जलना पड़ा | Jalna Pada
जलना पड़ा
( Jalna pada )
मुझे पूरी उम्र देखो जलना पड़ा है,
कलेज़े पे पत्थर भी रखना पड़ा है।
खता तो हमारी कुछ भी नहीं थी,
फिर भी अंगारे पे चलना पड़ा है।
दिल भी जला औ जिस्म भी जला है,
आशिकी में सब कुछ सहना पड़ा है।
अजब हूँ चराग़ मैं जलता हूँ निशिदिन,
बेखौफ़ हवाओं से लड़ना पड़ा है।
कैसे कहूँ इसको देखो मैं जीना,
ख्यालों के चौखट पे लाना पड़ा है।
कलम तो गुलाम नहीं उसकी है मेरी,
घुटन अपने दिल की सुनाना पड़ा है।
समंदर के अंदर कितना हूँ प्यासा,
आँखों का पानी पीना पड़ा है।
जमाना है बहरा सुनता नहीं मेरी,
ख्वाबों के बोझ तले सोना पड़ा है।
करती है क़त्ल मेरा अपनी अदा से,
जख्मों को धागे से सीना पड़ा है।
आएगी मौत एक दिन दोनों को लेने,
कितना हसीं पल गंवाना पड़ा है।
रामकेश एम.यादव (रायल्टी प्राप्त कवि व लेखक),
मुंबई