स्वामी- विवेकानंद | Swami Vivekananda Par kavita
स्वामी- विवेकानंद
( Swami Vivekananda )
( 3 )
कोलकाता के कुलीन कयस्थ परिवार में पुत्र उत्पन्न हुआ।
पिता विश्वनाथ दत्त,माता भुनेश्वरी देवी जग में महान थी,
जिसके घर में स्वयं विश्व धर्म मार्गदर्शन गुरू प्रकट हुआ।।
देशभक्त सन्यासी बनकर मातृभूमि का नमन करू जो,
सारे जीवों में स्वयं परमात्मा का अस्तित्व है वंदन करे जो।
बचपन से ही ईश्वर प्राप्ति की लालसा बलवती रही हो,
धर्मशास्त्र,वेदांग,उपनिषदों का,मन से अध्ययन किए जो।।
गुरु के प्रति प्रेम देखकर रामकृष्ण परमहंस को मान हुआ,
महान व्यक्तित्व नींव में गुरुभक्ति,गुरुसेवा में तल्लीन हुआ।
जाति-धर्म को मिटाना चाहा युवाओं का वो इक सन्यासी,
जो देशभक्त,महान वक्ता, महान सन्यासी, मातृभक्त हुआ।।
भारत भूमि को ऋषि मुनियों ने जप-तप करके धन्य बनाया,
संसार में सर्वप्रथम बन संपूर्ण विश्व में धर्म ध्वजा फहराया।
25 वर्ष की अवस्था में गेरुआ वस्त्र धारण कर यात्राएं की,
पैदल गांव घूमकर अपने को गरीबों का सेवक बतलाया।।
प्रभात सनातनी “राज” गोंडवी
गोंडा,उत्तर प्रदेश
( 2 )
वेदांत ज्ञान अद्भुत प्रबोधन,
सह्रदय मानवता श्री वंदन ।
सनातन धर्म ध्वज पताका,
वैश्विक पटल अनूप मंडन ।
युग युगांतर नैतिक उपदेश,
दर्शन अंतर अनुभूत आनंद ।
प्रेरणा पुंज व्यक्तित्व,स्वामी विवेकानंद ।।
दृढ़ संकल्प लक्ष्यबद्ध कर्म ,
सकारात्मक सोच आह्वान ।
आशा उमंग अंतर हिलोरित,
कर्मयोग सह साधना ध्यान ।
स्नेह प्रेम मर्यादा अहम,
संबंध पटल अपनत्व छंद ।
प्रेरणा पुंज व्यक्तित्व, स्वामी विवेकानंद ।।
आरोग्यता आत्म विश्लेषण,
सफलता प्राप्य मुख्य बिंदु ।
परास्त नित्य संघर्ष बाधा,
साहस आत्मविश्वास मित्र बंधु ।
धर्म रक्षा दृढ़ प्रतिज्ञा शीर्ष,
सकारात्मकता विमुक्त हर फंद।
प्रेरणा पुंज व्यक्तित्व, स्वामी विवेकानंद ।।
चिंतन मनन भाव तरंगिणी,
पुरुषार्थ पथ दिव्य गमन।
जोश उत्साह धैर्यता ध्येय,
नैराश्य वैमनस्य मूल शमन ।
विस्तार जीवन संकुचन मृत्यु,
आत्मर्पण ज्योत गुरुत्व सुगंध ।
प्रेरणा पुंज व्यक्तित्व,स्वामी विवेकानंद ।।
( 1 )
भारत यश फैलाने ने जग में,
ऐसा पूत सपूत हुआ ।
12 जनवरी 1863 में,
पैदा एक अवधूत हुआ।
विश्वनाथ दत्ता थे पिता ,
और भुनेश्वरी थी महतारी।
कोलकाता थी जन्मस्थली,
हर्ष हुआ जन-जन भारी ।।
चंचल बालक नाम नरेंद्र,
हमजोली सरताज थे।
कुश्ती लाठी मुक्केबाजी,
हर दिल के हमराज थे।।
साहित्य कला गणित विज्ञान,
अभिनय में प्रवीण हुए।
इतिहास दर्शन अंग्रेजी में,
वो ज्ञानी और गंभीर हुए ।।
मानव से महामानव बनता,
हर बाधा जो सहता है।
अग्नि में तप कर सोने का,
कुंदन सा रूप संवरता है।।
उसी तरह नर इंद्र में,
औचक विपदा आती है।
साया सिर से उठा पिता का
,माता भी स्वर्ग सिधाती है।।
इस दुख से दिल उद्विग्न हो,
मन ईश्वर में लग जाता है।
गुरु रामकृष्ण सा पा करके,
अध्यात्म से जुड़ जाता है।।
मानस पुत्र बन कर उनका,
तब नाम विवेकानंद हुआ।
धर्म कर्म का मर्म जगा,
जन सेवा सचिदानंद हुआ।।
अमेरिका के शिकागो में ,
भारत परचम लहरा दिया।
शुन्य से ब्रह्मांड बना,
वेदों का सार बता दिया।।
क्या है हिंदू क्या है हिंदी ,
समझे सब नर नारी है ।
वसुधा को परिवार समझते,
यही संस्कृति हमारी है।।
कवि : सुरेश कुमार जांगिड़
नवलगढ़, जिला झुंझुनू
( राजस्थान )