झोपड़ी में बसते हैं भगवान
झोपड़ी में बसते हैं भगवान

झोपड़ी में बसते हैं भगवान

( Jhopdi mein baste hain bhagwan )

 

मेहनत मजदूरी जो करते, सदा चलते सीना तान।
अटल रह सच्चाई पर, सबका करे आदर सम्मान।

 

शील स्वभाव विनय भाव, ईमानदारी गुण प्रधान।
घट घटवासी परम प्रभु, झोपड़ी में बसते भगवान।

 

सबसे हिल मिलकर रहे, मदद करे अपना जान।
ऊंच नीच का भेद न जाने, समझे सबको समान।

 

माटी से जुड़कर रहते, धरती पुत्र गुणी सुजान।
जहां बरसे प्रेम सलोना, झोपड़ी में बसते भगवान।

 

दीनबंधु दुखहर्ता है, वो जग का पालनहारा।
सच्चे मन से जो पुकारे, प्रभु को लगता प्यारा।

 

निर्मल हदय वास प्रभु का, सबका रखते ध्यान।
पावन धाम दीन घर, झोपड़ी में बसते भगवान।

 

ऊंचे महलों का दंभ नहीं, बहती जहां नेह धारा।
छल छ्दमो का काम नहीं, पुरुषार्थ भरा सारा।

 

नीले अंबर नीचे हरदम, महकाते सुंदर बागान।
दीनानाथ जग परमेश्वर, झोपड़ी में बसते भगवान।

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कवि : रमाकांत सोनी

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

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