दिखावा किस के लिए ?
एक बार फिर में आपके सामने एक ऐसा विषय लेकर आया हूँ जिस पर आज की युवा पीड़ी बहुत ही तेजी से इस ज़माने में भाग रही है । क्या ये सब उनके लिए उचित है ?
इस चमकती दमकती दुनिया को वो लोग भी उसी चश्मे से देख रहे है जिस हिसाब से उन्हें ये सब दिखाया जा रहा है । वो उसे ही अपने जीवन में उतार रहे है । जब की ये सब वास्तविता से कोषों दूर है , और सिर्फ दिखावा है और कुछ नहीं ।
इसी के चक्कर में पड़कर न जाने कितने सारे युवा अपना जीवन बर्वाद कर रहे है और …..जब तक उनको समझ में आता है तब वो कही के भी नहीं रहते । क्या पहले के लोगो को ये सब नहीं पता था की ….?
इस २१वी सदी में आगे क्या कुछ होने वाला है किसी को पता है क्या। इंसान को इस जीवन यापन करने को क्या चाहिए । जिस चीज की जरूरत हो उसे अपनी आमदनी के हिसाब से ही लेना चाहिए या फिर दुसरो के दिखावे के लिए लेना चाहिए । जब की उन दोनों ही चीजों का मकसद एक ही होता है ।
एक छोटा सा किस्सा आप लोगो को बताता हूँ शायद हम और आप समझ जाएँ । जैसे जैसे मेरी उम्र में वृद्धि होती गई, मुझे समझ आती गई कि अगर मैं Rs.3000 की घड़ी पहनू या Rs.30000 की दोनों समय एक जैसा ही बताएंगी.!
मेरे पास Rs.3000 का बैग हो या Rs.30000 का इसके अंदर के सामान मे कोई परिवर्तन नहीं होंगा। !
मैं 300 गज के मकान में रहूं या 3000 गज के मकान में, तन्हाई का एहसास एक जैसा ही होगा।!
आख़ीर मे मुझे यह भी पता चला कि यदि मैं बिजनेस क्लास में यात्रा करू या इक्नामी क्लास, मे अपनी मंजिल पर उसी नियत समय पर ही पहुँचूँगा।
इस लिए अपने बच्चों को अमीर होने के लिए प्रोत्साहित मत करो बल्कि उन्हें यह सिखाओ कि वे खुश कैसे रह सकते हैं और जब बड़े हों, तो चीजों के महत्व को देखें उसकी कीमत को नहीं …. .. और न ही किसी को दिखावे के लिए ये सब करो ।
हमें अपने आप को देखना है न की दुनिया वालो को कुछ दिखाना है क्योकि जो भी होगा हमें ही भोगना पड़ेगा दुनियां वालो को नहीं फिर क्यों दिखावा और किस लिए ।
फ्रांस के एक वाणिज्य मंत्री का कहना था ब्रांडेड चीजें व्यापारिक दुनिया का सबसे बड़ा झूठ हैं जिनका असल उद्देश्य तो अमीरों से पैसा निकालना होता है लेकिन गरीब इससे बहुत ज्यादा प्रभावित होते हैं।
क्योकि अमीर लोग तो पैसे को पकड़ते है , जबकि वो लोग यदि आप देखोगे तो सस्ते और सुन्दर वस्तुओ का इस्तेमाल करते है परन्तु माध्यम वर्गीय लोगो को कुछ और ही समझ आता है और फिर क्या होता है वो बताने की हमें जरूरत नहीं है ।
क्या यह आवश्यक है कि मैं Iphone लेकर चलूं फिरू ताकि लोग मुझे बुद्धिमान और समझदार मानें?
क्या यह आवश्यक है कि मैं रोजाना Mac या Kfc में खाऊँ ताकि लोग यह न समझें कि मैं कंजूस हूँ?
क्या यह आवश्यक है कि मैं प्रतिदिन दोस्तों के साथ उठक बैठक Downtown Cafe पर जाकर लगाया करूँ ताकि लोग यह समझें कि मैं एक रईस परिवार से हूँ?
क्या यह आवश्यक है कि मैं Gucci, Lacoste, Adidas या Nike के पहनूं ताकि जेंटलमैन कहलाया जाऊँ?
क्या यह आवश्यक है कि मैं अपनी हर बात में दो चार अंग्रेजी शब्द शामिल करूँ ताकि सभ्य कहलाऊं?
क्या यह आवश्यक है कि मैं Adele या Rihanna को सुनूँ ताकि साबित कर सकूँ कि मैं विकसित हो चुका हूँ?
नहीं यार !!!
मेरे कपड़े तो आम दुकानों से खरीदे हुए होते हैं,
दोस्तों के साथ किसी ढाबे पर भी बैठ जाता हूँ,
भुख लगे तो किसी ठेले से ले कर खाने मे भी कोई अपमान नहीं समझता,
अपनी सीधी सादी भाषा मे बोलता हूँ। चाहूँ तो वह सब कर सकता हूँ जो ऊपर लिखा है
लेकिन ….
मैंने ऐसे लोग भी देखे हैं जो मेरी Adidas से खरीदी गई एक की कीमत जूतों की जोड़ी में पूरे सप्ताह भर का राशन ले सकते हैं।
मैंने ऐसे परिवार भी देखे हैं जो मेरे एक Mac बर्गर की कीमत में सारे घर का खाना बना सकते हैं।
बस मैंने यहाँ यह रहस्य पाया है कि पैसा ही सब कुछ नहीं है जो लोग किसी की बाहरी हालत से उसकी कीमत लगाते हैं वह तुरंत अपना इलाज करवाएं।
मानव मूल की असली कीमत उसकी नैतिकता, व्यवहार, मेलजोल का तरीका, सुल्ह-रहमी, सहानुभूति और भाईचारा है। ना कि उसकी मोजुदा शक्ल और सूरत. !!!
सूर्यास्त के समय एक बार सूर्य ने सबसे पूछा, मेरी अनुपस्थिति मे मेरी जगह कौन कार्य करेगा?
समस्त विश्व मे सन्नाटा छा गया। किसी के पास कोई उत्तर नहीं था। तभी कोने से एक आवाज आई।
दीपक ने कहा “मै हूं ना”मै अपना पूरा प्रयास करुंगा ।
आपकी सोच में ताकत और चमक होनी चाहिए। छोटा -बड़ा होने से फर्क नहीं पड़ता, सोच बड़ी होनी चाहिए। मन के भीतर एक दीप जलाएं और सदा मुस्कुराते रहें और इस चमक Damak की दुनिया को अपनी अंतरात्मा की आवाज़ से देखो तभी तुम्हे इस मानव जीवन का सही मूल्य मालूम पड़ेगा और अपने आप को सही तरीके से समझ पाओगे ।
फिर सोचोगे की मैंने ये दिखावा किसी के लिए किया। और इससे हमें और हमारे परिवार को क्या मिला। इसलिए अपने आप को कभी भी किसी और से मत तुलना करो। आप जैसे हो जो भी हो श्रेष्ठ हो।
जय जिनेंद्र
संजय जैन “बीना” मुंबई