वो सपनों में आकर सताने लगे हैं
वो सपनों में आकर सताने लगे हैं
वो सपनों में आकर सताने लगे हैं
मेरी धड़कनों को बढ़ाने लगे हैं
बनाया था तिनकों से जो आशियाना
अदू आके उसको जलाने लगे हैं
क़यामत कहीं आ न जाए यहाँ पर
सितमगर को हम याद आने लगे हैं
ज़माने ने ठोकर लगाई है उनको
तभी होश उनके ठिकाने लगे हैं
कहीं हो गयी हो मुहब्बत न उनको
कि अब आईने से लजाने लगे हैं
बचाने को अपने महल दो महल वो
ग़रीबों के घर को जलाने लगे हैं
सिखाया था उँगुली पकड़ जिनको चलना
वही आज उँगली दिखाने लगे हैं
ज़नाज़े को काँधा लगाने से पहले
सभी यादें मेरी मिटाने लगे हैं
किसी पे न ज़ाहिर हो राज़-ए- मुहब्बत
वो मेरे खतों को जलाने लगे हैं
हुई एक पल में मुहब्बत थी मीना
बताने में उनको ज़माने लगे हैं
कवियत्री: मीना भट्ट सिद्धार्थ
( जबलपुर )
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