सूर्य उपासना | Surya upasana kavita
सूर्य उपासना
( Surya upasana )
हे सूर्यदेव दिनकर देव रवि रथ पर होकर सवार
ओज कांति प्रदाता तुम्ही आदित्य हरते अंधकार
सारी दिशाएं आलोकित किरणें प्रकाशित करती
नव भोर उमंगे सृष्टि में प्रभायें प्रभावित करती
सारे जगत में ऊर्जा का नव शक्ति का भंडार हो
सकल चराचर जगत में प्रगति का आधार हो
नीयति चक्र चले तुमसे उजियारा तुमसे पाते हैं
यश कीर्ति वैभव सारे भास्कर तुम्हीं से आते हैं
चलते रहने का संदेशा सारी दुनिया को देते हो
दिव्य ज्योति किरणों से संकट सारे हर लेते हो
बुद्धि विवेक ज्ञानदाता शक्ति बल साहस भरते हो
घट घट में उजियारा कर रोग दोष सब हरते हो
वंदन हे आलोक निधि आदित्य शत शत वंदन है
मार्गदर्शक पथ प्रदर्शक दिवाकर शुभ अभिनंदन है
कवि : रमाकांत सोनी
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )
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