श्मशान | Shamshan par Bhojpuri Kavita
” श्मशान ” भोजपुरी कविता
( Shamshan )
चार कंधा पे पड़ाल एगो लाश रहे
फूल ,पईसा के होत बरसात रहे
राम नाम सत्य ह सब केहू कहत जात रहे
केहु रोआत रहे केहू चिल्लात रहे
भीड़ चलत रहे ओके साथ मे
जे समाज से अलग रहे, आज हांथ में आग ले
सब कुछ छोड़ आज ऊ जात रहे
का नाता का रिश्ता ना कुछ बुझात रहे
आज ऊ गईल शमशान में
सुत लकडी पे मिल गईल आग में
छोड़ सबकेहू ओके नहात रहे
कहा गईल ऊ नाहीं कुछ बुझात रहे