Shri Ram Chalisa

श्रीराम चालीसा | Shri Ram Chalisa

राम चालीसा

दो०
राम ब्रह्म जगदीश हरि, भक्त हृदय निष्काम।
गुरु पद नख विग्रह निरखि, वन्दउँ सीताराम।
चतुरानन शिव हिय बसे, प्रणव तत्व साकार।
राम नाम सुमिरन किये, मिटे सकल भव भार।
चौ०
जय श्री राम जगत प्रतिप्राला। संत हृदय प्रभु दीन दयाला।
दशरथ गेह लिए अवतारा। हरन हेतु अवनी कै भारा।
अनघ अनादि तत्व विज्ञाना। अप्रमेय गुणबीत निधाना।
नील सरोरुह श्याम शरीरा।अरुण अधर अतुलित बलवीरा।
भक्त जनन मन मोद बढ़ावैं। सुर नर मुनि नित ध्यान लगावैं।
कौशल्या हरषित महतारी। बार बार सुत रूप निहारी।
गुरु वशिष्ठ आश्रम पहि आये। विद्या वारिधि विद्या पाये।
विश्वामित्र मांगि लै गयऊ। अभय भये मख पूरण भयऊ।
मिथिला भयउ स्वयंवर भारी। प्रकृति सुकोमल जनक कुमारी।
आदि शक्ति जगदम्ब स्वरूपा। रूप शील गुण दिव्य अनूपा।
शंभु पिनाक सकै जो टारी। वहै वरै मिथिलेश कुमारी।
देश देश के बहु नृप आये। टारि सके को तिल न उठाए।
जनक हृदय भइ चिन्ता भारी। का विवाह बिन रहे कुमारी।
गुर आज्ञा पायउँ रघुराई।छन महि कर ते धनुष उठाई।
छुअतहि टूटि गयउ धनु भारी। विकट नाद त्रैलोक मझारी।
पहिनाई तब सिय वरमाला। परिणय सूत्र बँधे प्रतिपाला।
भा विवाह निज भवन पधारे। कौशल्या अवधेश दुलारे।
राजा राम बनें अति नीका। चाहिय होय राम के टीका।
किन्तु भया वनवास प्रभू का।विचलन चित में नाहि विभू का।
राम सिया वन पंथ सिधारी। संग लखन शेषा अवतारी।

ऋषि पतिनी पाहन पन त्यागा। ईश राम चरणन रज लागा।
गंग समीप जबहि प्रभु आये। पद पखारि केवट सुख पाये।
जा चरनन ऋषि मुनि नित ध्यावैं। शेष शारदा गाइ न पावैं।
सो गति राम केवटहिं दीन्हा। गुह निषाद सब कर हित कीन्हा।
चित्रकूट आये सुखराशी। मन्दाकिनी पुण्य परकाशी।
अनुसूया अत्रिहि पहि आये। संत शिरोमणि अति सुख पाये।
ऋषि सुतीक्षणहि दर्शन देकर।। शबरी आश्रम आये रघुवर।
नवधा भक्ति दिये निष्कामा। आगे बढ़े भक्त सुखधामा।
गोदावरी नीर अति पावन। पंचवटी आये सत् भावन।
रावण हरी उहाँ बैदेही। खोजि रहे नर रूप सनेही।
सती परीक्षा लीन्ही भारी। कहा मातु तुम बिन त्रिपुरारी।
लै निज अंक गीध दुलरावा। आगे हनुमत प्रिय मिलि जावा।
सुग्रीवहि को सबल बनाए। बालि मारि प्रभु लंक सिधाये।
इष्ट देव पूजे बहु भाँती। रामेश्वर सुख बरनि न जाती।
लंका भयउ युद्ध विकराला। राम ईश कालहुँ कर काला।
निशचर मारि सिया लै आये। पुरजन परिजन के मन भाये।
सुर नर मुनी भये सुखवन्ता। राजा राम भये का चिन्ता।।
राम नाम जीवहिं आधारा। सुमिरन चिन्तन मनन विचारा।
धन सुत बल सब कछु मिलि जावै। जाके राम सीय पद भावै।
कोटि कलेश मिटै छन माहीं। राम ईश गुण गावत जाहीं ।
रचे शेष रामहि चालीसा। पढ़ें मात्र सुख देत गिरीशा।
दो०
राम ओम तत् सत् अनघ, रामहिं त्रिगुणातीत।
मिले मोक्ष श्रीराम से,शेष न दूसर रीति।।

 

लेखक: शेषमणि शर्मा “शेष’”
प्रा०वि०-नक्कूपुर, वि०खं०-छानबे, जनपद
मीरजापुर ( उत्तर प्रदेश )

यह भी पढ़ें :-

दीपोत्सव | Deepotsav

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *