सावन आया | Sawan Aaya
सावन आया
नयी चेतना
नयी जाग्रत
अंतर्मन में
नया भाव कुछ
मन को भाया,
गूॅंज उठे स्वर
झूॅंम उठे वन
प्रकृति ने भी
नव मधुरस का
पान कराया,
लतिकाएं तरु
आलिंगन कर
लिपट लिपट कर
नतमस्तक
साभार जताया,
रिमझिम रिमझिम
बूॅंदें जल की
छोड़ गगन को
उतर धरा पर
उपवन का
संसार बसाया,
स्पर्श प्रेम का
अंतर् उर में
मंद हवा बह
प्रितम का
रति भाव जगाया,
नहीं प्रिय फिर
और कौन वह?
उच्छवास उर
स्पंदन में
और नहीं वह
सावन आया।

रचनाकार : रामबृक्ष बहादुरपुरी
अम्बेडकरनगर उत्तर प्रदेश
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