मेघवाल समाज के गोत्र
मेघवाल समाज के गोत्र

मेघवाल समाज

मेघवाल क़ौम बड़ी मेह़़नतकश अध्यात्मिक दयालू प्रवृति की सादगी पसंद हुनरमंद रही है पुरूष ऊनी सूती की बुनाई का काम एंव यदाकदा चमड़े की जूतियां तक बनाने का कार्य कर अपने परिजन की जीविका उपार्जन करते है तथा महिलाऐं कपड़े पर अपनी हस्तकला में दक्ष कशीदाकारी (भरत) का बेजोड़ काम करती है ।

यह हुनर सिंध में विशेष कर ढाट में होता है अपनी लड़कियों को दहेज में कांचली कांचला चद्दर ओढनी घाघरा कुर्ती अंगिया झब्बा राली बुजकी बुजका थेली कोथली गोछणा तकिया पंखा कलाकारी से कशीदा कांच का लिबास दिया जाता है तथा सगाई की रस्म अदायगी के समय मंगेतर अपने होने वाले हमसफ़र के लिये अपने हाथों से बनाया गया ।

मलीर जिस पर चुगिया घुंघरू मणिया सितारें टू़ंअर आदि जड़ित बहुत ही नफ़ीस सुंदर कलात्मिक तोह़फ़े के तौर भेजती है जिस को ओढाणी भी कहा जाता है बच्चियों को बच्चपन में ही सुई धागे का हुनर सिखाया जाता है उसके साथ पुरूष खेती के साथ बहुउदेश्य हुनर का काम में निपुण होते है ।

भरत में कच्चा पक्का सूफ हुरमजी खारक हाकम कंबीर आदि होते थे कपड़े पर सूती रेशम कशमीरो मुक्का सुन्हरी रपेहली से किया जाता था यह कला सनऋ 1971के हिंद पाक लड़ाई में पलायन कर आये हज़ारों परिवारों ने अपना जल्वा कर्तब दिखाया लेकिन सरकारों की बेरुखी उदासीनता के कारण प्रमुख स्थान प्राप्त नहीं हो सका ।

प्राईवेट क्षेत्र में पूंजीपति सेठ शाहूकार विदेशों में निर्यात कर धन अर्जित किया कलाकारों को उचित सम्मान नहीं मिला ऊन की कताई का काम भी किया बुनाई में पुरूषों ने अपना दमखम दिखाया पट्टू बरड़ी लोई डोअड़ लोंकार आदि बुनाई काम किया रोहीड़े की लकड़ी पर नकाशी का काम मकान निर्माण में राज़ा में कोशलता का प्रदर्शन किया!

राजनीति क्षेत्र में भारत में पहला क़ानून मंत्री डा, भीमराव अम्बेडकर बने जिसने संविधान लोकतंत्र को मज़बूत करने के लिये कमज़ोर तब्क़े को आरक्षण दिया गया तब पाकिस्तान का पेहला क़ानून मंत्री श्री जोगेंद्रनाथ मंडल को बनाया गया ।

उस समय मेघवाल समाज के प्रमुख लिखे पढ़ेलिखे लोगों ने मांग उठाई ओर मंडल स़ाहब से जाकर मिले ओर कहा जिस त़रह़ भारत में संविधान में शेड्यूल्ड कास्ट को आरक्षण मिला है ।

उस तर्ज़ पर हमें दिया जिये के जवाब में मंडल ने कहा पाकिस्तान इस्लामिक झमूरी मुल्क है सम्भव नहीं है आप एकता कर अपने वोट अपने समाज को दो इससे प्रेरत होकर मेघवाल समाज ने घोषणा कर ढाट के कंठा पारकर खाओड़ छाछराटी मोहराणो सामरोटी वट वंगो ने यकमुश्त श्री गुलजीमल मेघवाल डींगाण जेमसाबाद को सामान्य सीट पर सिंध स़ूबाई असेम्बली में विधायक निर्वाचित कर भेज दिया उसके बाद राजनीति में सक्रिय रहे।

अध्यात्मिक जगत में भजन कीर्तन वाणी जुम्मा जाग्रण सतसंग भगती में लीन रहते है इसलिये स्थानिय लोग साधू संत भगत भी कहते है यह लोग तंदूरा(बीणा)बजाते है उसके साथ मजीरा ढोलक खड़ताल कांसिया घड़ी का साज़ रखते है औरतें बड़ी शर्मीली बड़ा लम्बा घंघट राजपूती वेष भूषा में रहती है ओर मर्द सिर पर पगड़ी पूठिया क़मीस़ तिरेटा पहनते है इन पर बहिष्कृत राजपूत होने से स्पष्ट प्रभाव झलकता है!

ढाट पर राणा ख़ानदान का दबदबा ओर शासन रहा इसलिये इतना सामंतवादी सोच का ज़ुल्म सितम नहीं रहा सब लोग भाईचारा क़ायम कर अमन चैन से रहते आये सब लोग अपने जरगे के तहत रहने से कोई बड़ी घटना नहीं होती थी जातियां सुरक्षित थी ।

पढाई के लिये प्रति वर्ग को आज़ादी थी ह़ुकूमत में भी ज़ोरी तालीम (अनिवार्य शिक्षा) का क़ानून लागू था अगर कोई अपने बच्चो को नहींं पढाता उसको जेल हो जाती थी हर गांव में प्राईमरी स्कूल थे !

मेघवाल छात्रों का नाम मल दास नंद चंद राज राय आदि लिखा जाता था उनके अभिभावकों के नाम भी सम्मान जनक लिखा जाता था शिक्षा क्षेत्र से लेकर हर विभाग में कर्मचारी अधिकारी तैनात थे अमन चैन शांति भाईचारा अच्छा था !

ढाट के ढाटी मेघवाल

ढाट के ढाटी मेघवाल क़द काठी में क़द्दावर रंग के गोरे सुंदर छवि नाक नुकीला आंखें शराबी लाल लाली दाढ़ी मूंछ रोबदार रुतब्बा चाल चेहरा चरित्र पवित्र चित्र चमकीला निडर ढाट की संस्कृति को अपने आप में समेटे स्वाभिमान प्रकृति के अपनी एक अलग पेहचान के धन्नी होते है।

विशेष तौ़र से ढाट में पाई जाने वाली गौत्र कोडेचा कोतवाल गंढेर मेंहतर (मुखी) कूंडी के धणी जिनका समाज पर फ़र्मान चलता था चूंकि जैसलमेर के महाराजा ने उम्रकोट राणा को दहेज में बख़्शीस में दिया था।

वेसे ढाट राणा ख़ानदान की सल्तनत थी गंढेर दो नखों में बंटे थे एक बांभणिया दूसरे देवपाल उसके अलावा ढाट में अनेक गौत्र थी बैचिया पड़िहार जोगू जयपाल पन्नू कागिया कूंअट पड़गड़ू खोखर वावरी मेहरड़ा मकवाणा खींटलिया पुनड़ पारगी पातलिया पातालिया बाणिया खूहला दरड़ा छुरियट मंगलिया मुछड़िया बालाच सूदरा सेजू सींहटा मसाणिया जोईया बढ़िया ओढाणा सोलंकी चौहाणिया चौदसिया पंवार रठोड़िया आदि बहुसंख्यक थे !

औरतों के गहने पैरों में चांदी की कड़ियां नेवर झांझर पायल चैन साटिया पोलरियां अंगूठिया बिछिया अगुठियां हाथों में कतरिया कड़ोला हथसंकलो बाजूबंद कलाईयों में खंच चूड़ा गले में तोक़ वाड़लो हंसली सोन के नाक में नथ बूली फुलड़ी कानों में झूंबर डुरगला कुड़कां पनड़ियां सिर पर बोरलो अली बोरियो दाहगी डुड़ी गजरा कमर पर कंडोलो ।

अमीरी ग़रीबी के अनुसार असली न नक़ली श्रंगार के साधन होते थे ! मर्दों के हाथ में कड़ा कानों में मुर्कियां गोखरू ओगनिया आदि होते थे समय के बदलने से सब कुछ बदल गया ।

बर स़ग़ीर के ढाटी मेघवाल

1947 से पूर्व सिंध के ढाटी मेघवाल तालीम याफ़्ता थे । उस समय सरकारी मुलाजिम थे श्री रायचंद सुरतानी (बढ़िया) चेलहार तारीख रेगिस्तान भाग सं 1,2 के लेखक वरिष्ट हेड मास्टर तुगूसर से सांईं अजीमदास दादिये जो तड़ श्री सतरामदास कागिया मारूमल कवि श्री सोनजीमल वाघजीमल चेलहार 1954 में मेरे प्रथम अध्यापक श्री बलजीमल पातालिया रड़ियारो मेरे सगे मामा जी श्री भारूमल मामाजी श्री खेतोमल संजा भोरीलो श्री हीरालाल पड़िहार भोरीलो श्री घमूमल ग गंढेर श्री साहूमल कांकियो श्री मोटूमल धनाणी कागा मिठड़ियो चारण श्री उकरड़ोमल कागा श्री लूंगमल ‘कागा श्री कलजीमल माधाणी कागा (श्री मोटूमल के शागिर्द मरहूम पूर्व विधायक चौहटन गांव बुरान का तला रह चुके है) श्री भमरलाल एडवोकेट श्री प्रभूलाल चाम्पाणी जोगू चाड़ियार श्री कर्मचंद जोगू (जोगी) बिजालो श्री मोटूमल की पुत्रवधू श्रीमति कमला कागा सिंध स़ूबे की डायरेक्टर आफ़ एज्युकेशन रह चुकी है मिठ्ठी से श्री साजनदास खोखर डा, राना सी राठोर प्रमुख थे ।

सन् 1971 की हिंद पाक की लड़ाई के दौरान आये अध्यापक श्री मारूमल श्री साजनदास गुलजीमल निर्भोमल कागा मकोमल खोखर भमरलाल गंढेर जिम्माराम पड़ियार सच्चानंद जोगू गोविंद जोगू साजनदास पंवार (पुलिस) श्री भूरोमल गंढेर उकरड़ोमल लूंगमल केसरचंद कागा नारूमल मेवोमल डामरोमल कलजीमल ज्वारोमल चोखोमल शंकरलाल गुरू रासोमल तोकल (तरूण राय कागा) पन्नूमल गंढेर मलूकचंद गंढेर मिठ्ठछमल राघानी श्री लछमणदास सूदरा कानजीमल जोगू श्री मोरूमल साहूमल मोतीराम कोडेचा आदि में अधिकांश अध्यापक कम्पनऊंखर के पद पर नोकरी लग चुके कुछ ने मना कर दिया !

जबकि यहां का समाज अति शिक्षा से वंचित था यहां मेघवालों को भांभी नाम से सम्बोधित छोटे नाम से कर पुकारा जाता था यहां तक नहीं राजस्व अभिलेख में सम्मान जनक नाम नहींं लिखा जाता था जातिवाद छूआछूत चर्म सीमा पर थी ।

होटलों चाय थड़ी पर रखी चीण पट्टियों पर बेठना तक वर्जित था नाई सिर के बाल काटना दाढ़ी करना तक प्रतिबंध था गांवों में नंगे सिर आवागमन नहीं हो सकता था अच्छे कपड़े पहनना महिलाओं को गहना पहनने की इजाज़त नहीं थी ।

पाक विस्थापित ढाटी मेघवाल समाज ने महिम चलाई ओर श्री महेंद्रोमल जयपाल ने एक निजी चाय की होटल श्री लछमणदास खत्री के दुकान के पास एक छपरे में खोली गई जो गांवों से आने जाने वालों को वरदान सिद्ध हुई ।

समाज कल्याण छात्रावास किराये के मकान में खुला था जिसमें नाम मात्र छात्र थे पाक विस्थापित ढाटी मेघवाल बच्चों को भर्ती कराकर सीटें बढाई गई श्री भैरोसिंह शेखावत मुख्य मंत्री कार्यकाल में काम के बदले अनाज योजना के तहत हमने मांग कर वर्तमान स्धल पर 6 कमरों का निर्माण कराया।

उस समय श्री केसरसिंह सोढ़ा वावडी़ कला अधीक्षक थे लेकिन दूरी की वजह से छात्रावास शुरू नहीं हो सका ओर उन कमरों में ओर परिसर में गऊशाला संचालन होने लगा स्थानिय प्रशासन की बेरुखी ओर असहयोग के कारण सफलता नहीं मिली ।

मजबूर होकर उस समय श्री मूलचंद आर्य एडीएम बनकर आये से गुहार लगाई जिसने मौक़ा मुआईना कर गौशाला से क़ब्ज़ा हटाकर समाज कल्याण छात्रावास को सुपर्द किया बच्चों की संख्या को देखकर सरकार से मांग की ।

फलस्वरुप श्री तपेश पंवार पीडी डीआरडीए ने अनुसचित जाति सहकारी विकास निगम जयपुर से बजट स्वीकार कराया ओर ठीकेदार श्री मेवाराम जैन सरपंच बालेबा (पूर्व विधायक) ने निर्माण कराया जो अभी तक संचालित है!मेरी संघर्ष गाथा में हमारे बुज़ुर्ग साथी नेता श्री पंजूमल गंढेर का आशीर्वाद रहा!

मेघवाल समाज में शिक्षा

मेघवाल समाज का शिक्षा के प्रति रुझान क़ाबिल ए तारीफ़ है प्रति परिवार में सरकारी मुलाजिम सिलाई कढाई मिल कारख़ानों में मज़दूरी का काम बड़ी लग्न से अंजाम देते है समाज में ईमानदारी वफ़ादारी का जज़्बा कूट कूट कर भरा है।

बड़े दीवान सेठ शाहूकार अपने यहां दरबान चौकीदार रसोईया भी इस समाज को अपने घरों में रखने को प्राथमिकता देते है कशीदाकारी की निजी दुकान भी बड़े शहरों में है जब श्री देवजी भाई पटेल सांसद जालोर राजस्थान सरकारी प्रतिनिधि मंडल के साथ इस्लामाबाद पाक गये थे ।

तब मेरे चचेरे भाई ने बड़ी गर्मजोशी से उनका इस्तकबाल किया था राजनीति में सक्रिय होने के साथ क़ौमी असेम्बली स़ूबाई असेम्बली तथा सीनेटर(राज्य सभा) सदस्य प्रधान (नाज़म) भी है जो एक गर्व की बात हैं ।

विभाजन के बाद भी यूनियन काउंसिल में श्री बस्तीराम जोगू भाडासिंधा श्री घमूमल कागा छाछरो कागिया श्री रायधनमल कागा छाछरो कागिया श्री सुखोमल गंढेर सोखरू श्री पंजूमल गंढेर दूंबाला ज़िला थरपारकर सिंध से सामान्य सीटों से बीडी मेम्बर निर्वाचित हुए थे ओर लगातार हो रहे है जनप्रतिनिधि अधवा सरकारी नोकरियों में आरक्षण नहीं हैं।

अपने बलबूते पर क़ाबलियत से जीत कर आते है अभी डा, खटूमल जीवन श्री वासुदेव बालाणी श्रीमति नीलम मेघवाल कुनरी वर्तमान में है मेघवाल समाज के क़दीमी गांव आगिया छाछरो सूजे जो तड़ सूरे जो तड़ भीमासर आदि है जहां दबदबा है विदेशों में अमेरिका आस्ट्रेलिया जापान चाईना तुर्की दुबेई आदि में सरकारी मुलाजिम की ।

अपनी सेवायें दे रहे है इतना ही नहीं पाक आर्मी में भी ऊंचे ओह़दों पर तैनात है स़ूबाई आलमी कमीशन पास कर प्रशासनिक सेवाऐं भी दे रहे है काफ़ी लोग लेखक शायर अदीब पत्रकार भी है!श्री ज्ञानचंद मेघवाल पीपुलज़ पार्टी का सदर(अध्यक्ष) ज़िला थरपारकर का है!

मेघवाल समाज में सगाई शादी विवाह समारोह रस्मो रिवाज में कोई विशेष फ़र्क़ नहीं समानता है देहज प्रथा बाल विवाह की कुरीतियों से कोसों दूर सामान्य रूप से सम्पन्न हो जाती है ।

चका चौंध से परे लाज मर्यादा के साथ दुल्हन घर लाते है बारात में फ़ुज़ल ख़र्च नहीं होता चौंरी के चार फेरे धर्म अर्थ काम मोक्ष के सिधांतों पर विवाह मंडप से परिपूर्ण होते है बिंदोली तोरण मारा जाना में कोई रदोबदल नहीं बाराती धराती परस्पर समझदारी की परम्परा निभाते है देवी देवाताओं के स्थानों पर धोक दी जाती है!

गम्मी के अवसर पर बारहीं की रस्म अदा होती है क्रिया क्रम कर्म कांड शोक श्रद्धांजलि पर आये रिश्तेदारों खो साद भोजन कराया जाता है ओसर मोसर मृत्यू भोज की कुरीति नहीं है शव ज़मीन में दफ़न किये जाते है चिता नहीं जलाई जाती पगड़ी रस्म बारहवीं को हो जाता है!

मेघवाल समाज के गोत्र

मेघ ऋषि की संतान रिखिया (ऋषि) मेघ मेघवाल मेघवंशी मेघवार सिंध हिंंद में अधिक संख्या में पाये जाते है। सिंध सभ्यता के प्रमुख स्थान मोहन जो दड़ो की खुदाई में मिले प्राचीन अवशेष में विशेषज्ञों ने सिद्ध किया कि यह लोग शासक रहे है।

इनकी मूल चार खाप रही है,1, रांगी 2, डांगी 3, मांतंगी 4, आद्रा जो मूल है शेष 270 गोत्र बहिष्कृत क्षत्रिय वर्ण एंव जाट समाज से है जिसको मारू ओर जाटा श्रेणी में बांटा गया है जिनका आपमें रोटी का व्यवहार है।

लेकिन बेटी का नहीं राजपूत समाज ने जिनको अलग किया वो लोग अपनी नख अभी तक परमार सोलंकी प्रतिहार चौ से स्वीकार करते है ओर पुरानी भाट बहियों में उल्लेखित है ओर जाट समाज के मेघवाल उनकी जाति से वर्णित है ।

इतिहास साक्षी है कि राजा महाराजा ठिकाणा जागीरदार रावल राणा की बेटियों को दहेज में भी दिया जाता रहा है मां देवल जब माड़वा से शादी के बाद ससुराल खारोड़ा बेल गाड़ी से बारात जेसलमेर पहुंची तब किंवदंती के अनुसार तत्कालीन जैसलमेर महाराजा गडसी की पीठ में अफूटी गांठ (केन्सर) थी प्रतिदिन आदमी का कलेजा बांधा जाता था ।

तब दर्द में राहत मिलती थी जब देवल मां उस समय नयी नवेली दुलहन थी अपनी अलौकिक शक्ति सी पीड़ा मुक्त किया तब राजा गड़सी ने प्रसन्न होकर अठारह किसबी दहेज में बख़्सीस किये थे जो सर्व विदित है ।

यह गाथा सात सौ साल पुरानी है वे लोग आज तक अपनी आराध्य कुल देवी मान पूजा अर्चना करते है ओर चमत्कार की चर्चाओं का गुण गान करते है !

एसी कहावत है कि मां देवल का धर्म भाई चौहान था ने ज़िद्द पकड़ी कि मैं साथ खारोड़ा चलूंगा तब देवल ने हां कर दी वो भी बेल गाड़ी में बेठ गया जब घर वालों को पता चला तब पीछा किया लेकिन नहीं मिला ।

कहते है कि गले में अपंनी लोई का काला धागा बांध काग बना दिया गया को कागा कहने लगे वो देवल को अधिक प्यारा ओर आज्ञाकारी था ईर्ष्या से वशीभूत परिजनों ने मृत पशु को हाध लगाने के जुर्म में चौहान राजपूत से मेघवाल बनाया गया ओर छोटे नाम से कागिया कहने लगे स्मर्ण रहे कि चारण देथा कुल में पहला ओर अंतिम जागीर खारोड़ा है एसा ओर कोई नहीं!

उसके बाद देवल मां के अध्यात्मक फ़रमान से कोई बहिष्कृत नहीं हुआ देथा चारण ओर कागिया के गले में आज तक काला धागा बांधा जाना परम्परा है! और भैंस पालना दूध पीना घुंघरू बांधना कान छेदना आदि वर्जित है कन्याओं को कान छेदने को अनुमति है कागिया को देवेल मां का वरदान प्राप्त है ।

सच्चे मन से कही बात सत्य होती है इस लिये देवी पुत्र भी कहते है मैने राजस्थान राज पत्र में कागिया छोटा नाम को ‘कागा’ इंद्राज करा दिया जब कि कुछ लोगों ने देखा देखी अर्थ का अनर्थ कर कबाड़ा कर दिया! तथ्यों को तोड़ मरोड़ बिना ताल मेल मनगढित तर्क वितर्क से दूर हास्यस्द संशोधन कर दिया!

कवि साहित्यकार: डा. तरूण राय कागा

पूर्व विधायक

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