पिता का तोहफा
पिता का तोहफा

पिता का तोहफा

( Pita ka tohfa )

 

जिंदगी के मायने कब बदल जाते हैं l पता ही नहीं चलता l
रत्ना जो कल तक अपने पिता से हर चीज के लिए ज़िद करके मांग लेती थी l
शादी होने के बाद रत्ना पहली बार मायके गईl उसका तीजा का व्रत वही पड़ा l लाल रंग उसे बड़ा पसंद था l

पिता ने तुरंत बेटी से थ कहां तैयार हो जाओ l बिटिया को लेकर मंदिर पहुंच गए पंडित जी से पूछने लगे ऐसा कुछ हो सकता है रात्रि की पूजा अभी करा दो पंडित जी हंसने लगे कहने लगे व्रत व्रत होता है समय पर ही टूटेगा , पिता बेटी को ले बाजार पहुंच गए कहने लगे , अपने लिए तीन चार साड़ी पसंद कर लो l

बेटी ने तुरंत जवाब दिया मेरे पास तो बहुत सारी है तब पिता बोले ठीक है तो अपनी मां के लिए पसंद कर दो बेटी ने तुरंत अपनी मां के लिए तीन चार साड़ी पसंद कर दी l और फिर पिता घर आ गएl बेटी का व्रत बहुत अच्छी तरह से पूर्ण हुआ l
पिता भी अपनी बेटी के लिए रात भर जागते रहे l

उन्होंने कहा, बेटी जो मां के लिए साड़ी पसंद की थी l उनमें से एक दो तुम रख लो lबेटी ने बड़े स्वाभिमान से कहा नहीं नहीं पिताजी अभी तो इन्होंने दिलाई थीl, माता-पिता दोनों चुप रहे गये l बेटी की विदाई का दिन आ गयाl, सूटकेस
लग चुका था माता पिता ने बेटी दामाद का तिलक किया पांव पड़े और विदा कर दिया l

घर पर आकर काम काज में व्यस्त होने के बाद रात में रत्ना कपड़े जमाने लगी जैसे ही सूटकेस का नीचे का हिस्सा देखा l तो रत्ना हैरान हो गई उसने तो सूटकेस में ताला लगाया था और चाबी पर्स में रख दी थी l

फिर मां की साड़ियां उसकी सूटकेस में कैसे आ गई वह समझ गई पिता ने बेटी के स्वाभिमान को ठेस ना पहुंचे l मां से कह कर चुपके से वे साड़ियां सूटकेस में रख दी थी l पिता पिता होता है वह , अपनी बेटी को सबसे ज्यादा समझता है l

❣️

डॉ प्रीति सुरेंद्र सिंह परमार
टीकमगढ़ ( मध्य प्रदेश )

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