Shramik
Shramik

श्रमिक

( Shramik ) 

पाँव में घाव सिर पर बोझ कुछ ऐसी गिरानी लिख।
पसीने में डुबोकर लेखनी मेरी कहानी लिख।।
उदर में मुझको रख के माँ ईंट गारे उठाती थी,
जरा सी देर होने में मालकिन कहर ढाती थी,
लगी जो चोट गिरने से अभी तक है निशानी लिख।
पसीने ०
ग़रीबी ने कहर ढाया किताबें छू नहीं पाया,
धुली जो थालियाँ जूठी उन्हें मैं भूल कब पाया,
बहा है आँख से अब तक वही अश्के बयानी लिख।
पसीने ०
तुम्हारी सौ तली मंजिल खड़ी मीनार के पत्थर,
कटगये हाथ चुनने में न जाने था कहाँ ईश्वर,
रस्सियों पर चली जब ज़िन्दगी टूटी कमानी लिख।
पसीने ०
बुढ़ापा क्या जवानी क्या सिर्फ श्रम ही नजर आया,
गरीबी के शिकंजे से कहाँ मैं छूट कब पाया,
शेष ओला कहीं तूफान से बिगड़ी किसानी लिख।।

 

लेखक: शेषमणि शर्मा”इलाहाबादी”
प्रा०वि०-नक्कूपुर, वि०खं०-छानबे, जनपद
मीरजापुर ( उत्तर प्रदेश )

 

( 1 )

सारा दिन उहापोह मेंं गुजर गया

मजदूर कौन है कौन नहीं

इसी में मन उलझ गया

श्रम तो रिक्शा चलाने में भी  है

मजदूरी करता दिहाड़ीदार भी  है

मगर अब तो सफेद कॉलर वाले भी

देखा जाए तो इनको पढ़ाने वाले भी

हर जन हर गण खुद को श्रमिक कहता है

और 1मई  की छुट्टी मनाने

आराम से घर बैठता है

शारीरिक हो ,या  मानसिक, कहता

श्रम तो श्रम है, दिवस मनाने का पूरा हक़ है

सारा दिन तो सोच सोच कर

सोचा, मैंने भी तो है काम किया

दिखता नहीं मगर बैठे बैठे सांस भी लिया

दिल धड़कता रहा तमाम उम्र

कभी मोहब्बत में, कभी रकाबत से

इस रंग बिरंगी दुनिया में ,खुद  को पन्नों सा

कभी सफेद किया ,कभी स्याह किया

दिन के उजालों में ‘गर कई महल उबारे

रात के अंधेरों में उन्हीं ख़्वाबों को फना भी किया

मुझसे बड़ा कोई नहीं  हो सकता श्रमिक,

मज़दूर, जो बिना वेतन, बिना पगार

जिंदगी , तुझे ढोने का यह काम सुबह किया

हर शाम किया…

 

लेखिका :- Suneet Sood Grover

अमृतसर ( पंजाब )

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