Sikha ye Gulab se
Sikha ye Gulab se

सीखा ये गुलाब से

( Sikha ye gulab se ) 

 

गुलाब से सीखा काटो में भी मुस्कुराकर
अपना सुंदर कोमल अस्तित्व सजोना ,
मसला जाए , टूट जाए या सुख जाए धूप से
हर हाल में अपनी सुगंध से परिपूर्ण रहना
सबको यही महकता हुआ संदेश देना ।।

मुस्कुराते हुए फूलों से बस इतना है कहना
तुम्हें देखकर लगा अब और नहीं सहना ,
निकाल फेका है डर इन नुकीले कांटो का मैंने
अब हर हाल में है खुश रहना और खुश रहना ,
वेस्किमती है हर लम्हा इसे अब यूंही नहीं खोना।।

आए हैं जीवन में तो मुस्कुराहट जरूरी हैं,
और उसकी कीमत पहचानने के लिए ही
कुछ गम की आहट भी होना जरूरी है
कि दुनिया सुख दुख धूप छांव सी लगने लगी
मुझे तलाश हैं खुद की अब बस वही जरूरी हैं।।

 

आशी प्रतिभा दुबे (स्वतंत्र लेखिका)
ग्वालियर – मध्य प्रदेश

यह भी पढ़ें :-

श्री चरण | Shree Charan

 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here