Sardi Par Kavita

ठंड से कांप रहा | Sardi Par Kavita

ठंड से कांप रहा

( Thand se kaanp raha ) 

 

कोई चादर से बाहर नंगे बदन आज भी है।
स्वार्थ तज दो करो भला शुभ काज भी है।

ठंडक से कांप रहा कोई क्या ये अंदाज भी है।
ठिठुर रहा सड़क पर कोई सर्द से आज भी है।

कोहरा ओस का आलम छाया शीतलहर जारी है।
मौत से जूझ रहा कोई ना जाने किसकी बारी है।

बचाओ बचा सको जान सांसे अब भी बाकी है।
सरहद पे तैनात खड़े वीर पहने वर्दी खाकी है।

भला हो सके कर दो वक्त की जो मार खाते हैं।
ठंड से दिला सको राहत इंसान उपकार पाते हैं।

 

रचनाकार : रमाकांत सोनी सुदर्शन

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

यह भी पढ़ें :-

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *