शिक्षा
शिक्षा

शिक्षा

**

जीवन का अंग है
हर प्राणी के संग है
जीने का ढंग है
जरूरी है
मजबूरी है
बिना इसके हर जिंदगी अधूरी है।
मानव को छोड़ कर
सभी प्राणी अपनी संतान को
जीवन की शिक्षा
उड़ने तैरने शत्रु से बचने की शिक्षा
फूलों से शहद बनाने की शिक्षा
बिना लिपि भाषा श्यामपट्ट-
और कंप्यूटर के देते आ रहे हैं,
हजारों लाखों साल से
न डिग्री वाली शिक्षा
न कागजों का चिट्ठा।
फिर भी शत् प्रतिशत सीखा जाते हैं।
अपनी संतान को
मगर देखो तो ज़रा इंसान को!
शिक्षा के नाना प्रकार हैं-
नैतिक, भौतिक, धार्मिक, अध्यात्मिक, विज्ञान,गणित,समाजिक शिक्षा,वयस्क, प्रौढ़
क्षेत्र अनेक हैं अभी और…
नाना प्रकार के फूल/पार्ट टाइम कोर्स हैं,
विद्यालय महाविद्यालय विश्वविद्यालय हैं।
राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर के बने हैं,
लाखों लाख की फीस भी लेते हैं;
अंत में डिग्री/कागज का ढेर थमा देते हैं।
पर इन डिग्रियों ने आदमी को
कितना कुछ सिखाया?
कितना इंसान बनाया?
यह आजतक कोई न जान पाया!
पढ़ते कुछ हैं
करते कुछ हैं
जीना कैसे था?
जीते कैसे हैं!
कभी मां बाप को
कभी गुरु को
तो कभी परिस्थितियों को दोष देते,
अपनी असफल जिंदगी हैं जीते।
इतने संसाधनों के बावजूद मानव-
अपनी संतान को संपूर्ण नहीं सिखा पाता,
एक अच्छा इंसान नहीं बना पाता!
जबकि अन्य प्राणी
अपने सीमित संसाधनोंऔर
व्यक्तिगत प्रयास से ही
नई पीढ़ियों को
जीवन की शिक्षा
शत् प्रतिशत दे जाते हैं
बोलो!
उनके सामने इंसान-
क्या कहीं टिक पाते हैं?

 

?

नवाब मंजूर

लेखक– मो.मंजूर आलम उर्फ नवाब मंजूर

सलेमपुर, छपरा, बिहार ।

यह भी पढ़ें :

याद तेरी जब आती है

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here