शोषण | Shoshan
रमेश एक बेरोजगार लड़का था। उसे काम की अति आवश्यकता थी। इसी बीच उसके एक दोस्त ने कहा कि कुछ लिखने पढ़ने का काम है । करना है तो आ जाओ। वह दोस्त के साथ कम पर लग गया। दो-तीन महीना तक उसे क्या तनख्वाह मिलेगी यह भी नहीं पता चला। फिर भी उसे विश्वास था कि दोस्त है तो अच्छा ही करेगा।
उसके दोस्त ने जब उसकी तनख्वाह बताएं तो वह संतुष्ट तो था लेकिन काम के घंटे से संतुष्ट नहीं था। कई कई बार उसे रविवार को भी आना पड़ता था। 8 घंटे की ड्यूटी की जगह अक्सर उसे 11- 12 घंटे तक ड्यूटी करनी पड़ती थी। बेरोजगार व्यक्ति आखिर कर ही क्या सकता था। लेकिन कभी वह ज्यादा प्रतिरोध नहीं करता था क्योंकि काम उसके मन का था और दोस्त के साथ बातें करते-करते समय का पता नहीं चलता था।
ज्यादा देर बैठने से उसके पैरों में दर्द होने लगा। कई बार उसने अपने दोस्त से कहा कि मैं इतनी लंबी ड्यूटी नहीं कर पाऊंगा मेरी ड्यूटी 8 घंटे फिक्स कर दी जाए। लेकिन उसका दोस्त मीठी-मीठी बातें करके बातों को टाल देता था।
उसने देखा कि यह समस्या पूरी कंपनी में व्याप्त है। कहने के लिए 8 घंटे हो लेकिन अधिकांस सभी 10 -11 घंटे काम कर रहे हैं। यह उस व्यक्ति की कंपनी है जो की दुनिया में शोषण के खिलाफ बड़े-बड़े भाषण देता है। हाथी के दांत खाने के अलग और दिखाने के अलग होते हैं वही स्थिति यहां हो रही थी।
धीरे-धीरे समय अपनी गति से आगे बढ़ रहा था। 2 वर्ष कैसे निकल गए पता नहीं चला। एक दिन रमेश ने कहा हम तो 8 घंटे काम कर पाएंगे। फिर उसका साथी अपने असली रूप दिखा दिया। देखो तुम्हें तो 12 घंटे ही काम करने पड़ेंगे। यदि 8 घंटे काम करना है तो तुम्हारे रहने और खाने के अलग से पैसे देने होंगे। उसके तनख्वाह बढ़ने की जगह अब ₹ ५००० रहने खाने के कटने लगा। जिसका उसने विरोध किया तो उसे जब वह अपने गांव गया हुआ था और वहां थोड़ा लेट तक रुक गया तो यह बहाना बनाकर के उसे काम से ही निकाल दिया गया।।
जब वह गांव से लौटा दो पता चला उसकी नौकरी जा चुकी है। अक्सर यही होता है समाज में व्याप्त शोषण का जब आप विरोध करते हैं तो आपको ही प्रताड़ित किया जाता है। या तो अंधे गूंगे बहरे बनकर शोषण को सहते रहिए भूल से भी प्रतिरोध किया तो आप को प्रताड़ित करते हुए आप को निकाल दिया जाता है।
मनुष्य की मजबूरी होती है वह शोषण को सहते रहता है। अपने ऊपर किए जाने वाले शोषण का जब विरोध करता है तो उसे विभिन्न रूप में प्रताड़ित किया जाता है। मुख्य रूप से देखा जाए तो समाज की संरचना ही शोषण पर आधारित है। यहां हर बड़ी मछली, छोटी मछली को निगलने के लिए तैयार बैठी है।
प्राइवेट संस्थानों में कार्य करने वाले का जमकर शोषण होता है। यह शोषण की प्रक्रिया युगो युगो से चली आ रही है। रमेश जैसे कुछ लोग ही शोषण का प्रतिरोध कर पाते हैं। रमेश ने फिर आगे से कभी नौकरी न करने का संकल्प ले लिया और खुद का कारोबार करने का प्रयास किया। लेकिन पूंजी के अभाव में कोई कारोबार सही से नहीं चल पाया। क्योंकि पूजी पूजी को कमाता है।
हमारे समाज की व्यवस्था ही ऐसी है कि अमीर और अमीर होता जाता है गरीब और गरीब होता जाता है। सारी सरकारें जितनी भी योजनाएं लागू करती हैं अमीरों को ध्यान में रखकर के लागू करती हैं। जिसके द्वारा अमीर गरीबों का शोषण कर सके। इस प्रकार से देखा जाए तो हमारी सरकारें अमीरों की गुलाम होती हैं। अमीर व्यक्ति सरकारी पैसे का हजारों करोड़ रुपए का चूना लगा करके भाग जाता है ।
फिर भी सरकारें उसकी कुछ नहीं कर पाती है। वही गरीब किसान यदि बैंकों से थोड़ा बहुत कर्ज भी लेता है उसे प्रताड़ित करती हैं। इस दुनिया में दो कानून चलते हैं एक गरीबों के लिए , एक अमीरों के लिए। हमारी सरकारें गरीबों के लिए मुफ्त की योजनाएं बनाते हैं। लेकिन उसका सबसे बड़ा फायदा अमीरों को ही होता है । गरीबों को तो दिखावा मात्र होता है। देश का मजदूर, किसान , कामगार सदैव से भूखा नंगा था और रहेगा।
रमेश ने देख की सारी समाज की संरचना ही शोषण पर टिकी हुई है। समाज का निर्माण ही शोषण के आधार पर किया गया। जो जितना अधिक शोषण कर सकता है, उतना ही यदि अमीर हो सकता है।
फिर वह समाज में व्याप्त है शोषण का प्रतिरोध अपनी लेखनी के माध्यम से करने लगा। यहां भी देखा कि लेखकों का जमकर के शोषण होता है। अधिकांश प्रकाशक नए लेखकों को चक्कर ही लगवाते रहते हैं।
लेखक भी इस शोषण का शिकार होने से नहीं बच पाता है।
योगाचार्य धर्मचंद्र जी
नरई फूलपुर ( प्रयागराज )