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वक्त नहीं लोगों के दामन में
( Waqt nahi logon ke daman mein )
वक्त नहीं लोगों के दामन में, भागमभाग है सारी।
महंगाई ने पैर पसारे, डरा रही हमें नित महामारी।
चकाचौंध दिखावा ज्यादा, वादे प्रलोभन सरकारी।
आटा दाल आसमान छूते, बीत रही जिंदगी सारी।
दिनभर की दौड़ धूप से, दो जून की रोटी पाते हैं।
कमर तोड़ महंगाई में, नित खून पसीना बहाते हैं।
वक्त नहीं लोगों के दामन में, मीठी बातें चार करें।
बैठ थोड़ा वक्त बिताएं, मधुर स्नेह व्यवहार करें।
सुख-दुख औरों का पूछे, हाल बयां करें खुद का।
दुनिया का आलम ऐसा, माहौल लगा करें युद्ध सा।
भागदौड़ भरी जिंदगी, सुध-बुध ना ठिकाना कोई
कई किनारे पीछे छूटे, पथ में नहीं बेगाना कोई।
कवि : रमाकांत सोनी
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )