Shrrngaar
Shrrngaar

श्रृंगार

( Shrrngaar ) 

 

मधुरम नयन काजल से प्रिय,
अधर पंखुड़ी गुलाब की जैसे ,
लट गुघराली उड़े जब मुख पर
मधुरम मुस्कान को संग लिए
स्त्री अपने लाज भाव से ही
पूर्ण करे अपना श्रृंगार सारा ।।

रूप मोतियों के जैसा प्यारा
कंचन बरण दमके यह कया
हृदय में प्रेम के स्वर सजाकर
गीत सजाए जो वो प्रियवर के
मधुर गुंजन सा होता अनुभव
प्रीत से ही श्रृंगार हो जाए सारा ।।

भाव विभोर कर देती हैं छवि
स्त्री प्रेम से मांग सजाएं अपनी
बिंदिया अमूल्य कहलाई उसकी
कंठ में पहनी प्रीत की माला
पग में पहिनकर नूपुर , पायल
श्रृंगार पूर्ण करती हैं स्त्री सारा ।।

आशी प्रतिभा दुबे (स्वतंत्र लेखिका)
ग्वालियर – मध्य प्रदेश

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