Srishti ki Maya

सृष्टि की माया

( Srishti ki maya ) 

 

इस सृष्टि की माया में
जैसा इन्द्रियों को सुख चाहिए
वैसा ही मिलता है
मगर सुखों के अन्त में दुःख
यह वि‌रोधाभास हर बार
हर जगह मिलता है
क्षणिक आनन्द के लिए परउत्पीडन
क्यों हिंसा वन्य प्राणियों में
प्रकृति का नियम है?
पीड़ा रहित रक्तपात रहित परिवर्तन
क्यों यह असंभव है?
क्यों सत्य को आंच से
प्यार को इम्तहानों से
सुधार को विरोध से
गुज़रना होता है?
क्यों पाप का रास्ता जितना सरल है
सत्य का पथ कंटकपूर्ण?
क्यों विकारों से मन मुक्त नहीं हो पाता
सद्विचार सद्कर्म इतने दुर्लभ क्यों?
प्रश्न शाश्वत रहेंगे मगर उत्तर आंशिक ही
प्रकृति के ये न्याय नीति विषय
अनसुलझे रहस्य
तथ्य लेकिन अगम्य
यथार्थ से परे यथार्थ
कल आज और कल भी

राकेश मधुसूदन
( कुरूक्षेत्र)

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