Samosa par Bhojpuri Kavita
Samosa par Bhojpuri Kavita

समोसा

( Samosa ) 

 

आज खड़ा रहनी हम बजार में
भिंड भरल रहे अउर सबे रहे अपना काम में
दुकानदार चि‌‌ललात रहे हर चिज़ के दाम के
तले एगो ल‌इका ले उडल कवनो समान के

चोर चोर कह सभे चिल्ला उठल
का चोर‌इले रहे ना केहु के पता चलल
उ ल‌इका आवाज सुन डेरा ग‌इल
भागल जोर से अउर गली में लुका ग‌इल

डरल सहमल अउर ऊ दुबकल रहे
जाके देवाल के कोना में चिपकल रहे
तनी देर बाद जब मामला ठंढा ग‌इल
जेब से निकाल उ समोसा खा ग‌इल

 

कवि – उदय शंकर “प्रसाद”
पूर्व सहायक प्रोफेसर (फ्रेंच विभाग), तमिलनाडु
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