
वो देखो चाँद इठलाता हुआ
( Wo dekho chand ithalata hua )
वो देखो चाँद इठलाता हुआ,
वो देखो धरा कसमसाती हुई
प्रेम को दिखाकर भी छुपाती हुई
साँस में आस को मिलाती हुई
सुगंध प्रेम की कोमल गुलाब सी
स्नेह दीप प्रज्वलित बहाती हुई
नयनों से हर्षित मुस्कानों को
अधरों पर रोके झुठलाती हुई
उन्स की पीड़ा तन-मन में लिए
मधुमास प्रतीक्षा हिय मचलाती हुई
चिरकाल से खड़ी प्रतीक्षा में
विरह गीत अश्रु संग गुनगुनाती हुई
कभी चंद्र कलाओं से विचलित हो
स्वयं पर प्रश्न निर्झर बरसाती हुई
वंदना जैन
( मुंबई )
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