स्त्री योद्धा होती है | Stree Yoddha Hoti hai
स्त्री योद्धा होती है
( Stree Yoddha Hoti hai )
खून पानी ही नहीं,
अपनी रंगत भी देती है,
माँ गर्भ धारण कर,
खुशी का संगत देती है।
नौ महीने का सफर आसान नहीं,
हर बच्चे का ओर(गतिविधि) सामान नहीं।
एक में करती बहुत उल्टी,
तो दूसरे में खाती मिट्टी।
चेहरे पर झाई(दाग), पक गये बाल,
आँख कमजोर, चिचुक गई खाल।
अथाह दर्द से चीखें बुलंद,
नस-नस खड़ा, वक्त करता तंग।
सात तह पेट कट गया,
बच्चा जब ब्रीज शिशु रहा ……!
पर सारा दुख दर्द भूल जाती,
बच्चे को जब गले लगाती।
स्त्री योद्धा होती है,
सह्दयी प्रेम-मूरत होती है।
शब्द से कभी आँकलन नहीं करना,
ममता की अद्भुत सूरत होती है ।
प्रतिभा पाण्डेय “प्रति”
चेन्नई
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