Mehfil -E- Ishq
Mehfil -E- Ishq

महफ़िल -ए- इश्क

( Mehfil-e-Ishq )

 

महफिले इश्क में इसरार की मोहलत नहीं होती।
जहां में यार से बढ़कर कोई दौलत नहीं होती।।

वफ़ा के आब से ही जिंदगी में चैन मिलता है,
अना के शजर पे ताउम्र की चाहत नहीं होती।।

मरीजे इश्क मर भी जाय तो मतलब कहां उनको,
ज़माने की अदाओं से जिसे फुर्सत नहीं होती।।

किसी ने कान में क्या कह दिया आंसू निकल आये,
यही इक कैद है जिससे कभी राहत नहीं होती।।

शहंशाही झुका करती रही है इश्क के बाबत,
दिल के बाजार में असबाब की कीमत नहीं होती।।

जला करता मुसलसल शेष चाहे लाख तूफा हों,
चरागे इश्क़ में ख़ुदग़र्ज़ की आदत नहीं होती।।

 

लेखक: शेषमणि शर्मा”इलाहाबादी”
प्रा०वि०-नक्कूपुर, वि०खं०-छानबे, जनपद
मीरजापुर ( उत्तर प्रदेश )

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