Shamshan par Bhojpuri Kavita

श्मशान | Shamshan par Bhojpuri Kavita

” श्मशान ” भोजपुरी कविता

( Shamshan ) 

 

चार कंधा पे पड़ाल एगो लाश रहे
फूल ,पईसा के होत बरसात रहे
राम नाम सत्य ह सब केहू कहत जात रहे
केहु रोआत रहे केहू चिल्लात रहे

भीड़ चलत रहे ओके साथ मे
जे समाज से अलग रहे, आज हांथ में आग ले
सब कुछ छोड़ आज ऊ जात रहे
का नाता का रिश्ता ना कुछ बुझात रहे

आज ऊ गईल शमशान में
सुत लकडी पे मिल गईल आग में
छोड़ सबकेहू ओके नहात रहे
कहा गईल ऊ नाहीं कुछ बुझात रहे

 

रचनाकार – उदय शंकर “प्रसाद”
पूर्व सहायक प्रोफेसर (फ्रेंच विभाग), तमिलनाडु
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