Suramai Khwab
Suramai Khwab

सुरमई ख़्वाब

( Suramai Khwab )

 

शाख पे फूल मुहब्बत के खिलाने आजा।
मैं हूँ तेरी ये ज़माने को बताने आजा।।

रह के तन्हा यूँ सफर मुझ से न कट पायेगा,
ज़िंदगी भर के लिए साथ निभाने आजा।।

डूब जाऊँ न कहीं ग़म के भँवर में इक दिन,
मेरी  कश्ती को किनारे तू लगाने आजा।।

फ़ासले जान न लें लें कहीं इक दिन मेरी,
दूरियाँ जो भी हैं अब उनको मिटाने आजा।।

ये जुदाई की घड़ी अब न सहेगी ममता,
सुरमई ख्वाब निगाहों में सजाने आजा।।

 

डाॅ ममता सिंह
( मुरादाबाद )
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