श्री हरि के अनन्त स्वरुप

( Shree hari ke anant swaroop ) 

 

भाद्रपद शुक्ला-पक्ष की चतुर्दशी को करतें है व्रत,
जिसके न आदि का पता न अंत का वो है अनन्त।
सृष्टि की रचना किऐ भगवान हरि विष्णु इस दिन,
करतें हम हर वर्ष इस दिन व्रत और पाते है मन्नत।।

14 लोकों का निर्माण किया था ईश्वर ने इसी दिन,
इनकी रक्षा हेतु आपने अनन्त रुप किए थे धारण।
वह तल, अतल, वितल, सुतल, मह,भूः, सलातल,
भवः, स्वः, जन, तप, सत्य, पाताल और रसातल।।

महत्वपूर्ण है इसदिन 14 गाॅंठों वाला पवित्र धागा,
होती श्री हरि के अनंत स्वरुपों की इस दिन पूजा।
सर्व प्रथम चतुर्दशी व्रत पांडवों के द्वारा रखा गया,
जिससे उनको अनेंको शुभ फलों की प्राप्ति हुआ।।

ये पवित्र सूती धागा 14 लोकों का प्रतीक है होता,
कुमकुम, हल्दी व केसर मे रंगकर मंत्र पढ़ा जाता।
पूजन पश्चात प्रसाद रुप दाहिनी बांह धारण होता,
यही अनंत सूत्र बुरी बला व शत्रुओं से रक्षा करता।।

दीन-दुःखी व बड़े-बुजुर्गों सबका करना है सम्मान,
संत-महात्माओं के हृदय में बसते है यही भगवान।
रखतें है भगवन विष्णु हर वक्त साधकों का ध्यान,
अनन्त चौदस को अनन्ता धारण करें यह परिधान।।

 

रचनाकार : गणपत लाल उदय
अजमेर ( राजस्थान )

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