सव्वा किलो गुड़

महेंद्र भाई की छोटी सी उम्र मे मौत के बाद मेरे ससुर जी स्व. गेबिलाल जी ढालावत साहेब ने नागपुर के गड्डी गोदाम स्थित दुकान और घर को छोड़ने का फैसला करते हुए निर्णय लिया की कलमना स्थित घर मे रहने हेतु जाये.. वहीँ किराणे की दुकान शुरू की जाये।

महेंद्र भाई मेरे इकलोते साले साहेब थे और मुज से कुछ ही महीने बढे थे.. मात्र 28 साल की उम्र मे ही वे हम से दूर चले गए थे..दूर.. बहुत दूर.. सबको रोता बिलखता छोड़ के.. बूढ़े पिता पर फिर से दुनिया का भार ढो के.. उन के तिन छोटे छोटे बच्चे थे.. बूढ़े माँ बाप थे और रोती बिलखती उनकी पत्नी।

श्री गेबिलाल जी का मुझे फोन आया था की नयी दूकान के उदघाट्न पर मे नागपुर आऊ.. नही का तो कोई सवाल ही नही था.. मै दो दिन पहले ही नागपुर पहुच गया इस भावना के साथ की कुछ काम हो तो उन की मदद करू.. मेरे जाने से पहले ही गेबिलाल जी ने सारी तैयारी कर के रख दी थी.. वे बीमार थे।

बेटे का गम छाती पर था.. कदमो में लड़खड़ाहट थी मगर फिर भी नए सिरे से जिंदगी को संवारने मे अपनी ऊर्जा लगा रहे थे इस आशा मे की महेंद्र भाई नही है तो क्या हुआ.. उन की तिन तिन निशानिया तो है.. उन का तो भविष्य सवारना है.. एक दादा को पिता के रूप में अवतरित होता देख मेरा ह्दय बार बार भर आ रहा था।

दुकान उदघाटन के दिन श्री गेबिलाल जी ने कहा की दुकान शुभारम्भ का किसी को भी निमन्त्रण नही दिया है.. घर के जो खास खास रिश्तेदार है उन्हें ही बुलाया है.. हम दुकान खोल कर बैठ गए और ग्राहक का इंतजार करने लगे.. तभी मेरे रिश्ते मे साढ़ू स्व. श्री न्यालचन्द जी सिहावत पधारे.. वे बड़े ही हँसमुख और मिलनसार स्वभाव के इंसान थे.. आते ही बोले रमेश बाबू तुम्हारे ही हाथ से करो बोहनी.. कब तक ग्राहक का इंतजार करोगे..?

मै बोला मै तो घर का ही हु.. आप ही कर दो न बोहनी.. मेरी बात सुन स्व. श्री न्यालचन्द जी सिहावत बोले हा हा.. क्यू नही.. मै ही कर देता हु बोहनी.. और जेब से पैसे निकालते हुए बोले चलो जमाई बाबू सव्वा किलो गुड़ तौलो.. सव्वा किलो गुड़ सुन गेबिलाल जी एक बारगी चौक पड़े.. मुह से एक फुसफुसाहट सी निकली सव्वा किलो गुड़।

मैने कनखियों से देखा गेबिलाल जी अपनी भर आयीं अंखियो को पूछ रहे थे.. श्री न्यालचन्द जी के जाने के बाद मै गेबिलाल जी को प्रश्न वाचक चिन्हों से देखने लगा.. मेरी जिज्ञासा देख ससुर जी खुद ही बताने लगे.. देखो रमेश कुमार जी.. आज से कई सालो पहले गड्डी गोदाम खलासी लाइन में मैने दूकान शुरू की थी।

उस दुकान की बदौलत मैने खूब पैसे कमाए.. खूब इज्जत शोहरत कमाई.. राजस्थान मे घर बार खड़े किये.. बच्चों की शादी ब्याह कराये.. कभी मेरे घर से कोई चंदे वाला ख़ाली हाथ नही गया.. न जाने कितने लोगो धंधे पर लगाया और यह सब उस खलासी लाइन की दुकान की बदौलत हुआ.. और जब वह दुकान मैने शुरू की तो उस की बोहनी भी सव्वा किलो गुड़ से हुयी थी.. और आज भी इस दुकान की बोहनी सव्वा किलो गुड़ से हुयी है.. कहते कहते उनकी आँखे बरसने को आतुर हो गयी थी.. उन्होंने मुँह घुमा लिया.. मेरी भी आँखे नम हो आई.. अनेक अनेक धन्यवाद.

रमेश तोरावत जैन
अकोला
Mob : 9028371436

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