सुन रही हो माँ | Sunn Rahi ho Maa
सुन रही हो माँ
( Sunn Rahi ho Maa )
देखो माँ ,
हर वर्ष मातृ दिवस पर
तुम्हारा गुणगान किया जाता है,
उस एक दिन में,
भर दिए जाते है पन्ने,
तुम्हारी महानता के,
माँ महान है, माँ बगैर हम कुछ नही,
कही झूठ कही सच,
कही भ्रम का लिबास पहनाकर,
तुम्हारी महिमा बतायी जाती है,
ऐसा लगता है,
काँच के शोकेस को चमकाकर,
कोई मूर्ति रख दी हो,
देवी कहकर तुमको तुमको,
प्यार के रैपर से कवर किया जाता है,
लेकिन कोई नही लिखता,
कोई नही गाता,
महानता के पीछे छिपे,
पूरे घर मे तुम्हारी भागदौड़ को,
दिन भर खटती रहती,
तुम्हारी जिम्मेदारी को,
आधी रात तक बर्तन घिसती,
तुम्हारी उँगलियों को,
तुम्हारे टूटे सपनो को,
छिप छिप कर बहाए आँसुओं पर,
होठों की नकली मुस्कान को,
पल पल मरती इच्छाओं पर,
तुम्हारे खोए व्यक्तित्व पर,
घर घर ऐसी ही होती है माँ,
तुम सुन रही हो ना माँ ?
इन्दु सिन्हा ”इन्दु”
रतलाम (मध्यप्रदेश)