स्वामी- विवेकानंद

( Swami Vivekananda )

 

भारत यश फैलाने ने जग में,
ऐसा पूत सपूत हुआ ।
12 जनवरी 1863 में,
पैदा एक अवधूत हुआ।

 

विश्वनाथ दत्ता थे पिता ,
और भुनेश्वरी थी महतारी।
कोलकाता थी जन्मस्थली,
हर्ष हुआ जन-जन भारी ।।

 

चंचल बालक नाम नरेंद्र,
हमजोली सरताज थे।
कुश्ती लाठी मुक्केबाजी,
हर दिल के हमराज थे।।

 

साहित्य कला गणित विज्ञान,
अभिनय में प्रवीण हुए।
इतिहास दर्शन अंग्रेजी में,
वो ज्ञानी और गंभीर हुए ।।

 

मानव से महामानव बनता,
हर बाधा जो सहता है।
अग्नि में तप कर सोने का,
कुंदन सा रूप संवरता है।।

 

उसी तरह नर इंद्र में,
औचक विपदा आती है।
साया सिर से उठा पिता का
,माता भी स्वर्ग सिधाती है।।

 

इस दुख से दिल उद्विग्न हो,
मन ईश्वर में लग जाता है।
गुरु रामकृष्ण सा पा करके,
अध्यात्म से जुड़ जाता है।।

 

मानस पुत्र बन कर उनका,
तब नाम विवेकानंद हुआ।
धर्म कर्म का मर्म जगा,
जन सेवा सचिदानंद हुआ।।

 

अमेरिका के शिकागो में ,
भारत परचम लहरा दिया।
शुन्य से ब्रह्मांड बना,
वेदों का सार बता दिया।।

 

क्या है हिंदू क्या है हिंदी ,
समझे सब नर नारी है ।
वसुधा को परिवार समझते,
यही संस्कृति हमारी है।।

?

कवि : सुरेश कुमार जांगिड़

नवलगढ़, जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

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