आज मैं एक विद्यालय में गया।
विद्यालय के प्रधानाचार्य जी सिगरेट के कस ले रहे थे। तब से दूसरे अध्यापक भी बीड़ी का बंडल निकाल कर बांटने लगते हैं। और फिर शुरू हो जाता है जाम का दौर। ऐसा लगता है कि भठ्ठे की चिमनी विद्यालय में लग गई हो। धुआं से पूरा प्रधानाचार्य कक्ष भर जाता है।
तब से दो लड़कियां आती हैं और हाथों से धुएं को झाड़ते हुए प्रधानाचार्य से कुछ कहती है तो प्रधानाचार्य जी कहते हैं कि-” जाओ ! बाद में आना और लड़कियों को भगा देते हैं ।”
फिर भद्दे मजाकों का दौर शुरू हो जाता है। जिन शब्दों को ना लिखा जाए तो अच्छा है।
तो दोस्तों यह है हमारे आचार्य देवो भव के देवतागण! जिनकी आरती उतारते हुए हजारों बच्चे अपने जीवन की नैया खेने वाले हैं। आचार्य जो आचरण से शिक्षा दें। तो हमारे गुरुजन अपने आचरण से क्या सीख दे रहे हैं कि– बीड़ी पियो शान से- जिंदगी जियो शान से। जैसे हम खांसते हुए जीवन गुजार रहा हूं तुम भी गुज़ारो।
मैं उनकी बातें सुनकर दंग रह गया और चुप रहना ही भलाई समझी ।
क्योंकि नशेड़ी व्यक्ति अपने वश में नहीं रहता ।
तो यह है हमारे आधुनिक -खेवनहार।

योगाचार्य धर्मचंद्र जी
नरई फूलपुर ( प्रयागराज )

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