डोर रिश्तों की
कही टूट न जाये।
रिश्ते होते है बहुत
जीवन में अनमोल।
इसलिए रिश्तो को
दिलमें सजा के रखना।।
बदल जाए परिस्थितियां
भले ही जिंदगी में।
थाम के रखना डोर
अपने रिश्तों की।
पैसा तो आता जाता है
सबके जीवन में।
पर काम आते है
विपत्तियों में रिश्ते ही।।
जीवन की डोर
बहुत नाजुक होती है।
जो किसी भी समय
टूट सकती है।
इसलिए कहता हूँ में
रिश्तो में आंनद बरसाए।
और पति पत्नी के
रिश्ते में बाहर लाये।
और एकदूजे के लिए जीकर
दम्पतिक धर्म निभाते है।।
प्यार का कर्ज
चाँद सितारे चमक रहे है।
नीले गगन में देखो तुम।
प्रीतम प्यारे को बुलाने।
महक उठा है घर आँगन।।
सहज लग रहा है हमको।
आज हमारा घर आँगन।
फूल-पत्ती और डालियाँ से
झूम उठा है घर आँगन।।
रखे कदम जब से तुमने
मेरी घर आँगन में प्रीतम।
महक उठा है मेरा जीवन
देखो अपनी आँखो से प्रीतम।।
कर्ज तुम्हारा है हम पर।
जिसको उतार न पाऊँगा।
अगले जीवन में मिलकर के।
शायद इस कर्ज उतार पाऊँगा।।
पति की आयु का व्रत
दर्द सहने की अब
आदत सी हो गई है।
प्यार किया है तो
इसे सहना पड़ेगा।
कांटो पर चलकर
मोहब्बत को पाना पड़ेगा।
बीत जायेंगे दुखभरे दिन
कांटो पर चलचल कर।
और मोहब्बत करने वाली को
समाने आना पड़ेगा।।
जब प्रेमी प्रेमिका थे
तब की बात अगल थी।
जिंदगी जीने का तबका
अंदाज भी अलग था।
अब पति पत्नी बनकर
दम्पतिक जीवन जी रहे है।
हर धार्मिक रीति रिवाज
और त्यौहारों को मान रहे है।
इसी श्रृंखला में पत्नी
करवाचौथ को समझ रही है।
और पति की लम्बी
आयु का व्रत रखकर।
पत्नी अपना धर्म
आज निभा रही है।
मानो सावित्री की याद
हमे दिला रही है।।
कितने तीज त्यौहार और व्रत
सिर्फ पत्नियाँ ही करती है।
और अपने परिवार का
सुरक्षा कवच स्वयं बनती है।
कभी ये सीता दुर्गा बनकर
अपना रूप दिखती है।
और रक्षा करने अपने घर की
पुरुषों जैसी बन जाती है।।
आने वाले करवा चौथ के पवन
त्यौहार पर सभी पाठकों को अग्रिम
बधाई और शुभकामनाएं।
आचार्यश्री विद्या सागर की महिमा
गुरु की महिमा
गुरु ही जाने।
भक्त उन्हें तो
भगवान पुकारे।
जो भी श्रध्दा
भाव से पुकारे।
दर्शन वो सब पावे।
ऐसे आचार्यश्री की
जय जय बोलो।
मुक्ति के पथ को
खुद समझ लो।।
कितने पावन
चरण है उनके।
जहाँ जहाँ पड़ते
तीर्थ क्षैत्र वो बनते।।
ऐसे ज्ञान के सागर को।
सब श्रध्दा से
वंदन है करते।।
ऐसे आचार्यश्री की
ऐसे आचार्यश्री की
जय जय बोलो।
मुक्ति के पथ को
खुद समझ लो।।
क्षमा सुधा और
योगसागर जैसे।
प्रतिभाशाली शिष्य है
गुरुवर के।
चारो दिशाओं में
ये विखरे है।
धर्म प्रभावना ये
बड़ा रहे है।।
ऐसे आचार्यश्री की
जय जय बोलो।
मुक्ति के पथ को
खुद समझ लो।।
जिन वाणी के
प्राण है गुरुवर।
ज्ञान की गंगा
बहती मुख से।
जो भी शरण
इनके है आता।
धर्म मार्ग को
वो समझ जाता।।
ऐसे आचार्यश्री की
जय जय बोलो।
मुक्ति के पथ को
खुद समझ लो।।
बुन्देखण्ड की
जान है गुरुवर।
घर घर में
बसते है मुनिवर।
धर्म प्रभावना बहाते
शान बुन्देखण्ड की कहलाते।
मोक्ष मार्ग का
पथ दिखला कर।
आत्म कल्याण के
पथ पर चलाते।।
ऐसे आचार्यश्री की
जय जय बोलो।
मुक्ति के पथ को
खुद समझ लो।।
कितने पशुओं की
हत्या रुकवाये।
जीव दया केंद
अनेक खुलवाये।
स्वभिलंबी बनाने को
कितने हस्तकरधा लगवाए।
इंसानों के प्राण बचाने
भाग्यादोय आदि खुलवाये।।
ऐसे आचार्यश्री की
जय जय बोलो।
मुक्ति के पथ को
खुद समझ लो।।
शिक्षा दीक्षा के लिए
ब्रह्मचारी आश्रम और
प्रतिभा स्थली खुलवाये।
ज्ञान ध्यान पाकर के
बने तपस्वी और उच्चाधिकारी।
भ्रष्टाचार को ये
लोग मिटावे।
महावीर राज ये
फिर से बसावे।।
ऐसे आचार्यश्री की
जय जय बोलो।
मुक्ति के पथ को
खुद समझ लो।।
ज्ञान के सागर विद्या सागर
हो हो हो
मुझे क्षमा करना ,
ओ मुनिराज।
मुझे क्षमा करना ,
ओ मुनिराज।
सबसे पहले लूँगा,
आचार्य श्री का नाम।
सबसे पहले लूँगा
विद्यासागर का नाम।।
त्याग और तपस्या,
कि मूरत है वो।
निश्चय और व्यवहार,
कि सूरत है वो।
ज्ञान का इतना,
भरा है भंडार ।
जितना जी चाहे
ले जाओ तुम आज।
हो हो हो
मुझे क्षमा करना,
ओ मुनिराज।
मुझे क्षमा करना,
ओ मुनिराज।।
आगम अनुसार चलते है वो।
आगम ही उनका है आधार।
अहिंसा के वो पुजारी है।
गऊ रक्षा के हितेसी है।
करते है जहां चातुर्मास,
तीर्थ बन जाता है वो क्षैत्र।।
हो हो
मुझे क्षमा करना,
ओ मुनिराज।
मुझे क्षमा करना,
ओ मुनिराज।।
नमोऽस्तु गुरुवर
उपरोक्त भजन शरद पूर्णिमा आचार्यश्री के गुरु गुण स्मृति दिवस पर उनके चरणों में संजय जैन मुंबई के द्वारा समर्पित है।
दिवाना हूँ
बहुत प्यारी है तेरी हंसी।
जिस का में दीवाने हूँ।
मुस्कराती हो हल्का सा तुम।
फूल दिल में खिल जाते है।।
कसम खुदा की क्या बनाया है।
लगता है फुरसत में तुम्हें सजाया है।
कुछ तो किया होगा तुमने ?
तभी तो खुदा ने इतना सुंदर बनाया हैं।।
बहुत नसीब वाला होगा वो।
जिसको मिलेगा प्यार तेरा।
मैं तो कब से दिवाना हूँ तेरा।
पर तेरा मुझ को कुछ पता नहीं ।।
डरता हूँ तुझे छूने से मैं।
कही कोई दाग न लग जाये।
खुदा की ये मूरत बिगड़ न जाये।
और इल्जाम इसका हम पर न आये।।
इसलिए देखकर ही प्यार करता हूँ।
दिल की बातें दिल से करता हूँ।
क्योंकि में बेपनाह मोहब्बत करता हूँ।
पर इस जमाने से डरता हूँ।।
जैन क्या होते है
जैन के घर की रोटी,
जैन के घर की दाल।
छप्पन भोग में भी
नही ऐसा कमाल।
जैन घर का आचार।
बदल देता है विचार।।
जैन घर का पानी।
शुद्ध करें वाणी।
जैन के घर के फल और फूल।
उतार देती है जन्मों -जन्मों की घूल।।
जैन की छाया,
बदल देती है काया।
जैन के घर का रायता।
मिलती है चारों ओर से सहायता।।
जैन के घर के आम।
नई सुबह नई शाम।
जैन के घर का हलवा।
दिखाता है जलवा।।
जैन की सेवा।
मिलता है मिश्री और मेवा।
जय जिनेंद्र जैन स्नान।
चारों धाम के तीर्थ के समान।।
जैन को जो पलको पर सजाऐ।
उस का कुल सवर जाये।
जैन जो हो सवाली।
उसकी हर दिन होली रात दीवाली।।
जय-जय जैन धर्म की जय,
जय-जय जैन धर्म की जय।।
दर्शन से मिल जाता
तेरे दर पर जो आता है
वो कुछ न कुछ तो पाता है।
इसलिए तेरे दर से
कोई भूखा नहीं जाता।
सभी को अपने होने का
तू एहसास कराती है।
इसलिए बुलाबा भी
सबको तुम भेजती हो।।
सभी की किस्मत में
कहाँ है माँ तेरे दर्शन।
बड़ी सौ भाग्यशाली है
जिसे मिलते तेरे दर्शन।
बड़े आभागे है वो लोग
जो पहुँचकर भी वहाँ पर।
नहीं कर पाते तेरे दर्शन
और घर को लौट जाते।।
तेरा दर का रहा इतिहास
कोई खाली नहीं लौटा।
भले ही तेरे दर्शनों से
रहा हो बिल्कुल वंचित वो।
पर उसकी इतनी श्रध्दा ने
तुझसे कुछ तो पा लिया।
और माँ होने का तू ने भी
निभा दिया अपना फर्ज।।
दशहरे पर रावण की पुकार
रावण कहता है
एक बात मेरी सुन लो।
क्यों वर्षो से मुझे यू
जलाये जा रहे हो।
फिर भी तुम मुझे जला
नहीं प् रहे हो।
हर वर्ष जलाते जलाते
थक जाओगे।
और एक दिन खुद ही
जल जाओगे।।
मैंने सीता को हरा,
हरि के लिए।
राक्षक कुल की
मुक्ति के लिये।
मैंने प्रभु दर्शन कराये
राक्षक जाती को।
तुम तो मानव होकर भी
नहीं कर पाए।।
आज रावण से
राम डरते है।
क्योंकि आज लक्ष्मण ही
सीता को हरते है।
आज घर घर में
छुपे हुए है रावण।
आग कितने रावणो को
तुम लगाओगे।।
सीता को हरना तो
एक बहाना था।
मुझको राम हाथो से
मुक्ति पाना था।
में तो मरकर भी
राम को पा गया।
तुम तो जीकर भी
राम को न पा रहे हो।।
दोस्तों वैसे तो रावण बहुत ही ज्ञानी और वीर युध्दा था। उसकी भक्ति में बहुत ही शक्ति थी जिसके कारण ही प्रभु से वरदान उसे मिलते जाते थे। क्या आज इस कलयुग में कोई व्यक्ति ऐसा है। जो अपने आप को राम मान्यता हो या उसका चरित्र राम जैसा हो ? रावण ने तो सीता को हरके भी जबरजस्ती ……। कुछ भी नहीं किया और आज के इस युग में तो क्या हो रहा है उसे बताने की जरूरत नहीं है।
माँ पर करे विश्वास
अपनी भक्ति करने का
हे माँ तुम अधिकार दे दो।
मेरी भक्ति का मुझको
हे माँ तुम प्रसाद दे दो।
मुझे धन दौलत नहीं
हे माँ बस दर्शन दे दो।
और अपना हाथ हे माँ
मेरे सिर पर रख दो।।
बहुत दौड़ा हूँ मैं
तुम्हारे दर्शन के लिए।
मगर दर्शन नहीं मिले
मेरे अभिमान के चलते।
मगर आप तो माँ है
हम सब बच्चों की।
तो कैसे भूल सकती हो
तुम अपने बच्चों को।।
समझ आया तेरा ये
दया का भाव हे माँ।
जग जननी है तू माँ
जो सब कुछ जानती है।
फिर क्यों कष्ट देती हो
तुम अपने बच्चो को।
शायद संसार को समझाने
तुम्हीं ये खेल रचती हो।।
तेरे दर से हे माँ
कोई खाली नहीं जाता।
दुआ उसकी जो भी हो
वो पूरी तुम कर देती हो।
तभी तो भक्तगण तेरा
जपा करते है तेरा नाम।
और तुम भी माँ होने का
सदा निभाती हो फर्ज।।
माँ शारदे : गीत/ भजन
वो ज्ञान की माता है
सरस्वती नाम है उनका-२।
वो विद्या की माता है।
शारदा माता नाम उनका।
वो ज्ञान की माता है।।
हाय रे मनका पागलपन
मुझ से लिखवाता है।
क्या मुझे लिखना
क्या वो लिखवता
ये तो वो ही जाने-२।
मन में मेरे वो आकर
लिखवाते है मुझसे।।
वो ज्ञान की माता है..।।
इधर जिंदगी झूम रही है
उधर मौत खड़ी।
कोई क्या जाने कब आ जाये
मेरा बुलावा जी-२।
और क्या लिखना
मुझको रह गया है अब बाकी।
वो ज्ञान की माता है…।।
मेरे दिल और ध्यान में सदा
रहती है माता जी।
जो कुछ भी मैं लिखता और गाता
उनके कृपा दृष्टि से-२।
मैं उनके चरणो में
वंदन बराम्बार करता।
वो ज्ञान की माता है..।।
इश्क बेहिसाब हो तो
न दिल मेरा लगता है
न मन मेरा लगता है।
हुआ है जब से इश्क
सब बेकार लगता है।
इसलिए तो इश्क एक
बहुत बड़ा रोग होता है।
जिसे लग जाये वो
सदा बीमार रहता है।।
जमाने में हमने बहुत
आशिक और दीवाने देखे।
जो बस एक ही धुनी
रमाते रहते है।
न जीते है न मरते है
अपने में खोये रहते है।
और इश्क को ही
अपना मसीहा समझते है।।
डगर आसान नहीं होती
इश्क को करने वालो की।
बिछे है पग पग पर कांटे
तो चुभन सहना पड़ेगा।
और अपने इश्क पर
दाग नहीं लगाने दूँगा।
और अपने प्यार को
अमर कर जाऊंगा।।
माँ आशीर्वाद दे दो
आया हूँ हे माँ तेरी
मैं ज्योत जलाने को।
दे देना आशीर्वाद तुम
अपने हाथो से।
आया हूँ हे माँ तेरी
मैं ज्योत जलाने को।
दे देना आशीर्वाद तुम
अपने हाथो से …।।
दिलमें तुम बसे हो
मन में भी तुम सजे हो।
सपने में तुम दिखते हो
पर दर्शन नही देते हो।
श्रृध्दा और भक्ति से
पूजता हूँ मैं निस दिन।
नवरात्रि में हे माँ तुम..
इस बार दे दो दर्शन।।
आया हूँ हे माँ तेरी
मैं ज्योत जलाने को…।।
हर रंग में तुम दिखती हो
हर दिलमें तुम बसती हो।
भक्तो की भी तुम बातें
बहुत ही समझती हो।
आई है देखो नवरात्रि
इस बार खास लेकर।
इसलिए हे माँ तेरे
मैं द्वारे पर खड़ा हूँ।
अब मुझको दर्शन देना..
या खाली लौटाना देना।।
आया हूँ हे माँ तेरी
मैं ज्योत जलाने को।।
झोली पड़ी है खाली
हे माँ तेरे बच्चे की।
घर में भी है सुना-सुना
तेरे बिना अधूरा।
भरो दो नवरात्रि में
हे माँ अब मेरी झोली।
गुण गान हम करेगें ..
सात जन्मों तक तेरा।।
आया हूँ हे माँ तेरी
मैं ज्योत जलाने को।
दे देना आशीर्वाद तुम
अपने हाथो से।।
यादों का सफर
बहुत दूर है तुम्हारे घर से
हमारे घर का किनारा।
इसलिए हवा के झोके से पूँछ लेते है।
रोज हालचाल कसम से तुम्हारा।।
लोग अक्सर कहते है कि
जिन्दा रहे तो फिर मिलेंगें।
पर मेरी जान कहती है।
की निरंतर मिलते रहेंगे
तो ही जिन्दा रहेंगे।।
दर्द कितना खुश नसीब है
जिसे पा कर लोग।
अपने पराये को समझकर
दिल से याद करते है।
दौलत कितनी वदनसीब है
जिसे पाकर अक्सर लोग।
अपने और अपनो को
निश्चित भूल जाते है।।
इसलिए तो छोड़ दिया हमने।
सबको बिना वजह परेशान करना।
जब कोई अपना समझता ही नहीं।
तो उन्हें याद दिलाकर क्या करना।।
जिंदगी गुजर गई, सबको खुश करने में।
जो खुश हुए वो अपने नहीं थे।
जो अपने थे मेरी जान।
वो कभी खुश हुये ही नहीं।।
इसलिए संजय कहता है।
कर्मो से डरिये, ईश्वर से नहीं।
ईश्वर माफ़ कर देता है।
परन्तु तुम्हारे खुद के कर्म नहीं।।
अपनो खो लूट रहे
( बुंदेली गीत )
अपने बनकर देखो तुम
अपनो खो ही लूट रहे।
मान सम्मान अपना खोकर
अपना ही घर क्यों फूक रहे।।
बाँट रहे हो अपने आपखो
फिर भी गलती मनात नईयों।
देश की कमजोरीयों पर तुम
खूब ही बार करत हो।
गलत बात खो भी तुम देखो
कैसे सही बातलात हो।
अपनी गलतियों खो तुम
कैसे खूब छुपात हो।।
देश हमारो सोने जैसे
और स्वर्ग जैसे सुंदर है।
फिर भी अपनो देश छोड़कर
औरों के तुम गुणगान करत।
तनक शर्म भी आत नही तुमखो
ओइ देश की करो बुराई।
जोन देश में रहत और खाऊत
ओहि देश की करो बुराई।।
अपने और अपनो खो देखो
कैसे तुमने लूट लिया।
लूटका माल रखकर अपने
दोस्तो में ही बाँट दिया।
अमन चैन से रहने वालों के
घर में आग तुमने लगा दिया।
कैसे तुम इंसान हो और
कैसी तुम्हारी इंसानियत।।
अपने बनकर देखो तुम
अपनो खो ही लूट रहे।
मान सम्मान अपना खोकर
अपना ही घर क्यों फूक रहे।।
माँ का ध्यान करो
हे माँ जगदम्बे सुन लो
मोरी एक प्रार्थना तुम।
इस दुनिया से मोहे उठा लो
मुझे पर करो एहसान तुम।
झूठे साँच के चक्कर में देखो
कितने घर द्वारा उजड़ रहे।
फिर भी माँ तुम देखो तो
कैसे माँ बाप को छोड़ रहे।।
देख दुनिया की हालत को
हम अब तो उकता गए है।
अपने मन के भावों को
बस मन में ही दवा रहे।
कहत नहीं कुछ कोऊ से
इस दुनिया के बारे में।
अपने आपको देख रहे
और अपने मनकी सुन रहे।।
कभऊ कभऊ तो देखो माँ
हमरो मन करात है की।
छोड़ चले जाये दुनियां खो
अपने मनखो शांत करन।
अपने मन के विचारो खो
हे माँ हम तुमसे कह रहे है।
और घर-घर पीड़ा खो भी
हे माँ हम तुमसे कह रहे है।।
तनक-तनक सी बातों पे
तुम क्यों रूठ जाऊत हो।
मान मनाऊआ के चक्कर में
अपने दिल खो दुखाऊत हो।
जबकि तुम्हें मालूम है कि
हमें ये सब नहीं आऊत है।
फिर भी अपनों और हमरो
दिल खो बहुत दुखाऊत हो।।
मोरे दिलखो तो तुम समझो
और अपने दिलकी बात कहो।
खुदकी और हमरे मनकी
बातों खो तुम माँ से कह दो।
दिलकी रानी तुम हो मोरी
दिलमें ही तुम राज करो।
छोड़ माँ का ध्यान तुम
क्यों औरो पर तुम ध्यान रखो।।
मानव हूँ तो…
जाने अंजान में
हुई जो भी भूल।
माफ कर देना आप
समझ मुझे नादान।
क्योंकि मैं मानव हूँ
गलतियाँ करना स्वभाव है।
इसलिए तो मांग रहा हूँ
मन वचन काय से क्षमा।।
मानवता का पाठ
बहुत पढ़ा लिखा हूँ।
पर मानवता के पथ पर
नहीं चल सका हूँ।
सोच समझ में भी
बहुत अंतर रखता हूँ।
पर वाणी पर अपनी
अंकुश नही लगा पाया हूँ।।
बातें हम सब करते
मंचों से तो बड़ी-बड़ी।
पर अमल नही कर पाते
खुदके जीवन में कभी।
यही अंतर होता है
कहनी और करनी का।
इसलिए तो मानव का
मानव दुश्मन होता है।।
देव वंदना करता हूँ
धर्म साधना करता हूँ।
सत्य अहिंसा के पथ पर
चल नही पाता हूँ।
मोह माया में देखो
कैसे उलझ रहता हूँ।
क्योंकि मैं एक मानव हूँ
इसलिए ये सब करता हूँ।।
माँ के कितने रूप
मन मंदिर में आन विराजो
मेंहर वाली मातारानी।
दर्शन की अभिलाषा लेकर
आ पहुँच है मेंहर में।
अपने दर्शन देने हे माँ
बुला लो हमें मंदिर में।
हम तो तेरे बच्चे है
काहे घूमा रहे दुनिया में।।
कितने वर्षो से मातारानी
तुम सपने में देख रही हो।
अपनी मन मोहक छवि की
आकृति हमें दिखा रही हो।
पर साक्षात दर्शन देने को
नव रात्रि में हमें बुलाएं हो।
और भक्तो को दर्शन देकर
हमें धन्य बनाये हो।।
पग-पग पर साथ दिया
हे मातारानी तुमने अबतक।
जब-जब फूली साँसे मेरी
ऊँचे पहाड़ पर चढ़ने में।
तब-तब साथ आई गई
माँ मेरी तुम बनकर।
एक पल में ही बदल गई
दर्शन पाकर किस्मत मेरी।।
धन्य हुआ मैं आज सही में
माँ तेरे रूपों को देखकर।
नौ दिनों में क्या-क्या तुम
दिखाओं इस दुनिया को।
अपने हर स्वरूप का भी
तुम दोगी विवरण सबको।
और अत्याचारी पापीयों का
विनाश हे माँ तुम कर दोगी।।
दो लालो का जन्म दिन
2 अक्टूबर का दिन,
कितना महान है।
क्योकि जन्मे इस दिन
दो भारत मां के लाल है।।
सोच अलग थी दोनों की,
पर थे समर्पित भारत के लिए।
इसलिए दिन को
हम लोग याद करते है।
और दोनों के प्रति,
श्रध्दा सुमन अर्पित करते है।
और उन्हें दिल से
आज याद करते है।।
सत्य अहिंसा के बल पर,
हमे दिलाई आज़दी।
और सत्यग्रह करके,
मजबूर कर दिया अंग्रेजो को ।
और उन्हें छोड़ना पड़ा
भारत देश को।
और मिल गई हमे आज़दी,
सत्य अहिंसा के पथ पर चलकर।।
याद करो उन छोटे
कद वाले इंसान को।
जो सोच बहुत बड़ी रखते थे।
और हर कार्य भारत के
हित मे करते थे।
तभी तो उन्होंने नारा दिया था,
जय जवान जय किसान।
ये ही है भारत की
आन मान और शान ।।
दोनों के प्रति आदर भाव रखते हुए।
हम उन्हें श्रध्दांजलि अर्पित करते है।
और भारत माँ को प्रणाम करते है।
कि ऐसे लालो को आपने,
जन्म दिया हिंदुस्तान में।।
ह्रदय से दोनों महापुरुषों को
श्रध्दा सुमन अर्पित करता हूँ।
और जन मानुष तक मैं
उनके संदेशो को पहुंचाता हूँ।।
दिल मन कहता
मन मेरा कुछ कहता है।
और दिल कुछ करता है।
देखो दोनों के बीच में।
युध्द निरंतर चलता है।।
दिलकी पीढ़ा दिल जाने
मन की बात मन मानें।
देख दोनों की हालत पर।
मानव कितना बेबस है।।
जो कुछ मैं कहता हूँ
जो कुछ तुम सुनते हो।
फिर भी दिलकी बातों पर
तुम क्यों रोज रोते हो।।
हालात ऐसे बन गये है।
देखो हमारे समाज के।
अपने ही अपनो से देखो।
कैसे और क्यों रूठ रहे।।
मान मनाऊँआ को तुम समझो।
कैसे दिल ये मचलता है।
दिलकी खुशीयों पर तुम देखो।
दिल का राज ही चलता है।।
सुलझा पायेगा
वो कुछ इस तरह कह गये
मैं आज तक सोच रहा हूँ।
उनके शब्दो का हल मैं
अब तक खोज रहा हूँ।
न ही वो मिले दुवारा मुझे
न ही उनके शब्दो का अर्थ।
इसलिए जिंदगी आज तक
मेरी उलझी पड़ी है।।
सवालों के जवाब मिलते जाये
तो जिंदगी दौड़ने लगती है।
यदि कही उलझ जाये तो
जिंदगी भी रुक जाती है।
और नये सवालों को
जन्म दे देती है।
जिनको हल करने में
हम आप लगे रहते है।।
मन बहुत चंचल होता है
अवश्यकताओं का अंत नहीं है।
इसी चक्र में इंसान हमेशा
उलझा उलझा सा रहता है।
और अपने आप में ही
खोया खोया सा रहता है।
न खुद सुखी रहता है और
न घर वालों को रहने देता है।।
यदि कर सको तुम
अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण।
तो जीवन सरल और सहज
तुम्हारा बन जायेगा।
आत्म कल्याण का भाव भी
मन के अंदर आयेगा।
और उलझी हुई जिंदगी को
खुद ही सुलझा लोगें।
जन्मों का साथ ( गीत )
जन्म जन्म का साथ है,
हमारा तुम्हारा तुम्हारा हमारा।
अब आगे भी दो मुझे
अपना प्यार दुलार।
जन्म जन्म का……।।
जब से आये हो तुम
मेरी जीवन में।
जीवन ही बदल गया
साथ रहने से।
अब मैं क्या माँगू तुमसे
दिया है सब कुछ तुमने।
जन्म जन्म का साथी है,
हमारा तुम्हारा तुम्हारा हमारा।।
प्रीत प्यार की परिभाषा
सिख लाई तुमने।
अपनी मोहब्बत को तुमने
दिख लाई हमको।
इसी तरह से साथ निभाना
जीवन भर अपना।
जन्म जन्म का साथी है,
हमारा तुम्हारा तुम्हारा हमारा।।
पहले पहले प्यार में
होता है कुछ अलग।
साथ जीने मरने की
खाते है कसमें।
जब परवान चढ़ती है
दोनों की मोहब्बत।
तब सब बदल जाता है
जीवन दोनों का।।
जन्म जन्म का साथी है,
हमारा तुम्हारा तुम्हारा हमारा…..।।
नंद-देवर और भौजाई
नंद भौजाई और देवर भाभी का
रिश्ता बहुत अनोखा होता है।
जब ये आपास में घुल-मिल जाये,
तो कोई कुछ नहीं कहा सकता।
क्योंकि नंद बन जाती है बहिना,
और देवर बन जाता है भाई।
फिर किसकी है क्या है मजाल
जो भाभी को कुछ कहा जाये।।
नंद देवर जब हो जाते है अपने।
तो भाभी को मिल जाता है साहस।
स्नेह प्यार से इनके निभते
फिर अपास में सारे रिश्ते।
होये परेशानी यदि भाभी को कोई,
तो मिलकर कर देते ये सब हल।
और यदि पड़े जरूरत नंद देवर को,
तो भाभी बन जाती इनकी ढाल।
इसी तरह से चलता रहता
इन लोगों का प्यार रिश्ता।।
बड़ा अनोखा होता इनका रिश्ता,
जो घर-परिवार में भर देता खुशियाँ।।
आई पराये घर से वो,
बनकर बहू घर की।
स्नेह प्यार से जीत लिया,
घर-परिवार वालों का दिल।
अब तुम्हीं बतलाओं लोगों,
नारी होती कितनी सम।
सब कुछ कर लेती
वो अपने अनुरूप।
जब साथ खड़े हो जाये
नंद देवर और भौजाई।।
यात्रा का आनंद
सफर में आनंद आता है।
जब एक जैसे मिल जाए।
पता ही नहीं पड़ता है।
कब मंजिल पर पहुँच गए।
लोगों की बातें हमें
बहुत कुछ सिखाती है।
जो जिंदगी में हमारे
बहुत ही काम आती है।
कहने को सभी लोग
हमें अंजान लगते है।
पर कुछ ही समय में
अपने से लगने लगते है।।
उदासी और मायूसी
झलती है जिन चेहरे पर।
जो लोगों की बातों से
जल्दी ही दूर होती है।
फिर देखते ही देखते
वो हँसमुख हो जाते है।
और अपने होने का भी
वहाँ एहसास कराते है।।
इस तरह से सफर हमारा
हँसी खुशी से कट जाता है।
और थकान सफर की हमें
महसूस नहीं होती है।
सभी का साथ पाकर
बहुत ही अच्छा लगता है।
और लोगों से अंजानो की
परिभाषा समझ लेते है।।
कैसे जी रहा हूँ
मेरे होने का क्या तुझे एहसास है।
तेरी जिंदगी में मेरा क्या बास है।
होकर अलग भी क्या एहसास है।
तेरी-मेरी जिंदगी का यही राज है।।
तेरी मोहब्बत से जिंदगी चल रही है।
तेरे बिना ये जिंदगी मेरी अधूरी है।
दूर से भी तुम मोहब्बत करते हो।
इसलिए दिलकी तन्हाइयां दूर करते हो।।
बहुत सहारा है तेरा मेरे जीवन में।
वरना कब का मैं निकल गया होता।
अधूरी जिंदगी और अधूरे मन से।
क्या मैं अपनी जिंदगी जी पाता।।
खोज रहा खुदको
मैं खुद को ही खोज रहा।
अपने खुद के अंदर।
पर वो नहीं मिल रहा।
मुझको खुद के अंदर।।
कैसे मैं खोजू खुदको।
कोई बताओ मुझको।
क्या मेरा अस्तित्व है।
मेरे खुद के अंदर।।
अब चिंता में डूब रहा।
मेरा कोमल हृदय जो।
बैठे सोते खोज रहा हूँ।
खुदको खुदके अंदर।।
अपने भाव को लेकर
पहुँचा प्रभु की शरण में।
देख उनकी एकांत मुद्रा को ।
खोज लिया मैंने खुदको।।
बुलाकर नही मिलते
कसम देकर बुलाती हो
पर मिलने से कतराती हो।
दिलकी धड़कनों को तुम
क्यों छुपा रही हो।
और दिलकी बातें तुम
क्यों कह नहीं रही हो।
पर मोहब्बत दिलसे और
आँखों से निभा रही हो।।
मोहब्बत दूर रहकर भी
निभाई जा सकती है ।
तमन्ना उनके दिल की
दूर से सुन सकती हो।
और उन्हें नजदीक अपने
तुम बुला सकती हो।
या बस देखकर ही तुम
मोहब्बत निभाती रही हो।।
मोहब्बत करने वाले कभी
अंजाम से नही डरते।
मोहब्बत में भावनाओं का
सदा शामाभेष होता है।
लगे चोट किसी को भी
पर दर्द दोनों को होता है।
और इससे अच्छी परिभाषा
मोहब्बत की हो नही सकती।।
गठबंधन
तेरे मेरे मिलन से
हम बहुत खुश है।
जिंदगी मानों मेरी
तेरे बहुत करीब है।
हमने चाहा था तुम्हें
इसलिए मिल गये हो।
और जिंदगी में देखो
कैसे फूल खिल गये है।।
न करते प्यार मोहब्बत तो
हम दोनों मिल नहीं पाते।
जिंदगी की हकीकत को
हम समझ नहीं पाते।
जीवन साथी भी हम
दोनों बन नहीं पाते।
और हम लोग आज
एकाकी जीवन बिताते।।
संसारिक जीवन जीने को
कोई तो हम सफर चाहिए।
जिंदगी भर साथ निभाने
हमें एक साथी चाहिए।
जो जीवन संगनी बनकर
धर्म निभाने वाली चाहिए।
और पग-पग साथ जो दे
ऐसा एक गठबंधन चाहिए।।
बेटी खुशियाँ देती है
नसीब वाले होते है
वो घर परिवार।
जहाँ जन्म लेती है बेटी।
परिवारों की जान
होती है बेटी।
घर की लक्ष्मी
होती है बेटी।
सुसराल में सीता
दुर्गा होती है बेटी।
दो कुलो की शान
होती है बेटी।।
बेटी की मोहब्बत को
कभी आजमाना नहीं।
वह फूल हैं उसे
कभी रुलाना नहीं।
पिता का तो गुमान
होती हैं बेटी।
जिन्दा होने की
पहचान होती है बेटी।
उसकी आंखे कभी
नम न होने देना।
उसकी जिन्दगी से कभी,
खुशियां कम न होने देना।।
उनगलि पकड़कर कल
जिसको चलाया था तुमने।
फिर उसको ही डोली
में बिठाया था तुमने।
बहुत छोटा सा सफ़र
होता हैं बेटी के साथ।
बहुत कम वक्त्त के लिए
वह होती हमारे पास।
असीम दुलार पाने की
हकदार है बेटी।
समझो तुम ईश्वर का
आशिर्वाद है बेटी।।
मैं ही हूँ
मानव जीवन का मैं
एक सत्य बताता हूँ।
अपने बारे में तुमको
मैं कुछ बतलाता हूँ।
हमसे भाग के देखो
कैसे मैं-मैं करता रहता हूँ।
भीड़-भाड़ में होकर भी
मैं अलग ही दिखता हूँ।।
मैं मैं का गुण-गान करके
मैं मैं करता रहता हूँ।
और अपने आगे किसी को
कुछ नही समझता हूँ।
इसलिए मानवता को मैं
कुछ समझ न पाया हूँ।
और कहनी करनी का
अब फल भुगत रहा हूँ।।
दुनिया की इस भीड़ में देखो।
हम अलग ही दिखते है।
मैं के चक्कर में रहकर।
बहुत अंहिन्कारी जो है।।
जीवन की तुम देखो नईया।
अब कौन पार लगवायेगा।
मानव जीवन के सत्य को।
अब कौन बतलायेगा।।
हाल बुरा है अब मेरा।
इस मानव दुनिया में।
था जब तक उच्चपद पर।
तो समझा नही मानव को।
मैं मैं ने मेरा जीवन को
अब मैं एकाकी जो बना दिया।।
पितृ दिवस में संकल्प ले…
पितृ दिवस चल रहे है
तो करो एक नेक काम।
लेकर पूर्वजो के नाम तुम
ले लो एक गौ माता को गोद।
और दे दो उसको अभय दान
तो सफल हो जायेंगे पितृ-दिवस।
और मिल जायेगी सच्ची शांति
उनकी आत्मा को।।
बनकर गौ माता के रक्षक,
बचायें कसाईयों से इन्हें।
लेकर एक गाय को गोद,
उसे जीवन दे सकते हो।
और जीव हत्या के इस,
खेल को रोक सकते हो।
और जीओ जीने दो को,
पुनः जिंदा हम कर सकते है।।
गौ माता के अंदर कितने,
देवी देवता बास करते है।
अनेको ग्रन्थों में इसके,
उदाहरण पढ़ने को मिलते है।
तभी तो हर जाती और,
धर्म में गौ पूजनीय है।
तो क्यों न इनकी हिंसा,
रोकने में हम भागीदार बने।।
तो आओं आगे बढ़कर,
करे संकल्प अब से हम।
नहीं काटने देंगे एक भी,
गौ-माता को अब आगे से।
इसी कार्य को करने का बीड़ा,
उठाया है दयोदय महासंघ ने।
इसमें हम सब शामिल होकर,
करे पुण्य का सृजन हम।।
जिंदगी के रंग
दास्ताने ए जिंदगी की
वक्त ने बदल दी धीरे-धीरे।
आशियाना मिटा दिया है
वक्त ने देखो धीरे-धीरे।
थी मोहब्बत जिससे हमें
वक्त ने भूला दिया धीरे-धीरे।
वक्त को हम समझ न सके
इसलिए भूला दिया धीरे धीरे।।
वक्त के चलते तुम देखो
कितने बाग उजड़ गये।
वक्त के कारण ही देखो
जिंदगी के रंग उड़ गये।
कर सके न कद्र वक्त की
इसलिए बेसहारा हो गये।
खो दिया सम्मान अपना
वक्त के चक्र में फसके।।
वक्त ने दिखा दिया
अपना प्रभाव सभी को।
पाना है ख्याति तुम्हें तो
कद्र करना सीख लो।
जिंदगी के पहलूओं को
वक्त से जोड़ना शुरू करो।
खुल जायेगी किस्मत तेरी
यदि वक्त साथ दे जायेगा।।
क्षमा वाणी ( गीत )
क्षमा भाव मन में धारण ,
कर ले ओ भोले प्राणी।
कर दे क्षमा तू सबको ,
खुश होगी जिंदगानी …. २।
नफरत के बीज बोये ,
काँटों से दिल लगाया।
सोचा न एक पल भी,
अपनों का दिल दुखाया। …२
मैं हाथ जोड़कर के,
मानू अपनी गलती।
कर दे क्षमा तू मुझको,
खुश होगी जिंदगानी।।
क्षमा भाव मन में धारण ,
कर ले ओ भोले प्राणी।
कर दे क्षमा तू सबको ,
खुश होगी जिंदगानी।
क्यों करता मेरा तेरा,
कुछ भी नहीं है तेरा।
जब नींद से तुम जागो,
समझो तभी सबेरा ….2
करके क्षमा तू सबको ,
खुश कर ले जिंदगानी।।
क्षमा भाव मन में धारण ,
कर ले ओ भोले प्राणी।
कर दे क्षमा तू सबको ,
खुश होगी जिंदगानी।
ये जिंदगी गमों की,
खुश रहना तुम सीखो।
अपनों से प्रेम करके,
अपनो का दिल जीतो। ….२
ये मूल मंत्र जीवन का,
तुम सबको ये बता दो।
करके क्षमा तू सबको,
खुश कर ले जिंदगानी।।
संजय का ये भजन ,
सब याद अब तुम रखना।
कर दे क्षमा तू सबको ,
खुश होगी जिंदगानी।।
उत्तम क्षमा
क्षमा वाणी के अवसर पर एक संदेश।
मानव अहंकार को त्याग कर सच्चे मन से अपने अंदर क्षमा का भाव बना ले, तो संसार और उसमें रहने वाले लोगों का जीवन ही बादल जायेंगा। क्योंकि क्षमा से बढ़ाकर दूसरा कोई भी त्याग धर्म नहीं हो सकता। इसलिए मैंने अपने भावों को इस गीत के द्वारा आप लोगों के सामने प्रगट किये है। आशा करता हूँ की आप लोगों को ये गीत भजन पसंद आएगा।
आशीर्वाद से
तेरा आशीष पाकर,
सब कुछ पा लिया हैं।
तेरे चरणों में हमने,
सिर को झुका दिया हैं।
तेरा आशीष पाकर …….।
आवागमन गालियाँ
न हत रुला रहे हैं।
जीवन मरण का झूला
हमको झूला रहे हैं।
आज्ञानता निंद्रा
हमको सुला रही हैं।
नजरें पड़ी जो तेरी,
मेरे पापा धूल गए हैं।
तेरा आशीष पाकर……।।
तेरे आशीष वाले बादल
जिस दिन से छा रहे हैं।
निर्दोष निसंग के पर्वत
उस दिन से गिर रहे हैं।
रहमत मिली जो तेरी,
मेरे दिन बदल गये है।
तेरी रोशनी में विद्यागुरु,
सुख शांति पा रहे हैं।।
तेरा आशीष पाकर …..।।
आज पर्युषण महापर्वराज के दसवां दिवस “उत्तम ब्रह्मचर्य किसी किसी धर्म के अवसर पर आचार्यश्री के चरणों में उपरोक्त संजय जैन मुम्बई का भजन समर्पित है।
हमसब जैन है
मेरा कर्मा तू, मेरा धर्मा तू,
मेरा जैनधर्म,सब कुछ है तू।
हर कर्म अपना करेंगे,
जैन धर्म के अनुसार।
जैनकुल में जन्म लिया है,
जैनी होने का अभिमान।
हम जीयेंगे हम मरेंगे,
जैन धर्म के अनुसार।
जैनकुल में जन्म लिया है,
जैनी होने का अभिमान।।
तू में कर्मा, तू मेरा धर्मा,
तू मेरा अभिमान है।
जैन धर्म तुम पर,
मेरा जीवन कुर्बान है।
हम जिएंगे हम मरेंगे,
जैन धर्म के अनुसार ।
जैनकुल में जन्म लिया है।
जैनी होने का अभिमान है।।
दिगम्बर, श्रेताम्बर, स्थानकवासी,
हम सब जैन है, बस हम जैन है।
जो करे पंथवाद की बाते,
वो महावीर का भक्त है ही नहीं।
हम जीएंगे हम मरेंगे,
जैन धर्म के अनुसार ।
जैनकुल में जन्म लिया है।
जैनी होने का अभिमान है।।
आज महापर्वराज पर्यूषण का नौवा दिवस उत्तम आकिंचन धर्म के उपलक्ष्य में मेरा उपरोक्त गीत भजन सभी जैन श्रावक और जैन समाज को समर्पित है।
मुंबई वालों की भावना
समयसागर जी की राह निहार के।
मुंबई वाले कब से खड़े है इंतजार में।
सब की अँखियों के नूर, सब के दिलो के सुरूर।
चाहे रहो कितनी दूर,लाना है मुंबई में ज़रूर।।
समयसागर जी की राह निहार के।
मुंबई वाले कब से खड़े है इंतजार में।
ज्ञान बरसे, दुनिया जाने।
मुंबई तरसे कोई न जाने।
दिल में लगी है मुंबई लाने।
इसलिए मुंबई वाले,आये है श्रीफल चढ़ाने।
चाहे रहो कितनी दूर,लाना है मुंबई में ज़रूर।।
समयसागर जी की राह निहार के।
मुंबई वाले कब से खड़े है इंतजार में।।
जिस दिन मुंबई को मिलेगा मौका।
ज्ञान की गंगा बहेगी यहाँ पर।
देखेगी सारी दुनिया ये चौमासा।
बस गुरुवार की हाँ का इंतजार है।
हम लोग खड़े है तेरे द्वार पर।।
समयसागर जी की राह निहार के।
मुंबई वाले कब से खड़े है इंतजार में।
सभी साधर्मप्रेमी बंधुओ को, संजय जैन, मुंबई का सदर जय जिनेन्द्र देव, आज महापर्व पर्यूषण का आठवा दिन उत्तम त्याग धर्म के उपलक्षय में उपरोक्त भजन मैंने गुरू भक्त मुंबई, कल्याण एवंम समस्त दिगम्बर जैन समाज मुंबई वालों की भावनाओं को महसूस करते हुए लिखा है।मैं आचार्य श्री समय सागर जी के चरणों में समर्पित करता हूँ।
हिन्दी मेरी माँ है
मैं हिन्दी का बेटा हूँ
हिन्दी के लिए जीत हूँ।
हिन्दी में ही लिखता हूँ
हिन्दी को ही पढ़ता हूँ।
मेरी हर एक सांस पर
हिन्दी का ही साया है।
इसलिए मैं हिन्दी पर
समर्पित करता ये जीवन।।
मैं हिंदी का ………..।।
करें हिन्दी से सही में प्यार
तो कैसे करे लिखने से इंकार।
अगर मातृभाषा है हिंदी तो
बोलने से क्यों करते हो इंकार।
हिंदी बस्ती है हिंदुस्तानीयों के
दिलकी हर धड़कनों में।
इसलिए तो प्रेम-भक्त गीत
लिखे जाते है हिंदी में।
जो हर भारतीयों का
सदा गौरव बढ़ते है।।
मै हिंदी का…….।
करो हिन्दी का प्रचार-प्रसार
तभी बन पायेगी राष्ट्रभाषा।
और भारतीयों के दिलों में
ये बस पायेगी।
चलों आज लेते हैं
हम सब एक शपथ।
की करेंगे आज से हमसब
सारा कामकाज हिंदी में।
तभी तो मातृभाषा का
उतार पाएंगे हम कर्ज।।
मैं हिंदी का……….।।
अगर सच्चे और अच्छे
हम भारतीय कहलाना है।
तो हिंदी भाषा को ही
हमें अब आगे बड़ना है।
संजय की ये रचना
समर्पित है हिंदी को।
करो उपयोग हिंदी का
तुम सब अपने जीवन में।
बहुत उपकार होगा तब
हमारी हिंदीभाषा पर।।
मैं हिंदी का बेटा हूँ
हिंदी के लिए जीता हूँ।।
गुरु भक्ति
जय जय जय जय गुरु देव ,
मुझे दर्शन दो।
अपनी शरण में तुम,
मुझको ले लो।
जय जय जय जय गुरु देव ,
मुझे दर्शन दो।।
कल रात सपने में,
मैंने तुमको देखा था।
जैसे कह रहे थे तुम,
आ जाओं मेरी शरण।
ये कैसा सपना था,
क्या सच्च हो सकता है।
यदि ये सच हो जाये,
मेरा जीवन साभर जाये।
जय जय जय जय गुरु देव ,
मुझे दर्शन दो।
अपनी शरण में तुम,
मुझको ले लो।।
हर शाम सबेरे,
संजय तुम्हें जपता है।
हर सुबह उठाते ही,
तेरी पूजा करता है।
श्रध्दा और भक्ति का,
मुझे इतना फल तो दो।
मेरे दीक्षा गुरुवार,
तेरे कर कमलो से हो।
जय जय जय जय गुरु देव ,
मुझे दर्शन दो।
अपनी शरण में तुम,
मुझको ले लो।।
गुरुदेव की चरणों मे नामोस्तु
आज महापर्व पर्यूषण राज का सातवा दिवस “उत्तम तप धर्म” पर आचार्यश्री १०८ विद्यासागर जी के चरणों में संजय जैन, मुम्बई का भजन समर्पित है।
वाणी सुनों
विद्यासागर की वाणी सुनो।
ज्ञान अमृत का रसपान करो।
ज्ञानसागर की दिव्य ध्वनि सुनो।
उत्तम संयम धर्म का पालन करो।
विद्यासागर की वाणी सुनो।।
आज हम सबका यह पुण्य है।
मिला है हमें मनुष्य जन्म ..।
किये पूर्व में अच्छे कर्म।
इसलिए मिला मनुष्य जन्म।
गुरुवर के मुख्य बिंदु से।
जिनवाणी का ज्ञान प्राप्त करो।।
विद्यासागर की वाणी सुनो।
ज्ञान अमृत का रसपान करो।
वीर प्रभुजी की एक छवि।
सदा दिखती है उनमें …. ।
वीर प्रभु के कथनों को।
साकार करने आये धरती पर।
कलयुग में मिले है हमें ।
सतयुग जैसे गुरु विद्यासागर।।
विद्यासागर की वाणी सुनो।
ज्ञान अमृत का रसपान करो।
सदा आगम का अनुसरण करे।
उसके अनुसार ही वो चले … ।
बाल ब्रह्मचारियों को ही।
देते है वो मुनि दीक्षा।
पहले भट्टी में उन्हें तपते है।
सोना बनाकर ही छोड़ते है।।
विद्यासागर की वाणी सुनो।
ज्ञान अमृत का रसपान करो।।
गुरुदेव की चरणों मे नामोस्तु आज महापर्व पर्यूषण का छठवा दिवस “उत्तम संयम धर्म” पर आचार्यश्री १०८ विद्यासागर जी के चरणों में संजय जैन, मुम्बई का भजन समर्पित है।
मोक्ष पथ को जाने
छोड़ दो मिथ्या दुनियां,
सार्थक जीवन के लिए।
इससे बड़ा सत्य कुछ,
और हो सकता नहीं।
चाहत अगर प्रभु को पाने की हो ।
तो ये मार्ग से अच्छा कुछ,
और हो सकता नहीं।।
छोड़ दो…….।।
मन में हो उमंग प्रभु को पाने की।
करना पड़ेगा कठिन तपस्या तुम्हें।
मिल जाएंगे तुमको प्रभु एक दिन।
बस सच्ची श्रध्दा से उन्हें याद करो।।
छोड़ दो……..।।
आत्म कल्याण का पथ ये ही हैं।
बस इस पर चलने की तुम कोशिश करो।
मोक्ष का द्वार तुम को मिल जाएगा।
और जीवन सफल तेरा हो जाएगा।।
छोड़ दो…….।।
पर्युषण महापार्व राज का पांचवा दिन “उत्तम सत्य धर्म” के अवसर पर संजय जैन मुम्बई का भजन आप सभी लोगो के लिए समर्पित है।
नियमित मंदिर जाए
जब भोर हुए आना,
जब शाम ढले आना।
संकेत प्रभु का,
तुम भूलना जाना,
जिनेन्द्रालाय चले आना।
जब भोर हुए आना,
जब शाम ढले आना।।
मैं पल छीन डगर बुहारूंगा,
तेरी राह निहारूंगा।
आना तुम जिनेन्द्रालाय दर्शन को ,
करना पूजा भक्ति यहां।।
जब भोर हुए आना,
जब शाम ढले आना।।
नित साँझ सबेरे मंदिर में,
पूंजा भक्ति में करता हूँ।
और करता हूँ स्वाध्य, जिनवाणी का।
आत्म शुध्दि के महापर्व पर।।
जब भोर हुए आना,
जब शाम ढ़ले आना।।
जन्म जन्म से भाव सजोये थे,
मुनि दीक्षा हम अब पाएंगे।
श्रध्दा भक्ति विनय समर्णपण का,
कुछ तो दे दो फल।
मेरी दीक्षा विद्या गुरुवर के,
हाथो से बस अब हो।
ऐसा आशीर्वाद हे मुनिवर ,
मुझे आप ये दे दो।।
जब भोर हुए आना,
जब शाम ढ़ले आना।।
श्री चन्द्रप्रभु भगवान
थाल पूजा का लेकर चले आइये।
चन्द्राप्रभु का जिनेन्द्रालय यहाँ पर बना।
आरती के दियो से करो आरती।
और पावन सा कर लो ह्रदय अपना।
थाल पूजा का लेकर चले आइये।
मन में उमड़ रही है ज्योत धर्म की।
उसको यूही दबाने से क्या फायदा।
प्रभु के बुलावे पर भी न जाये वहां।
ऐसे नास्तिक बनाने से क्या फायदा।।
डग मगाते कदमो से जाओगे फिर तुम।
तब तक तो बहुत देर हो जायेगा।।
थाल पूजा का लेकर चले आइये।
चन्द्राप्रभु का जिनेन्द्रालय यहाँ पर बना।
नाव जीवन की तेरी मझधारा में पड़ी।
झूठ फरेब लोभ माया को तूने अपनाया था।
जब तुम को मिला ये मनुष्य जन्म।
क्यों न सार्थक इसे तू अब कर रहा।।
जाकर जिनेन्द्रालय में पूजा अभिषेक करो।
और अपने पाप कर्मो को तुम नष्ट करो।।
थाल पूजा का लेकर चले आइये।
थाल पूजा का लेकर चले आइये।
चन्द्राप्रभु का जिनेन्द्रालय यहाँ पर बना।
आरती के दियो से करो आरती।
और पावन सा कर लो ह्रदय अपना।
थाल पूजा का लेकर चले आइये।
जय जिनेन्द्र देव की आज उत्तम आर्जव धर्म पर्युषण महापर्व का तीसरा दिन श्री 1008 चन्द्रप्रभु भगवान, कल्याण के दर्शन की भावना जगाने हेतु भजन आप सभी धर्मप्रेमी बंधुओ के लिए समर्पित है।
गुरुदेव की भक्ति
भक्ति मैं करता तेरे
साझ और सबेरे।
चरण पखारू तेरे
साझ और सबरे।
चरण पखारू तेरे
साझा और सबरे।
तेरे मंद मंद दो नैन
मेरे मनको दे रहे चैन।
तेरे मंद मंद दो नैन…।
क्या ज्ञान क्या अज्ञानी जन,
आते है निश दिन मंदिर में।
एक समान दृष्टि तेरी
पड़ती है उन सब जन पर।
पड़ती है दृष्टि तेरे उन सब पर।
तेरे कर्णना भर दो नैन
मेरे मनको दे रहे चैन।
तेरी कर्णना भरे दो नैन
मेरे मनको दे रहे चैन।।
त्याग तपस्या की
ऐसे सूरत हो।
चलते फिरते
तुम भगवान हो।
दर्शन जिसको
मिल जाये बस।
जीवन उनका धन्य होता।
जीवन उनका धन्य होता।
तेरा जिसको मिले आशीर्वाद।
उसका जीवन हो जाये कामयाब।
तेरा जिसको मिले आशीर्वाद।
उसका जीवन हो जाये कामयाब।।
ऐसे गुरुवर विद्यासागर के चरणों में
संजय करता उन्हें वंदन,
करता उन्हें शत शत वंदन।।
( पर्यूषण महापर्वराज का आज दूसरा दिन उत्तम मार्दव धर्म के उपलक्ष्य में मेरा गुरुभक्ति का भजन आप सभी को समर्पित है। )
वर्तमान के वर्धमान थे
तुम हो कलयुग के भगवान गुरु विद्यासागर।
तुम हो ज्ञान के भंडार
गुरु विद्यासागर।
हम नित्य करें गुण गान
गुरु विद्यासागर।।
बाल ब्रह्मचारी के व्रतधारी
सयंम नियम के महाव्रतधारी।
तुम हो जिनवाणी के प्राण
गुरु विद्यासागर।
हम नित्य करे गुण गान
गुरु विद्यासागर।।
दया उदय से पशु बचाते
भाग्योदय से प्राण बचाते
मेरे मातपिता भगवान
गुरु विद्यासागर ।
हम नित्य करे गुण गान
गुरु विद्यासागर।।
जैन पथ हमको चलाते
खुद आगम के अनुसार चलते।
वो सब को देते विद्या ज्ञान
गुरु विद्या सागर।
हम नित्य करे गुण गान
गुरु विद्यासागर।
तुम हो कलयुग के भगवान
गुरु विद्यासागर।
ज्ञान के सागर विद्यासागर
हम नित्य करे गुण गान
गुरु विद्या सागर।।
लाल बाग़ के राजा की महिमा
मन मोहक प्रतीमा है तेरी,
मजबूर करे लाल बाग़ आने के लिए,दर्शन के लिए ।
मन मोहक प्रतीमा है
तेरी ……….।।
हर कोई तरसता रहता है,
तेरी एक झलक दर्शन के लिए ,दर्शन के लिए ,
मन मोहक प्रतीमा है तेरी ………. ।।
तस्वीर बनाए क्या कोई।
क्या कोई करे तेरा वर्णन।
रंगो छन्दो में समाये ना,
किस तरह तेरी मन मोहिकिता, मोहिकिता।
मन मोहक प्रतीमा है तेरी ……….।
एक आस है आत्मा में मेरी।
कोई जान न सके इस भेद के लिए।
मन मोहक प्रतीमा है तेरी ,
मजबूर करे लाल बाग़ आने के लिए ,
राजा के दर्शन के लिए,
लाल बाग जाने के लिए ,
दर्शन के लिए।
मन मोहक प्रतीमा है तेरी,
मजबूर करे लाल बाग़ आने के लिए ,दर्शन के लिए ,
मन मोहक प्रतीमा है तेरी।।
क्यों बुलाती : गीत
खनकती चूड़ियाँ तेरी
हमें क्यों बुलाती है।
खनक पायल की तेरी
हमें लुभाती है।
हँसती हो जब तुम
तो दिल खिल जाता है।
और मोहब्बत करने को
ये दिल ललचाता है।।
कमर की करधौनी भी
तेरी कुछ कहती है।
जो प्यास दिलकी
बहुत बढ़ाती है।
और होठो की लाली
हँसकर लुभाती है।
फिर आँखे आँखो से
मिलाने को कहती है।।
पहनती हो जो भी
तुम रोज परिधान।
तुम्हारी खूब सूरती
और भी बढ़ाती है।
अंधेरे में भी पूनम के
चांद सी बिखर जाती हो।
और रात की रानी की
तरह महक जाते हो।।
तभी तो जवां दिलो में
मोहब्बत की आग लगाते हो।
और शरद पूर्णिमा की रात में
मेहबूब को बुलाते हो।
और अपनी मोहब्बत को
ताजमहल जैसी दिलमें शामाते हो।
और अमावस्या की रात को भी
पूर्णिमा की रात बन देते हो।।
तभी तो शरद पूर्णिमा की
गाथाएँ ग्रंथ अनेक है।
शिव पार्वती राधा कृष्ण की
महिमायें भी अनेक है।
युवा दिलो में मोहब्बत की
ज्योति जला देती है।
और एक नया आशियाना
ताज जैसा दिलमें बना देती है।।
चरणों में शीश झूका ( भजन )
तुम्हे दिल लगी भूल जाने पड़ेगी।
गुरु चरणों में शीश झुका के तो देखो।
तुम्हे दिल लगी भूल जाने पड़ेगी।
प्रभु चरणों में सीस झुका के तो देखो।
तुम्हे दिल लगी भूल जाने पड़ेगी।
णमोकार मंत्र को जपके तो देखो।
तुम्हारे पाप कर्म धूल जायेंगे सारे।
ये अपने जीवन में उतार के तो देखो।
तुम्हे दिल लगी भूल जाने पड़ेगी।।
निश दिन मंदिर में पूजा करो तुम।
तुम्हे शांति दिल में महसूस होगी।
तुम्हे दिल लगी भूल जाने पड़ेगी।
देव दर्शन निश दिन करके तो देखो।
तुम्हे दिल लगी भूल जाने पड़ेगी।।
दया और धर्म तुम करके तो देखो।
ये माया सभी यही रह जाएगी सारी।
तेरे अच्छे कर्म ही तेरे संग जायेगे।
बाकि अब यही पड़ा रह जायेगा सारा।
तुम्हे दिल लगी भूल जाने पड़ेगी।
दान धर्म तुम करके तो देखो।।
गुरु और प्रभु जी शरण में तो जाओ।
संतो की वाणी जा सुनकर तो देखो।
तुम्हे धर्म चेतना का आनंद यही पर मिलेगा।
गुरु और प्रभु की सेवा कर के देखो।
तुम्हे दिल लगी भूल जाने पड़ेगी।।
प्रभु चरणों में सीस झुका के तो देखो।
आचार्यश्री के चरणों मे शीश झुका के तो देखो।।
शिक्षकों का आभार
शिक्षकों ने दिया मुझे,
बचपन से बहुत ज्ञान।
तभी तो पढ़ लिखकर,
बन पाया हूँ कुछ।
इसलिए मेरे दिलमें,
श्रध्दा के भाव रहते है।
और मात पिता जैसा
देता उन्हें सम्मान।
जो कुछ भी हूँ आज मैं,
बना उन्ही के कारण।
इसलिए उनके चरणों में,
अपना शीश झुकता हूँ।।
शिक्षा का जीवन में लोगों,
बहुत महत्त्व होता है।
जो इससे वंचित रहता है
उनका जीवन अधूरा है।
शिक्षा को न बाट सका
और न ही छिन सकता है।
जीवन का ये सबसे
अनमोल रत्न जो होता है।
धन दौलत तो जीवन में
आती जाती रहती है।
पर ज्ञान हमारा संग देता
जीवन की अंतिम सांसों तक।।
जितना तुम पूजते हो
अपने मात पिता को।
उतना ही तुम पूजो
अपने-अपने गुरुओं को।
देकर आदर दोनों को
एक तराजू में तौलो।
क्योंकि ये ही आधार स्तंम्भ है,
तेरे इस जीवन के।।
इसलिए तो हमसब मातापिता
और शिक्षक दिवस मानते है।।
मैं हूँ ” जैन “
मैं हूँ “जैन ” …।
न छुरी रखता हूँ
न पिस्तौल रखता हूँ।
“जैन” का बेटा हूँ,
दिलमें जिगर रखता हूँ।
इरादों में तेज़ धार रखता हूँ।
इस लिए हमेशा
अकेला ही निकलता हूँ।।
बंगले गाड़ी तो जैनियों की
घर-घर की कहानी है..।
तभी तो दुनिया
“जैनियों” की दिवानी है।
अरे मिट गये हम
जैनीयों को मिटाने वाले।
क्योंकि आग में तपती
जैनीयों की जवानी है।।
ये आवाज नही शेर कि दहाड़ है….।
हम खड़े हो जाये तो पहाड़ है….।
हम इतिहास के वो सुनहरे पन्ने है…।
जो भगवान महावीर ने ही चुने है…।
दिलदार और दमदार है “जैनी”।।
रण भुमि में तेज तलवार है “जैनी”।
पता नही कितनो की जान है “जैनी”।
सच्चे प्यार पर कुरबान है “जैनी”।
यारी करे तो यारों के यार है जैनी।।
दुशमन के लिये तुफान है “जैनी”।
तभी तो दुनिया कहती है
बाप रे खतरनाक है “जैनी”।
शेरों के बेटे शेर ही ज़ाने जाते है।
लाखों के बीच “जैन” पहचाने जाते है।।
मौत देखकर पीछे छुपते नही।
हम “जैन” मरने से कभी डरते नही।
हम अपने आप पर गर्व करते है।
दुशमनों को प्यार से समझाने का
जिगरा हम रखते है।।
कोई न दे हमें खुश रहने की दुआ।
तो भी कोई बात नही…।
वैसे भी हम खुशीयाँ रखते नही
बाँट दिया करते है।
क्योंकि मैं हूँ “जैन”।।
मोहब्बत अमर है
रूप तेरा देखकर, हम फिदा हो गये।
तेरी आँखों में हम, एकदम खो गये।
एक मुस्कान पर, हम घायल हुए।
और चाहत में, हम दिवाने हुये।।
रूप तेरा देखकर, हम फिदा हो गये।
तेरी आँखों में हम, एकदम खो गये।।
है मोहब्बत अगर, तुमको मुझे सनम।
दिलकी धड़कनो को, तुम महसूस करो।
एक आवाज़ दिलमें, निश्चित ही गूंजेगी।
जिसको दिलमें तुम्हें, बस सुनना है।।
रूप तेरा देखकर, हम फिदा हो गये।
तेरी आँखों में हम, एकदम खो गये।।
प्यार मोहब्बत बड़ी, नाजुक होती है।
जिस पे दिल आये, उसी से होती है।
इसमें पैसों का तो, प्रश्न है ही नही।
दो दिलों का मिलन, बस जरूरी है।।
रूप तेरा देखकर, हम फिदा हो गये।
तेरी आँखों में हम, एकदम खो गये।।
आओ मिलकर हम, प्यार मोहब्बत करें।
उम्र भर साथ, रहने का वादा करें।
भूलकर भी न होंगे, एक दूजे से अलग।
सारी दुनिया में, मोहब्बत को जिंदा रखे।।
हमनें महसूस किया, बस उतना लिखा।
अब ये पन्ना, यही मोड़ दे।।
रूप तेरा देखकर, हम फिदा हो गये।
तेरी आँखों में हम, एकदम खो गये।।
दिल क्या सोचता है
मेरे दिल कि सरहद को
पार न करना I
नाजुक है दिल मेरा
वार न करना I
खुद से बढ़कर भरोसा है
मुझे तुम पर I
इस भरोसे को तुम
बेकार न करना I
दूरियों की ना
परवाह कीजिये I
दिल जब भी पुकारे
बुला लीजिये I
कहीं दूर नहीं हैं
हम आपसे I
बस अपनी पलकों को
आँखों से मिला लीजिये lI
दिल में हो आप तो कोई
और ख़ास कैसे होगा I
यादों में आपके सिवा कोई
पास कैसे होगा I
हिचकियां केहती है आप
याद करते हो…I
पर बोलोगे नहीं तो हमें
अहसास कैसे होगा ?
आरजू होनी चाहिए किसी
को याद करने की……!
लम्हें तो अपने आप ही
मिल जाते हैं I
कौन पूछता है पिंजरे में
बंद पंछियों को I
याद वही आते है
जो उड़ जाते है…!!
चाहत अनमोल है
चाहत के मामले में
सबसे अमीर हूँ।
पैसे के मामले में
सबसे गरीब हूँ।
चाहत का वैसे पैसे
लेना-देना नही होता।
जिससे दिल मिले
उसी से प्यार होता है।।
मिलन हो जाये चाहत का
चाहाने वाले से।
तो चाहत का रंग
दिल पर चड़ने लगता है।
बड़ा अजीब किस्सा है
चाहत और दिल का।
जिसे पैसे के कारण
भूलाया नही जा सकता।।
देखकर सुंदर रूप को
पाने की चाहत होती है।
क्योंकि उसकी खूब सूरती
दिल पर छाने लगती है।
इसलिए हमारी आँखे
उसी को खोजती रहती है।
और अपनी चाहत को
पाने की कोशिश करते है।।
वक्त ने मिटा दिया
दास्ताने ए जिंदगी की
वक्त ने बदल दी धीरे-धीरे।
आशियाना मिटा दिया है
वक्त ने देखो धीरे-धीरे।
थी मोहब्बत जिससे हमें
वक्त ने भूला दिया धीरे-धीरे।
वक्त को हम समझ न सके
इसलिए भूला दिया धीरे धीरे।।
वक्त के चलते तुम देखो
कितने बाग उजड़ गये।
वक्त के कारण ही देखो
घर-संसार उजड़ गये।
कर सके न कद्र वक्त की
इसलिए बेसहारा हो गये।
खो दिया सम्मान अपना
वक्त के चक्र में फसके।।
वक्त ने दिखा दिया
अपना प्रभाव सभी को।
पाना है ख्याति तुम्हें तो
कद्र करना सीख लो।
जिंदगी के पहलूओं को
वक्त से जोड़ना शुरू करो।
खुल जायेगी किस्मत तेरी
यदि वक्त साथ दे जायेगा।।
तुम्हें पाने की चाहत
तेरे चाहाने वालो के,
किस्से बहुत मशहूर है।
तेरी एक झलक के लिए,
खड़े रहते है लाइन से।
चेहरा छुपाना दुपट्टे से
लोगों की समझ से परे है।
कैसे देख सकेंगे तुझे वो,
खुले आसमान के नीचे।।
किसी पर तो तुम्हारा,
दिल आ रहा होगा।
धड़कने दिल की तेरी,
निश्चित बड़ा रहा होगा।
पर बात दिल की तुम,
व्या कर नही पा रहे हो।
मन ही मन जिसे चाह रहे हो,
क्या चाहत उसे बता पा रहे हो।।
देखते देखते भी प्यार होता है।
पत्थर दिल भी प्यार के लिए पिघलता है।
ये कमबख्त दिल भी ऐसा होता है,
जो किसी न किसी पर तो फिसलता है।
तभी तो विधाता की बनाई जोड़ीयों का,
स्वयं की चाहत से मिलन हो जाता है।।
वक्त के कारण
दर्द दिल में लेकर
भटकता रहा जिंदगी में।
मिला न मुझे सुकून
पूरी जिंदगी में।
पहले वक्त से लड़ता था
अब वक्त मुझसे लड़ रहा है।
और जिंदगी का लुप्त
वक्त के साथ उठा रहा।।
यादों का एहसास काफी है
जिंदगी जीने के लिए।
मुद्दत से चाहत थी मेरी
तुम्हें पाने की।
पर वक्त धोखा दे गया
तुम्हें देखते देखते।
और तुम गैरों के साथ
जीने लगे हमें छोड़कर।।
मोहब्बत वक्त के
अनुसार नहीं होती।
ये तो दिलों के
मिलने से होती है।
जिस पर दिल
आ जाता है।
मोहब्बत उसे ही
हो जाती है।।
अपना भारत देश
हम सबका अपना देश है
जिसको कहते भारत हम।।
हम हिल मिलकर रहने में
विश्वास बहुत करते है।
सबके अरमानों को भी
हम साकार करते है।
देश प्रेम के भावों को
जग वालों को समझता हूँ।
और देश-प्रेम की ज्योति को
घर-घर में जलता हूँ।।
कितना प्यार कितना न्यारा
ये देश हमारा भारत है।
लोकतंत्र को मानने वाला
देश हमारा भारत है।
दुनिया को दर्पण दिखता
ये देश हमारा भारत है।
लाखों महापुरुषो और भगवानों ने
जन्म लिया है भारत में।।
राम कृष्ण तुलसी सूर आदि
भी जन्में है इस भारत में।
भक्ति संगीत का भी बड़ा
उदहारण हमारा भारत है।
दुनिया की नजरों में धर्मनिपेक्ष
देश हमारा भारत है।
इसलिए मंदिर मस्ज़िद गुरुद्वारे..
फैले हुये है भारत में।।
भारत के कण-कण में बसते
लाखों देवी देवता।
चारों दिशाओं में फैले है
लाखों वीर योध्दा भारत में।
भगत चंद्रशेखर मांग पांडे
दुर्गा लक्ष्मी अहिला जैसी
महिलायें जन्मी है भारत में।
इसलिए योध्दाओं का देश
कहते है हमसब भारत को।।
हम सबका अपना देश है
जिसको कहते भारत हम।।
जय हिंद जय भारत
कृष्ण अवतार
( गीत भजन )
हम तेरे दर्शन को आये है बहुत दूर से कृष्ण।
सिर्फ एक बार मुझे चरण को छू लेने दो।
हम तेरे दर्शन को आये है बहुत दूर से कृष्ण।।
रोज सपने में दिखते हो मुझे प्यारे कृष्ण।
कहाँ है पर है नहीं तेरा ठिकाना मेरे कृष्ण।
किस जगह की छवि मुझे रोज दिखते हो।
उस जगह पर मुझे तुम बुला लो कृष्ण।।
हम तेरे दर्शन को आये है बहुत दूर से कृष्ण।।
अपनी आँखों से तुम देखते हो जग से।
हर किसी पर तेरे दृष्टि रहती है कृष्ण।
मेरे आँखों में भी दिव ज्योति दे दो।
ताकि मैं सुबह शाम तेरे दर्शन कर सकूँ।।
हम तेरे दर्शन को आये है बहुत दूर से कृष्ण।।
अपनी लीलाएं दिखाकर सबको लूभाते हैं।
खेल खेल में अंत राक्षको का कर दिया।
और कंसमामा को भी संदेश देते गए।
फिर एक दिन कीड़ा के द्वारा ही कृष्ण ने।
कंस का वध करके मथुरा को मुक्त किया।।
हम तेरे दर्शन को आये है बहुत दूर से कृष्ण।।
हम तेरे दर्शन को आये है बहुत दूर से कृष्ण।
सिर्फ एक बार मुझे चरण को छू लेने दो।
हम तेरे दर्शन को आये है बहुत दूर से कृष्ण।।
जन्माष्टमी
कितना पवन दिन आया है।
सबके मन को बहुत भाया है।
कंस का अंत करने वाले ने,
आज जन्म जो लिया है।
जिसको कहते है जन्माष्टमी।।
काली अंधेरी रात में नारायण लेते।
देवकी की कोक से जन्म।
जिन्हें प्यार से कहते है।
कान्हा कन्हैया श्याम कृष्ण हम।।
लिया जन्म काली राती में,
तब बदल गई धरा।
और बैठा दिया मृत्युभय,
कंस के दिल दिमाग में।
भागा भागा आया जेल में,
पर ढूढ़ न पाया बालक को।
रचा खेल नारायण ने ऐसा,
जिसको भेद न पाया कंस।।
फिर लीलाएं कुछ ऐसी खेली।
मंथमुक्त हुए गोकुल के वासी।
माता यशोदा आगे पीछे भागे।
नंदजी देखे तमाशा मां बेटा का।।
सारे गांव को करते परेशान,
फिर भी सबके मन भाते है।
गोपियाँ ग्वाले और क्या गाये,
बन्सी की धुन पर थिरकते है।
और मौज मस्ती करके,
लीलाएं वो दिख लाते है।
और कंस मामा को,
सपने में बहुत सताते है।।
प्रेम भाव दिल में रखते थे,
तभी तो राधा से मिल पाए।
नन्द यशोदा भी राधा को,
पसंद बहुत किया करते थे।
गोकुल वासियों को भी,
राधा कृष्ण बहुत भाते थे।
और प्रेमी युगलों को भी,
कृष्ण राधा का प्यार भाता है।।
सभी पाठको के लिए जन्माष्टमी
की शुभ कामनाएं और बधाई।
तुम हो
जिंदगी अब तो तुम्हारी हो गई है।
अब प्यार दो या दो कुछ और।
सफर वहीं तक है जहाँ तक तुम हो।
नजर वहीं तक है जहाँ तक तुम हो।।
हजारो फूल देखे हैं
इस गुलशन में मगर।
खुशबू वहीं तक है
जहाँ तक तुम हो..।।
बहुत मिले सफर में हमें मुसाफिर।
पर हमसफर तो तुम ही मिले हो।
लोग मिलते रहे और चलते रहे।
पर साथ चलने को तुम्हीं मिले हो।।
कितने लोग आते जाते है।
मिलने और मिलाने को यहाँ।
पर अपना बनकर तो देखो।
सिर्फ मेरे जीवन में तुम आये हो।।
उथल पुथल जब मचा हुआ था।
तुमने आकर थमा लिया था।
आते जाते सुख दुख में भी।
तुमने साथ निभाना सिखा दिया।।
पग पग पर कांटे बिछे थे।
पर चलना तुमने सिखा दिया।
और जीवन के काँटों को
तुमने कैसे देखो हटा दिये।।
तकदीर बदल जाती है नसीब से,
पर मेरा नसीब तो सिर्फ तुम हो।
सच कहे अगर तुमसे प्रिये तो
मेरे जीवन का आधार तुम हो।
बस तुम हो बस तुम हो।।
हमारा आपका दर्द
मेरे दिलमें जो होता है
वो ही बात कहता हूँ।
कहकर दिलकी बातों को
सुकून बहुत मिलता है।
इसलिए इस जमाने में
मुझे कम पसंद करते है।
पर जो पसंद करते है
वो बहुत अच्छे होते है।।
मैं खुद को बदल नहीं सकता
तो जमाने को कैसे बदलूगा।
और अपनी बातों को मैं
जमाने को कैसे कहूंगा।
जबकी खुदका दिल नहीं
रहता है स्वयं के बस में।
तो औरों से क्या उम्मीदें
हम आप कर सकते है।।
बड़ा ही दर्द है लोगों
जमाने की सोच में।
जो न खुद जीते है
न औरो को जीने देता।
लगा है घाव दिल पर जो
उसे वो और खुरोंदेगे।
पर उस पर महलम वो
कभी नहीं लगाएंगे।।
द्रोपदी का कसूर भी
कुछ इसी तरह का था।
जो खुदको रोक न पाई
और जुबान से कह दिया।
और फिर किस तरह का
युध्द हुआ था उस युग में।
पूरा वंश उजड़ गया
उसके कहने भर से।।
देखो फिर हालात ऐसे ही
आज बन रहे है।
सच में हमसब कलयुग में
ही जी रहे है।
कहना सुनना अब बचा नही
प्रत्यक्ष जो देख रहे है।
क्योंकि रावण राज से भी
बत्तर हालात हो गया है।।
बदलता मौसम
बदलते हुए मौसम का
स्वभाव अलग होता है।
कही गर्मी कही सर्दी
उसके स्वभाव में आता है।
इसलिए हर किसी का
स्वभाव बदलता रहता है।
जो प्रकृति के अनुसार
सदा ही चलता रहता है।।
सभी के जीवन में देखों
बहुत बदलाव आता है।
क्या पेड़ पौधे और पक्षी
सभी बदलने लगते है।
इसी तरह से जीव-जंतु
और नर-नारी बदलते है।
जो मौसम को ही अपना
आधार मानकर जीते है।।
अगर मौसम खुश मिजाज हो
तो प्रेम उमड़ पड़ता है।
सभी को मौका मिल जाता
प्रेम मोहब्बत करने का।
घटायें कालि हो या
हो वो चाँद सी सुंदर।
लूभाति है सभी को
ये अपने-अपने अनुसार।।
मौसम का और धरा का
बड़ा ही गैहरा नाता है।
जो बदलते हुए मौसम में
दिखाई सबको पड़ता है।
इसलिए धरा और
मौसम साथ रहते है।
जिस की संरचना भी
बनाने वाले ने की है।।
भारतीय होने का गर्व
पीड़ा का समंदर तू जाने
दर्द की हर लहर तू जाने
अरे तू जाने तेरा काम
सबको राम राम राम।।
हौसले बुलंद हो अगर
तो बुलंदी को छू लेंगे।
साथ रहेगा आप सबका
तो आकाश को छू लेंगे।
और स्वयं का नाम हम
भारत में अमर कर देंगे।।
गर्व होगा सच में तुम्हें
अपने भारतीय होने पर।
जब तुम सफलता के झंडे
फहरा दोगे देश के हर कोने में।।
हम भारत वालों ने
बहुत खोकर पाया है।
अपनी मेहनत लगन के
बल बूते पर यारो।
तभी तो पत्थरो में से पानी
निकाल दिया हम लोगो ने।।
बहुत ही सुंदर और प्यारा है
देखो भारत देश हमारा
कला संस्कृति का देखों
कितना भरा है भंडार।
इसलिए तो भारत को
कला का देश कहते है।।
कितने प्यारे कितने न्यारे
नर नारी है भारत के।
मिल जुलकर कैसे रहते
देखो पूरे भारत देश में।
इसलिए मनाते रहते है
हर महोत्सव को भारत में।।
स्वर ताल संगीत के
देखो सब दिवाने है।
खूब सूरती के भी देखो
कितने लोग पूजारी है।
इसलिए मर मिटते है
भारत वाले हुस्न पर।।
हम भरतवासीयों का तो
सदा ये कहना होता है।
छोटा हों या हो बड़ा
आपस में हो प्यार बहुत।
इसलिए तो हम सब के
दिलो में रहता सद्भावना।।
जय भारत के नारों से
कैसे गूँज उठा अपना देश।
क्योंकि इसमें दिख रहा
अखंड भारत का दृश्य।
जो अपनी लोक कला
और संस्कृति को बिखर रहा।।
राम भक्त हनुमान
राम कृष्ण हनुमान की
करते सब बातें।
करे नहीं अमल पर
उनके आचरणों को।।
आये जब संकट तो
याद आये हनुमान।
हे संकट मोरचन तुम
हरो हमारे कष्ट।
मैं अर्पित करूँगा
तुम्हें घी और सिंदूर।
सुख शांति मुझे दो
मेरे पालन हार।।
बात करे जब भी
हम मर्यादाओं की।
याद आ जाते है
श्रीराम चंद्र जी।
उन जैसा कोई और
नहीं हैं मर्यादापुरूषोत्तम।
इसलिए हर नारी पूजे
उन्हें श्रध्दाभक्ति से।।
मोहब्बत होना
तुम्हें रोज देखकर के
मेरा दिल मचलने लगा।
तुम्हारा रूप देखकर के
मैं अब बहकने लगा।
मुझे शायद तुमसे अब
मोहब्बत होने लगी है।
इसलिए मेरी आँखे
तेरा इंतजार करती है।।
तुम्हारे दिल के बारे में
मुझे कुछ भी खबर नही।
मुझे अपने ही दिल की
सुनाई पड़ती है धड़कन।
तुम्हारी आँखे भी क्या
मुझे रोज देखती है ?
जैसे मैं देखता तुमको
वैसे क्या देखती मुझको।।
मोहब्बत हम भी करते है
मोहब्बत वो भी करती है।
मगर हम इस जमाने के
लोगों से बहुत डरते है।
इसलिए मोहब्बत को
कबूल कर नही पाते।
और दिलकी बातों को
हम दिलमें ही रखते है।।
मेरी आँखों में तेरी
सदा तस्वीर दिखती है।
मिलन आँखो का हो या
मिलन हो अपने दिलका।
यहाँ करबट बदलते हम
वहाँ वो सो नही पाते।
यही होता है प्यार में
जब हो जाये किसी से।।
रक्षा बंधन
रिश्तों में सबसे प्यारा,
है राखी त्यौहार हमारा।
बना रहे स्नेह प्यार,
भाई-बहिन में सदा।
राखी के कारण ही बहिना,
मिलने आती भाई से।
और याद दिला देती
रक्षा के उन वचनों को।
रक्षा के उन वचनों को।।
संबंध हमेशा बना रहे,
रिश्तों की डोर से बंधे रहे।
बना रहे अपास में प्यार
मायके के सब जनो से।
इन्ही सब को जोड़ने
आता है रक्षाबंधन।
मिलना मिलाप हो जाता
हर साल में एक बार।
हर साल में एक बार।।
कैसे रक्षा की थी कृष्ण ने
अपनी बहिन द्रोपती की।
सब की आंखों में वो
दृश्य झलकता आज भी।
धागे के बंध से ही कृष्ण
बहिन रक्षा को आये थे।
और दिया वचन रक्षा का,
बहिन प्रति निभाये थे।
तभी से रक्षा बंधन का,
हम सब त्यौहार मानाते।
हम सब त्यौहार मानाते।।
डगर बड़ी कठिन है
पग पग पर कांटे बिछे
चलना तुम्हें पड़ेगा।
दौर कठिन जीवन का
तुमको संभालना पड़ेगा।
रहकर दूर अपनो से
नजदीक पहुँचना पड़ेगा।
लक्ष्य तुम्हें जीवन का
हासिल करना पड़ेगा।।
चलते है जो कांटो पर
मंजिल उन्हें मिलती है।
दु:ख के दिन बिताकर
सुख में प्रवेश करते है।
और अपनी सफलता का तब
श्रेय मेहनत को देते है।
और सच्चाई जिंदगी की
खुद व्या करते है।।
चलाते हुए क्यों न
पावों में छाले पड़ गए हो।
और दर्द सहते हुए भी
आगे बढ़ते गये हो।
और लक्ष्य की खातिर तुम
सब कुछ सह गये हो।
इसलिए तुम जीवन की
ऊँचाइयों को छू पाये हो।।
जय जिनेंद्र
संजय जैन “बीना” मुंबई
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