Pahchan par Bhojpuri Kavita
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पहचान

( Pahchan ) 

 

हम बिगड़ ग‌इल होती
गुरु जी जे ना मरले होते
बाबु जी जे ना डटले होते
भ‌इया जे ना हमके समझ‌इते
आवारा रूप में हमके प‌इते

बहिन जे ना स्नेह देखाइत
माई जे ना हमके खियाइत
झोरी में ना बसता सरीयाइत
आवारा रूप में हमके पाइत

सुते में हम रहनी अभागा
लेके द‌उडी पतंग के धागा
सिकायत जे ना घरे आइत
आवारा रूप में हमके पाइत

सही ग़लत के ना रहे ज्ञान
जवन मन करे करी होके अज्ञान
ना कबो सही राह भेटाइत
आवारा रूप में सभे हमके पाइत

धीरे-धीरे हम प‌इनी ज्ञान
हमके मिलल आपन पहचान
सभे मिल के ना हमके घिसले होइत
आवारा रुप में हमके पाइत

जे-जे मिल के हमके घिसलक
ज्ञान के संगे हमके मिसलक
आभारी हो हम करतानी प्रणाम
ओके चलते मिलल हमके पहचान ।

 

कवि – उदय शंकर “प्रसाद”
पूर्व सहायक प्रोफेसर (फ्रेंच विभाग), तमिलनाडु
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