Ghazal | सर उठाना तो सदा बेबसी से बेहतर है
सर उठाना तो सदा बेबसी से बेहतर है
( Sar Uthana To Sada Bebasi Se Behtar Hai )
सर उठाना तो सदा बेबसी से बेहतर है
सर-कशी कैसी भी हो ख़ुद-कुशी से बेहतर है
हुस्न सजने से , संवरने से दबा जाता है
क्या कोई रंग तेरी सादगी से बेहतर है
उसकी आमद पे मेरी आँख ने पूछा मुझसे
क्या चमकता है जो अब रोशनी से बेहतर है
एक तितली ने कहा, देख के गुलदानों को
फूल जंगली ही सही, काग़ज़ी से बेहतर है
गर वतन के लिए ये जान चली जाएगी
मौत कैसी भी हो फिर ज़िन्दगी से बेहतर है
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