विषय सूची

क्रोध

क्रोध है जीवन का दुश्मन
होते क्रोध से रुग्ण अनेक
मन का चैन खो जाता है
हर लेता यह सबका विवेक
क्रोध पर विजय पाने को
आत्म स्वरूप में आना होगा
शांत स्वभाव है आत्मा का
उसी स्वभाव में रहना होगा
गलती पर क्रोध न करके
क्षमा करना सीख लीजिए
दुश्मन भी मित्रवत हो जाए
ऐसा आचरण कीजिए
आत्मा शांत रहेगी सदा
खिलखिलाकर हंस लीजिए।

शहीद जगदीश वत्स जयंती पर

याद रहेंगे सदा जगदीश
मनो की किताब में
स्वर्ण पन्ना जोड़ दिया था
भारत के इतिहास में
17 वर्ष की अल्पायु में
तिरंगा उन्होंने फैहराया था
अंग्रेजों की गोलियों से
वह राष्ट्रभक्त टकराया था
मां जमुना, पिता कदम का
जगदीश वत्स दुलारा था
भारत मां की आजादी का
जगदीश वत्स दीवाना था
पंडित नेहरू ने उनकी वीरता का
लोहा खूब माना था
विजय ट्राफी देकर नेहरू ने
वत्स परिवार को नवाज़ा था
अमर रहेगा नाम जगदीश का
जब तक सूरज चांद रहेंगे
नाम गूंजता रहेगा उनका
आओ शहादत को याद करे
भारत रत्न देंकर जगदीश को
उनकी राष्ट्रभक्ति को नमन करे।

बुजुर्ग

घर मे हो या आस पास
जहां भी हो बुजुर्ग वास
जरूर जाओ उनके पास
कराओ उन्हें अपनत्व एहसास
आवश्यकता उनकी बहुत कम है
केवल एकाकीपन का गम है
प्यार से जानिए उनका हाल
फिर देखिए होगा कमाल
उनके चेहरे पर मुस्कान आएगी
खुशियां जिंदगी में लौट आएगी।

जीवन

जीवन सुगम बनाने को
इच्छा कम का मिले वरदान
जितनी इच्छाएं कम होगी
उतना अधिक मिलेगा मान
व्यर्थ के संकल्पो से जब
मुक्ति सहज मिल जायेगी
सुविचारों से परिपूर्ण मन
पा लेगा अपना स्वमान
स्वयं को जानने का जब
आत्मचिंतन होने लगे
आत्मा का परमात्मा से
मिलन हो जाएगा आसान ।

प्रतिदिन

प्रतिदिन सवेरे लिया करे
हम सब प्रभु का नाम
प्रभु की ही कृपा से
हो जायेगे सारे हमारे काम
यह सोचो हम नही करते
प्रभु करते है सारे काज
कोई विघ्न नही आएगा
मिलेगा सफलता का ताज
यह सफलता हम सबके
सुखद जीवन का आधार बनेगी
प्रभु हमेशा याद रहे हमे
परलोक संवारने की राह बनेगी।

शांत मन

शांत मन से बढ़ती है
आत्म विवेक की शक्ति
उनको भी शांति मिलती
जो करते है प्रभु भक्ति
मिल जाए परमात्म ज्ञान
बदल जाएगा जीवन सारा
विकारो से मुक्ति मिलेगी
पवित्र हो जाए मन हमारा
स्वयं को जानने इससे
मिल जाता है अवसर
प्रभु से लौ लग जाती है
सुधर जाता है जीवन स्तर ।

शांतचित

शांतचित है मूल आधार
खुशी रहती इसमे अपार
व्यर्थ सोच की जगह नही
करते किसी का बुरा नही
विकार मुक्तता बड़ा है गुण
अहंकार रूप बड़ा है घुण
समानता समभाव की है धनी
प्यार की ऐसे मे नही है कमी
आत्म स्वरूप मे जीवन बिताते
परमात्म ज्ञान से जीवन सजाते
इससे बनते इंसान से देवता
कलियुग से सतयुग का यही पता।

एक निवेदन मेरा भी

एक निवेदन मेरा भी
सुन लो प्यारे ध्यान से
कुछ तो समय निकालो
अपने लिए भी काम से
जीवन सारा बीत न जाये
रोटी,कपड़ा,मकान मे
परमात्मा का नाम लेना भी
न आ पाये ख्याल में
जीवन है प्रभु की देन
कुछ अपेक्षा है आपसे
व्यस्त समय से समय निकालो
मिल लो जगत के बाप से
वही तुम्हारा मीत सखा है
वही मात पिता तुम्हारे
उन्ही से बस ध्यान लगा लो
मिट जाएंगे कष्ट सारे।

आचरण

जैसा आचरण आप करोगे
वैसा बच्चे कर पाएंगे
आप सदमार्ग पर चलकर देखो
बच्चे भी सदमार्ग अपनाएंगे
बडो का अनुसरण करना
बच्चों की पुरानी आदत है
बडो के पदचिन्हों पर चलना
यही सच्ची इबादत है
झूठ,फरेब,मक्कारी अगर है
उसे अच्छाई से खत्म करों
सत्य,मधुरता,शांत व्यवहार से
बच्चों मे ज्ञान प्रकाश भरो
ऐसा करने से बड़प्पन आपका
कही अधिक बढ जायेगा
बच्चा बच्चा आपको प्यारा
कृष्ण सरीखा हो जायेगा।

दुआ

सच्चे मन से करों दुआ
परमात्मा सुन लेगा
जो भी तुम चाहोगे
वही वह कर देगा
अपने लिए तो सभी मांगते
दुसरो के लिए मांगकर देखो
दुआ कबूल हो जायेगी
एक बार दुआ करके देखो
परोपकार है सच्ची सेवा
सुख भी मिलता इससे अपार
इंसानियत की कसौटी पर
कभी खुद को कस कर देखो
इंसान से देवता बन जाओगे
परमात्मा के प्यारे हो जाओगे।

विधानसभा उपचुनाव

विधानसभा उपचुनाव में
कांग्रेस के जीतने पर
विधायक भले ही काजी बने
बधाइयां मुझे भी मिल रही है
लोग मिठाई भी मांग रहे है
बधाई देने वालो में वे भी है
जो कांग्रेस के साथ नही रहे
कई ऐसे भी है जो दिखावे को
भाजपा के साथ खड़े थे
कुछ वहां माल चीर रहे थे
दावे भी कर रहे थे,वही जीतेगा
लेकिन पासा पलटते ही
वे भी पलट गए है तत्काल
अब कह रहे है बाहरी था
कहां ढूंढने जाते,हरियाणा क्या
काजी कम से कम अपना तो है
दुःख सुख में साथ रहेगा
काश!यह बात पहले समझे होते
इतने बवेले न हुए होते
चुनाव क्या,रणभूमि बन गया था
अपना भी,पराया हो गया था
पैसे ने अपना जलवा दिखाया
कही जात, कही धर्म आड़े आया
फिर भी संविधान जीत गया
अवसरवादी हार गया
फिर भी जोश में होश खोना नही है
हिंसा की कोई जगह नही है
अहिंसा ही हमे पार लगाएगी
लोकतंत्र को स्वस्थ बनायेगी
यही सुखद भविष्य का आधार है
परिवर्तन की नई ब्यार है।

डॉ सुनीता पुण्डरीक

मेरी युगल डॉ सुनीता पुण्डरीक को उनके जन्मदिवस की हार्दिक बधाई,

ईश्वरीय याद में रहती सदा
कर्तव्य पथ पर चलती सदा
झँझवातो से घबराती नही
गंगा की तरह बहती सदा
कामना करती खुशहाली की
पैरवी करती संस्कारो की
निर्लेप भाव जीवन तुम्हारा
धूप छांव दोनो सहती
मां शांति की लाडली हो
प्रकाशवती की राजदुलारी हो
मुझको कृष्ण सा चाहा है
स्वयं राधा -रुक्मणी सी रहती
भक्ति में लीन रहती सदा
पावन तुम प्रिय सखी हो
जन्मदिन की शुभकामनाएं तुम्हे
अभिलाषा तुम्हारी पूरी हो
जगत में नाम गूंजे तुम्हारा
ऐसी दुआए है हम सबकी।

घोर कलियुग

घोर कलियुग की है छाया
अपना भी आज हुआ पराया
बड़े छोटे का नही सम्मान
स्वार्थ की हंडी मे
पक रहा अभिमान
जिनके सामने मिमयाते थे
आज उन्हें गुर्राते है
परमात्म को ही भूल गए
खुद को भगवान बताते है
पथभ्रष्ट हुए ऐसे अज्ञानी
कर रहे रोज नादानी
परमात्मा उन्हें सद्बुद्धि दो
अहंकार से भी मुक्ति दो।

आधुनिकता

आधुनिकता की होड़ मे
लोक परम्परा बिसर गई

परमात्म चिंतन छोड़ कर
व्यर्थ सोच मे उलझ गई

दुसरो की सोचते सोचते
पूरी जिंदगी गुजर गई

किया होता अगर स्व चिंतन
खिला होता तन और मन

जो चले परमात्म मार्ग पर
उनकी जिंदगी संवर गई

परमात्मा का साथ मिला
पवित्रता से जिंदगी खिल गई।

अच्छे कर्म

अच्छे कर्म जिसने किए
जीवन के पल सुखमय जिए

तनाव कभी पास नही आता
शांति प्रिय ही उनको भाता

मुख पर तेज उन्ही के रहता
राजी खुशी सदा वह रहता

आत्म सन्तोष की कमी नही
प्रभु आसक्ति नित बढ़ती नई

सांसारिक द्रष्टा वह कहलाता
मोह माया से दूर हो जाता

परमात्म पिता का वही है प्यारा
सारे जग का होता राजदुलारा ।

यह कैसा चुनाव?

चुनाव ही तो था,फिर शत्रुता क्यों
निष्पक्ष मतदान में,व्यवधान क्यों

जो अच्छा होगा,वह चुना जाएगा
फिर जिद क्यो है अपने को जीताने की

जबरदस्ती वोटरों को लुभाने की
या फिर उन्हें धमकाने की

संविधान में तो ऐसा कुछ नही है
न धन बल है,न गुंडागर्दी

फिर यह सब कहा से,
ओर क्यो आ जाती है चुनाव में

सरकार भी बह जाती है
दलगत बहाव में

जबकि सरकार सबकी है
न इस दल की, न उस दल की

सरकार को
समभावी रहना चाहिए

निष्पक्षता रखनी चाहिए
बिना किसी दबाव के

बिना किसी प्रलोभन के
जिसे ज्यादा वोट मिले

उसको माननीय मानो
स्वस्थ लोकतंत्र को जानो।

राष्ट्रभक्त

उत्तराखंड में पांच जवानों के
शव देखकर छाती हिल गई
जैसे धरती फट गई
वही हिमाचल में
नो माह बाद हुआ
एक शहीद का अंतिम संस्कार
शोक,करुणा और चीत्कार
शहादत पर राष्ट्रभक्ति भारी थी
फिर भी सिसकियां जारी थी
क्या शहीदों के परिजनों का दुःख
हम बांट पाते है
उन्हें अग्रिम पंक्ति में खड़ा कर पाते है
क्या उनके लिए बन जाएगा
बिना घुस दिए आश्रित प्रमाण पत्र
क्या घर बैठे स्वीकृत हो जाएगी
परिवार की पेंशन
मिलने लगेगा सहजता से राशन
बीमार होने पर हो सकेगा
घर बैठे अच्छा इलाज
यदि यह सब हो जाए, जो उनका हक है
तभी समझो हमे शहीद पर फक्र है
भ्र्ष्टाचार की सरकारी मशीनरी में
इतना सम्मान मिलना आसान नही है
क्योंकि उन्हें जेब से प्यार है
शहीद से सरोकार नही है
हो सकता है छब्बीस जनवरी
या फिर पंद्रह अगस्त को बुला ले कोई
वर्ना बाकी दिनों में उनसे
किसी को कोई दरकार नही है
बेलगाम नोकरशाही
स्वार्थ की हंडी से पके नेता
आखिर कब राष्ट्रभक्त परिवारों को
उनका खोया सम्मान लौटाएंगे
उन्हें अपने से ऊंचा मान पाएंगे।

बन्द मुठ्ठी

बन्द मुठ्ठी लेकर आता इंसान
भाग्य अपना बनाता इंसान

वह जैसे कर्म करता जाता है
भाग्य उसका बदलता जाता है

सदकर्म से जीवन निखरता
बुरे कर्म से जीवन बिखरता

जैसा करोगें वैसा भरोगे
यह परिणाम हर रोज निकलता

फिर हम क्यो समझ नही पाते
दोष भाग्य पर देने लग जाते

जो दौलत कमाई यही रह जायेगी
मुठ्ठी हाथ की खुली रह जायेगी।

जीवन

जीवन सबका रेत समान
फिर काहे का करों अभिमान

फिसलता जाता सांसो स्वांस
फिर खत्म हो जाती सब आस

मिट्टी से जन्मा मिट्टी हो जाता
सच मे हाथ कुछ भी न आता

जो कर्म किये जीवन में अच्छे
वही साथ निभाते सच्चे

फिर समय क्यो गंवाता बन्दे
हर एक पल को सफल कर दे

जाने पर इस दुनिया के बाद
अपने नाम को अमर कर दे।

हर पल

हर पल याद रहे प्रभु
ऐसे करो अच्छे काम

दिल किसी का दुखाओ नही
सबको करो प्रणाम

ईश्वर की सन्तान है सब
क्या बड़ा, क्या छोटा

आत्मभाव से सम्मान दो
धर्म -जात सब छोटा

इंसानियत है बड़प्पन
जिसको तुम अपनाओ

जो भी है प्रभु का बन्दा
सब पर प्यार बरसाओ।

हंसना और हंसाना

हंसना और हंसाना सीखो
जीवन सरल बनाना सीखों
अभिमान कोई रह न पाए
ऐसे स्वमान में जीना सीखों
व्यवहार सभी को भा जाए
ऐसा अपना बनाना सीखों
जगत तुम्हे भूल न पाए
दिलो में जगह बनाना सीखों
अपने आपसे भी बात करों
खुद से खुद की बात करो
ईश्वर से कुछ संवाद करो
आत्मस्वरूप में वास करो

जो आया है, वह जाएगा

जो आया है, वह जाएगा
दुनिया मे सदा न रह पाएगा
जिसने कुछ अच्छा किया
वही अमर हो पाएगा
अपने लिए तो सभी जीते है
परहित जीना जिसे आएगा
ईश्वर उस पर मेहरबान रहे
सर्व का प्यारा कहलायेगा
मानव जीवन को सार्थक कर
जो देवत्व समान बन जाएगा
परमात्मा का प्यारा कहलाएगा
परलोक उसका संवर जाएगा।

आम है वह

भले खास न हो पर आम है वह
फलों का राजा सरेआम है वह
दशहरी,लंगड़ा चौसा,कही देशी
मलीहाबादी कही लंगड़ा परदेशी
चूसकर खाने का मज़ा निराला
शहद सा मीठा कही खट्टा मतवाला
कही डाल का कही पाल का
कही पेटियों में सजता फलराजा
अमीर-गरीब हर कोई खाता
बजट में आम सबके आ जाता
सौगात में भी आम मिलता बहुत है
परमात्मा को भी आम भाता बहुत है
आओ आम का लुत्फ उठाये
मौसम के प्यारे फल को खाएं
स्वास्थ्य के लिए आम भाता बहुत है
स्वाद में भी आम लज़ीज़ बहुत है
तभी तो आम फलों का है राजा
आम का आचार वर्षभर का खाजा।

उगता सूरज

उगता सूरज देखकर
हर कोई होता प्रसन्न
नवसृजन जब भी हो
होता है नया जश्न
कालचक्र रुकता नही
करता अपना काम
उगते सूरज की सुबह होती
ढलते सूरज की शाम
जीवन रहस्य भी यही है
कभी सुबह, कभी शाम
परमात्म ज्ञान जिसे हो जाए
सदा रहता निश्चिन्त वह
न सुख में अतिप्रसन्न होता
न दुःख में विचलित होता।

अहंकार

अहंकार जिसने किया
चैन से वह नही जिया
शांति उसकी चली जाती
प्रेम की विदाई हो जाती
दुसरो का भी चैन हर्ता
खुद भी बेमौत मरता
रावण ने भी यही किया था
कंस ने अत्याचार किया था
बल,बुद्धि काम न आई
विनाशकाले जान गंवाई
चीन पाक इसी राह पर है
खुद मरने की कगार पर है।

जीवन

प्रवाहित जल सा
जीवन हो
गंगा जल सा
निर्मल हो
धूल जाए सारे विकार
जीवन से,
पवित्र तन,मन
और जीवन हो
ज्ञान गंगा में लगाओ
गोते प्रतिदिन
परमात्म ज्ञान से
परिपूर्ण हो हर दिन
मिटे विकार अंधेरा
जगे पवित्र जोत हर दिन।

राम पूछ रहे है उनसे

राम पूछ रहे है उनसे
कैसा मंदिर तुमने बनाया
अरबो खर्च होने पर भी
छत से पानी क्यो आया
क्या नही दिया राम ने
तुम्हे जीरो से हीरो बनाया
फिर कैसी बेवफाई है ये
छत से टपका क्यो बरपाया
अहंकार में डूबे हुए हो
मर्यादा तक भूल गए
राम लाये थे तुम्हे धरा पर
तुम राम को लाने की बात कर रहे
उल्टी गंगा बहाओगे तो
नतीजे उसके भुगतने होने
राम नाम भुनाने वाले
राम स्थलों पर पराजित होंगे
रस्सी जल गई बल नही गए
यह देख रहा है सारा देश
आपातकाल तो याद रहा
भूल गए मणिपुर प्रदेश
किसानों की मौत का जिक्र नही
बेरोजगार बिलख रहे है यहां
सत्ताधीश राजदण्ड दिखा रहे
कैसे बचेगा लोकतंत्र यहां
संविधान की कुर्सी पर बैठा
भाषा दलगत बोल रहा
महामहिम तक अछूती न रही
एजेंडा सरकार का गूंज रहा
संविधान के शीर्ष मंदिर में
संविधान की रक्षा करनी होगी
हर आम की बने खास आवाज़
यह व्यवस्था अब करनी होगी
स्पष्ट नही बहुमत किसी का
गठबंधन की बैशाखियां है
मनमानी अब नही चलेगी
निष्पक्ष न्यायालय से वास्ता है।

मन मे कबीर

मन मे कबीर बसा है सबके
उसे बाहर ले आओ अबके
पाखण्ड,अंधविश्वास खत्म करों
कबीर को फिर से जीवन्त करों
15 वीं सदी से जगा रहा है
सबको सच्चाई बता रहा है
जाति धर्म का चक्कर छोडो
स्वयं को इंसानियत से जोड़ो
ईश्वर अल्लाह तो एक है
इबादत के तरीके अनेक है
कुरीति,विकारो को दूर करों
सुसंस्कारों को ग्रहण करों
कबीर विचार छा जायेगा
समाज फिर से बदल जायेगा।

चिंतन

अच्छा चिंतन करने से
अच्छे बन जाते विचार
इसी राह पर चलने से
करते हम सद्व्यवहार
सबके भले में अपना भला
न कोई शिकवा, न गिला
सन्तोष सुख की राह यही
इच्छाए कम हो बात सही
दूसरे को नही, स्वयं को देखो
अपनी कमियां स्वयं ही देखो
अच्छा चरित्र बन जाएगा
दिल परमात्मा से जुड़ जाएगा।

परमात्म मत

परमात्म मत पर जो चले
सदा सफल वह होए
मन मत की जो करे
कष्ट उठाना पड जाए
यह शरीर तो पुतला है
पंचतत्व की माटी का
आत्मा ही चलाती है
जीवनपथ हर राही का
आत्मा का परमात्मा से
ध्यान जब लग जाएगा
जीवन पथ ज्योतिबिन्दू से
जगमगाता नजर आएगा।

अच्छे कर्म

अच्छे कर्म करने पर
अच्छा फल मिलता है
सदपुरुषार्थ करने पर
गजब का सुख मिलता है
परहित सेवा करने से
मन आनन्दित हो जाता है
सबके मन को भा जाते है
सबके मन मे बस जाते है
पराया नही रहता फिर कोई
दुसरो के दुख हर लेता है
हर एक चेहरे पर मुस्कान रहे
ऐसा वातावरण बन जाता है।

अमृतसर

अमृतसर की पावन धरा पर
एक दिव्य कन्या ने जन्म लिया
राधे नाम से पुकारी गई वह
देवी शक्ति का उदभव हुआ
परमात्मा शिव की लाडली बेटी
ननिहाल सिंध में जा पहुंची
ओम मण्डली के सत्संग से जुड़
दादा लेखराज की बन गई बेटी
युग परिवर्तन करने को
परमात्मा ने उन्हें निमित्त बनाया
राधे हो गई सरस्वती जगदम्बा
नारी शक्ति का मान बढ़ाया।

जीवन एक अनुपम उपहार

दिया परमात्मा ने हमको
जीवन एक अनुपम उपहार
हर पल को सार्थक कर लो
कोई भी पल न जाए बेकार
धन दौलत है जीते जी की
सद्कर्म ही है निधि अपार
ऐश्वरीय लेकर गया नही कोई
प्यार है मनुजता का आधार
दुसरो को नही स्वयं को जानो
स्वयं को मानो दिव्य अवतार
परमात्मा के सर्वगुण धारण करो
मिलेगी जीवन मे खुशी अपार।

शिव है पहले योगी

परमात्मा शिव है पहले योगी
राजयोग हमे सिखलाते है
स्वयं की इंद्रियां वश में रहे
ऐसा पाठ हमको पढाते है
सिर्फ एक दिन का योग नही है
यह तो नियमित पाठशाला है
माता पिता और गुरु है शिव
जो आकर हर रोज़ पढाते है
शारिरिक अभ्यास को योग न कहे
योग तो तन मन से जुड़ता है
निराकारी परमात्मा शिव से
आत्मा का सम्बंध बनता है
विकारो से मुक्ति की युक्ति है
पतित से पावन की शक्ति है
संकल्प कर राजयोग अपनालो
तन मन को अपने पवित्र बना लो।

ब्रह्माकुमारीज

ओम मंडली का जब जन्म हुआ
राजयोग का तब उदय हुआ
सिंध प्रांत के कराची शहर में
इस योग की पहली शुरुआत हुई
सन 1936 में ब्रह्माबाबा ने ही
यह रूहानी पौधा लगाया था
सैकड़ो बच्चियों में चरित्र निर्माण का
एक अनूठा अभियान चलाया था
हीरे-जवाहरात के व्यापार से बाबा ने
जो धन दौलत कमाई थी
उससे ओम मंडली का खर्चा चलाकर
बच्चियों की किस्मत चमकाई थी
देश का बटवारा होने पर
भारत भूमि का ही चयन किया
सन 1950 में माउंट आबू पहुंचकर
नए युग का आग़ाज़ किया
ब्रह्माकुमारीज यही से नाम मिला
आध्यात्म सेवा को आयाम मिला
प्रतिदिन राजयोग अभ्यास कराते
शांति, सदभाव का प्रकाश फैलाते
धवल वस्त्र परिधान अपनाकर
ओम शांति की अलख जगाते
परमात्मा शिव ने यह यज्ञ रचाया
भाई-बहनों को निमित्त बनाया
दुनिया के 140 देशों तक जाकर
राजयोग का पाठ पढ़ाया
ब्रह्माबाबा, जगदम्बा सरस्वती
प्रकाशमणि,जानकी आधार बने
गुलजार दादी के तन में आकर
परमात्मा यहां साकार बने
ब्रह्माकुमारीज में जो भी आता
ब्रह्माकुमारीज का होकर रह जाता
स्वयं की आत्मा का बोध पाकर
हर कोई परमात्मा से यहां जुड़ जाता।

पक्ष – विपक्ष

पक्ष – विपक्ष के भेद बिना
संसद चले किसी द्वेष बिना
मर्यादा संसद की भंग न हो
नफरत की कोई जंग न हो
पुरजोर पैरवी जनहितों की हो
सीमाओं की रक्षा को द्वंद्व न हो
दलगत नही देशहित सोचिए
दलबदल की राजनीति छोड़िए
जनता के भरोसे पर खरा उतरिये
जो वायदे किए उन्हें पूरा कीजिए।

सम्मान

सम्मान समाज मे मिलता है
जो रहते है निरहंकार
मुख से जो मीठा बोलते
दुनिया करती उनसे प्यार
मैं मैं जिनमे न हो
दुनिया के वो अपने है
मैं मैं जिनके अंदर है
न वो गैरो के, न अपने है
उजले बनो, मन से बनो
आत्मा से सबल बनो
परमात्म भी मिल जाएंगे
गुण से परमात्म जैसे बनो।

मन सदा

मन सदा एकाग्र रहे
ऐसा रखिए ध्यान
व्यर्थ चिंतन से मुक्ति मिले
सद्चिन्तन का मिले ज्ञान
किसी का बुरा न हो कभी
ऐसा करे सदव्यवहार
गैर भी अपने हो जाएं
लोग करे सत्कार
फर्श से अर्श जब मिले
फर्श न भूलना कदापि
निरहंकार बने रहे
मिले परमात्म प्यार।

रोज उठकर

रोज उठकर किया करों
परमात्मा को प्रणाम
दिनभर आपका शुभ होगा
परमात्मा संवारेगे हर काम
परमात्म संग का आभास रहे
कर्मयोग में ध्यान रहे
मिले सफलता जीवन में
घरबार हमेशा आबाद रहे
सोते समय भी भूलो ना
शुभरात्रि प्रभु को बोल दीजिए
फिर देखिए ईश्वरीय लीला
कोई भी काम रहे न ढीला।

जीवन के रंगमंच

जीवन के रंगमंच पर
आते है बारी बारी
किरदार अपना निभाकर
जाते है बारी बारी
जिसकी जैसी प्रालब्ध
वैसा ही जीवन पाता है
जितनी सांस दी प्रभु ने
उतनी सांस ले पाता है
दुःख-सुख साथ रहते है
दोनो मिलते बारी बारी
सद्कर्म ही साथ निभाते है
जब आती जाने की बारी।

स्वार्थ की दुनिया

स्वार्थ की दुनिया में
निस्वार्थ रहना सीख लो
पाप की दुनिया में
निष्पाप रहना सीख लो
मैं शब्द जिसने भी छोड़ा
स्वयं को उसने प्रभु से जोड़ा
स्वयं को स्वयं से मिलाना
यह विधि बस सीख लो
आत्मा का परमात्मा से
मिलनयोग सीख लो
कष्ट सारे दूर हो जायेगे
मुस्कुराना तुम सीख लो।

शरीर के साथ

शरीर के साथ विचार शुद्ध हो
तन मन से इंसान शुद्ध हो
ईर्ष्या ,द्वेष,बैरभाव का अंत हो
प्रेम,सदभाव,अपनत्व शुद्ध हो
पंच तत्व का है तन पुतला
देहाभिमान का सदा अंत हो
विदेही होकर रहना सीखो
आत्म बल बढ़ाना सीखो
बनी रहे परमात्म कृपा सब पर
तन मन सुख का कभी न अंत हो
छोटे बड़े का यह भेद कैसा
परमात्म सन्तान सभी नेक हो।

धर्म सभी का

धर्म सभी का यह हो
बढ़े चरित्र का मान
सबके चरित्र से बनती है
अपने देश की शान
संस्कार ,संस्कृति,मानवता
है भारत की पहचान
इन गुणों को अपनाने से
होता भारत महान्
अहिंसा के हम है प्रहरी
शक्ति के हम पोषक
परमात्म मार्ग पर हम चलें
बन जाए दुनियां की शान।

जिंदगी

जिंदगी वही सफल है
जिसमे पुरुषार्थ का फल है
भाग्य नही पुरुषार्थ बड़ा है
यह भाग्य से आगे खड़ा है
पुरुषार्थ ही है ईश्वर सेवा
जीवन मे मिलती है मेवा
इससे सब अपने बन जाते
आप सभी के प्रिय हो जाते
जीवन मे खुशिया आ जाती
परमात्म कृपा स्वत:हो जाती
पुरुषार्थ को साधना बना लो
जैसा चाहे भाग्य बना लो।

दिल की सुन लो

दिल की सुन लो बात
दिल है सुप्रीम जज
नही करता अन्याय
यह है न्याय का घर
दिल की आवाज
जब सुन लेता मष्तिष्क
हर काम होता आसान
मिल जाती है मंजिल
दिल की आवाज ही
यथार्थ में है आत्मा
जिसको शक्ति देते है
सदैव परमपिता परमात्मा।

राजयोग से

राजयोग से आत्मा को
रिचार्ज कर लीजिए
आत्मा पर चढ़ी मैल को
तनिक धो लीजिए
मूल धर्म पवित्रता है
यूँ ही न गंवाईये
विकार की कालिख पुती है
उस कालिख को हटाइए
परमात्म याद से हो सकती है
अपनी आत्मा की धुलाई
पुरुषार्थ का थोड़ा
साबुन तो लगाइये
फिर देखिए चमक उठेगी
चेहरे की लालिमा
अपने तन के साथ
मन को भी स्वस्थ बनाइये।

एक वृक्ष लगाये

आओ हम एक वृक्ष लगाये
प्रकृति को अपनी बचाये
हवा-पानी सबको चाहिये
खाने को रोटी भी चाहिये
तभी सब मिलेगा जब पेड़ होंगे
हरियाली से लबरेज होंगे
भीषण गर्मी का बचाव यही है
पर्यावरण संतुलन आधार यही है
हर व्यक्ति दो पेड़ लगाये
उनकी अच्छे से देखभाल कराये
नई पीढ़ी को भी जीवन मिलेगा
जो जीवन है खुशहाल बनेगा।

वोटर राजा

वोटर राजा ने जो वोट दिया
उसका परिणाम आज आ रहा
संयम ,धैर्य बनाए रखिए
जनप्रतिनिधि नया आ रहा
निष्पक्ष मतगणना के लिए
सजग रहना बहुत जरूरी है
जिस ईवीएम में वोट पड़े थे
उसी की गिनती जरूरी है
जो जीत रहे है वे उग्र न हो
जो हार रहे है वे मायूस न हो
लोकतंत्र में ईमानदारी का
अनुपालन सभी को करना होगा
जोड़तोड़ की राजनीति से
हम सबको ही बचना होगा
चाहे जिस दल से कोई जीते
समभाव जनता से रखना होगा।

भानु खूब तमतमा रहा

लू से भी गरमा रहा
पसीने आते बार बार

पानी की हो रही दरकार
कही बूंद बूंद को तरस रहे

कही पानी बेमोल बहे
कही मिनरल की भरमार

कही दूषित जल की धार
जिन्हें वोट दिया वे ऐश करेंगे

जिसने दिया वे यूं ही सड़ेंगे
समानता का है घोर अभाव

इसीलिए डगमगा रही
आज लोकतंत्र की नाव।

नकारात्मकता

नकारात्मकता मन से निकालो
सकारात्मकता मन मे बसा लो
जीवन परिवर्तित हो जायेगा
सबकुछ अच्छा हो जाएगा
नकारात्मकता जीवन पर भारी
तनाव करता हम पर सवारी
बीमारियो को निमन्त्रण देता
शांति मन की हर लेता सारी
सकारात्मक सोच अच्छा बनाती
जीवन मे खुशिया ले आती
कोई पराया न रहे जगत मे
सबका प्यार मिले जगत मे
परमात्मा की भी कृपा बरसती
युग परिवर्तन सकारात्मकता करती।

हिन्दी की पत्रकारिता

हिन्दी की पत्रकारिता ने
छुए नित नए आयाम
गणेश शंकर विद्यार्थी है
इसमे सबसे ऊंचा नाम
मिशनरी पत्रकारिता के
वे ही असली जनक थे
देश की आजादी के
पत्रकार ही तो नायक थे
लेकिन घटते मूल्यों से
पत्रकारिता हुई आहत
पीत पत्रकारिता आज
है सबसे बड़ा अभिशाप
मीडिया मे खबरों के
दाम अब लगने लगे
सच्ची खबरों के किस्से
दफन अब होने लगे
हिन्दी पत्रकारिता जब
आईना बन जायेगी
झूठ दम तोड़ देगा तब
सच्चाई ही नजर आएगी।

पत्रकारिता दिवस पर

पत्रकार को पेट नही होता!
मैं एक पत्रकार हूं
न मेरा वर्तमान है
न ही कोई भविष्य
फिर भी मेरे प्रति है
एक जनविश्वास
मेरी खबरों की है
बड़ी विश्वनीयता
लोग चाहते है
मैं ईमानदार रहूं
जो लोग खुद में
बेईमान है
वे भी मुझमें
ईमानदारी खोजते है
मेरे फिसलने पर
नसीहतें देते है
लेकिन क्या ,
किसी ने सोचा है
मुझे मिलता क्या है
देश-समाज की
आवाज़ बनने पर भी
मुझमें होंसला नही है
अपनी आवाज़ उठाने का
जब कभी, जिसने भी
ऐसी जुर्रत की
वह बाहर हो गया
या फिर बाहर
कर दिया गया
उनके द्वारा जो स्वार्थी है
या फिर जो बिके है
सत्ता के गलियारों में
गणेश शंकर विद्यार्थी
बनने की मेरी भूख ने
मुझे कुपोषित कर दिया
मीडिया में ग्लैमर्स तो है
सम्रद्धि का उजाला नही
देश के 80 करोड़ को
मुफ्त अनाज मोहिया है
पत्रकार 80 करोड़ में भी नही
लगता है पत्रकार के
पेट नही होता,
इसीलिए वह चैन से नही सोता।

किसी के लिए दिन है

किसी के लिए दिन है
किसी के लिए रात है
सबका अपना भाग्य
या कर्मों की बिसात है
जैसा जैसा कर्म किया
वैसी वैसी बरसात है
न पछताने से कुछ होगा
न खुश होने की बात है
जिसके लिए दिन चल रहा
उसकी होनी सांझ है
जिसके लिए रात अंधेरी
आनी वहां प्रभात है
फिर घमण्ड कैसा,
या मायूसी कैसी ?
यह तो सृष्टि के
परिवर्तन का प्रपात है।

मोह जिससे भी हो

मोह जिससे भी हो
करता हमे कमजोर

है प्रबल विकार मोह
दूर करने पर दो जोर

माया मोह लगते प्यारे
पर अपनों से करते न्यारे

प्यार सभी से करना सीखो
मोह बन्धन से छुटना सीखो

फिर देखो प्रभु का कमाल
गुणों से होंगे मालामाल

ईश्वरीय बोध हो जाएगा
मोह सबसे छुट जाएगा।

मोह

मोह जिससे भी हो
करता हमे कमजोर

है प्रबल विकार मोह
दूर करने पर दो जोर

माया मोह लगते प्यारे
पर अपनों से करते न्यारे

प्यार सभी से करना सीखो
मोह बन्धन से छुटना सीखो

फिर देखो प्रभु का कमाल
गुणों से होंगे मालामाल

ईश्वरीय बोध हो जाएगा
मोह सबसे छुट जाएगा।

जीवन का हर रंग

बचपन,जवानी और बुढ़ापा
जीवन का हर रंग खरा सा

बचपन मे जिसे संस्कार मिला
पढ़ने का अच्छा आधार मिला

जवानी उसकी पहचान बनाती
ताकत भी राष्ट्र के काम आती

कुसंस्कारों से वह बचा रहता
सद्चरित्र उसके काम आता

बुढ़ापा भी कष्ट नही देता है
निरोग काया स्वस्थ्य मन देता है

प्रभु को जिसने साक्षी बनाया है
सफल जीवन उसने ही पाया है।

मन से सन्त

मन से सन्त
जो हो गया
माया मोह से
छूट गया
राग द्वेष
कोई न रहे
मन मे राम
बसे रहे
घर छोड़ना
जरूरी नही
परिजनों से दूरी
जरूरी नही
दायित्व सभी
निभाओ तुम
व्यवहार से
सन्त बन जाओ तुम।

सबको सब कुछ मिलता नही

सबको सब कुछ
मिलता नही
हर पेड़ पर पुष्प
खिलता नही
पराजय के डर से
परीक्षा छोड़ दे
ऐसे जीवन में
जीवटता नही
सफलता चाहिए
तो हारना सीखो
दुश्मन को गले
लगाना सीखो
मिल जायेगी
मंजिल हर एक
आत्मा को परमात्मा से
मिलाना सीखो
इसके लिए राजयोग
है उत्तम उपाय
जो इसमें रम गया
उसे परमात्मा भाये।

माउंट आबू

माउंट आबू की धरा निराली
ज्ञान सरोवर में छाई हरियाली

रूहानियत कण कण में बसी है
शिव बाबा की अपनी नगरी है

ब्रह्माकुमारीज का है मुख्यालय
चरित्र निर्माण एक देवालय

ओम शांति मंत्र है यहां का
जो आता हो जाता यहां का

आत्मस्वरूप का ज्ञान मिलता
राजयोग अभ्यास जो करता

प्रभु मिलन की धरा यही है
स्वर्ग सी अनुभूति यही है।

जीवन हो सार्थक

जीवन हो सार्थक
ऐसी हो जाए सोच

राष्ट्र पर न मर मिटने का
होता रहे अफ़सोस

देश के हर शख्स की
हिफाजत का निभाये जिम्मा

तरक्की हो वतन की
ऐसे करे हम काम

देश के शहीदों को
मिलता रहे सम्मान

एकाग्रचितता के साथ
सबके भले की हो बात

सफलता जरूर मिलेगी
परमात्मा होंगे साथ।

नई सुबह

नई सुबह आती रहे
नई आशाओ के साथ

हम कदम बढ़ाते रहे
अभिलाषाओं के साथ

सकारात्मक सोच हो
लक्ष्य सबका नेक हो

संवेदना बनी रहे
इंसानियत जिन्दा रहे

प्यार संग दुनिया रहे
सबके शुभ की चाह हो

सद्कर्मो की राह हो
परमात्मा भी याद रहे

सद्गुणों की बौछार रहे।

दुःख सुख

दुःख सुख दोनो आते जाते
विचलित इनसे होना नही

दुःख में जो विचलित होता
सुख में भी सुख वह पाता नही

धैर्य सबसे बड़ा आभूषण
इसको धारण करके रखिए

निर्लेप भाव से सुख-दुःख का
जब आए स्वागत कीजिए

दुःख आएगा ,चला जाएगा
सुख की भी यही नीति है

इस जगत में वही संत है
जो सुख-दुःख में समान जीते है।

परमात्मा को बस याद कीजिए

जितनी भक्ति बढ़ी इस समय
उतना ही पाप भी बढ़ रहा है

विक्रम अपने छोड़े बिना ही
इंसान पूजा-पाठ कर रहा है

घूस के पैसों से दान कर रहा है
गलत काम से नही डर रहा है

मंदिर-मस्जिद जाने से पहले
तन-मन को पवित्र कर लीजिए

देवी-देवताओं के गुणों को अपना
अपने धर्मालयो में प्रवेश कीजिए

सुख-शांति -सम्रद्धि के लिए
परमात्मा को बस याद कीजिए।

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस

हो गया है तकनीकी में
नए युग का आगाज़

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस है
अदभुत तकनीक आज

कृत्रिम मानव निर्माण से
रच गया नया इतिहास

शक्ल-सूरत,बुद्धि में भी
असली लगता कृत्रिम आज

ईश्वरीय सेवा को भा गई
कृत्रिम ब्रह्माकुमारी बहन

शिवांगी नामकरण किया
रहती सुख-शांति के धाम।

गृहस्थ जीवन

गृहस्थ जीवन मे बनिए
सन्त स्वभाव समान

आचरण ऐसा कीजिए
कहलाये आदर्श इंसान

अवगुणों का परित्याग कर
अपनाये सद्गुणी ज्ञान

पवित्रता तन मन मे बसे
बन जाये साधु समान

ईर्ष्या,द्वेष,घृणा का न हो
जीवन मे कोई स्थान

परमात्मा का स्मरण कर
करते रहे राजयोग ध्यान।

विश्वास

विश्वास जगत मे पाना है
सबको अपना बनाना है

हर चेहरे पर हो खुशी
ऐसा अपनत्व निभाना है

खाने लगे आपकी कसम
ऐसा आचरण अपनाना है

गैर शब्द की जगह न हो
प्यार ऐसा बरसाना है

आत्म स्वरूप मे रहना है
परमात्मा को साथी बनाना है

खुद हंसना ओर हंसाना है
जीवन को सार्थक बनाना है।

अंतरात्मा

अंतरात्मा जो कहे
वही कीजिए काम

सबसे बड़ा जज वही
वही बसे है राम

अंतरात्मा में झांककर
पहचान लीजिए स्वयं को

सबसे बड़ा दर्पण वही
वही बसे है चारो धाम

माता पिता लौकिक जिनके
खुश रहते सुबह शाम

अलौकिक पिता परमात्मा
बनाते उनको महान।

धर्म

धर्म कल्याण का मार्ग है
इसे व्यापार मत बनाओ

आस्था बहुत भोली है
इसके भोलेपन को न भुनाव

एक बार विश्वास टूटा
तो फिर जुड़ता नही है

ईश्वर के नाम पर किसी को
मूर्ख बनाकर मत भटकाओ

कर्म करोगे अगर अच्छा
भाग्य अच्छा बन जायेगा

अगर किया है पाप कोई
दण्ड से कभी न बच पायेगा।

सृष्टि का यह नियम सत्य है
जैसा करोगे वैसा भरोगे सत्य है।

मेरी माँ

याद आती है माँ
मन की किताब में
स्वर्ण पन्ना जोड़ दिया
यादो के इतिहास में
मन से कोमल
उसूलो से कठोर
राष्ट्रभक्त माँ अनमोल
शहीद जगदीश की
बहन थी मां
कर्मयोगी मदन लाल की
अर्धांगनि थी मां
मेरी जीवनदायनी
प्रकाशवती थी मां
सद्चरित्रता का
पाठ पढ़ाया
सात्विकता में
रहना सिखाया
माँ नही, ईश्वर स्वरूपा थी
नारी शक्ति की मिसाल थी
न जाने कहां चली गई मां
हमेशा के लिए खो गई मां
मगर यादो में फिर भी
जिन्दा है मेरी माँ
माँ नही, परमात्मा है माँ

shreegopalnarsan

श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट
पोस्ट बॉक्स 81,रुड़की,उत्तराखण्ड

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