श्राद्ध पक्ष
श्राद्ध पक्ष

श्राद्ध पक्ष

( Shradh Paksh )

 

पुरखों  को  सम्मान  दें,  हैं  उनके ही अंश।
तर्पण कर निज भाव से, फले आपका वंश।।

 

बदला  सारा  ढंग  है,  भूल  गए  सत्कार।
तर्पण कर इतिश्री किया, छूट गए संस्कार।।

 

तब  कौवों  ने  बैठ के, रच दी सभा विशाल।
श्राद्ध पक्ष अब आ गए, समय बड़ा बदहाल।।

 

नियम बनेंगे जो यहां, सबको रखना ध्यान ।
गुस्ताखी  करना  नहीं, सहना हो अपमान।।

 

किसके घर प्रसाद लें, किसके घर हो टाल।
सेनापति  कहने  लगा, कर लाओ परताल।।

 

जीते  जी सेवा नहीं, मरे जिमावे काग।
खाए कोई भूल से, लगे उसी के दाग।।

 

बहिष्कार करना सभी, बंद करो यह खान।
ऐसे  दूषित  भोज  से,  हो  जाए नुकसान।।

 

जीते  जी  नहीं पूछते, मात-पिता का हाल।
मरे जिमावे काग को,करना उसकी टाल।।

 

एक  राय  सब  हो गए,सबके सुने विचार ।
सभा विसर्जन हो गई,उड़ गए पंख पसार।।

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कवि : सुरेश कुमार जांगिड़

नवलगढ़, जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

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