अनबन

Kavita | अनबन

अनबन ( Anban )   ** बदल गए हो तुम बदल गए हैं हम नए एक अंदाज से अब मिल रहे हैं हम। ना रही वो कसक ना रही वो ठसक ना रहे अब बहक औपचारिकता हुई मुस्कुराहट! चहक हुई काफूर बैठे अब तो हम दूर दूर! जाने कब क्यूं कैसे चढ़ी यह सनक? मिलें…

नारी व्यथा

Kavita | नारी व्यथा

नारी व्यथा ( Nari Vyatha )   मेरे हिस्से की धूप तब खिली ना थी मैं भोर बेला से व्यवस्था में उलझी थी हर दिन सुनती एक जुमला जुरूरी सा ‘कुछ करती क्यूं नहीं तुम’ कभी सब के लिए   फुलके गर्म नरम की वेदी पर कसे जाते शीशु देखभाल को भी वक्त दिये जाते…

अबोध

Kavita | अबोध

अबोध ( Abodh ) बहुत अच्छा था बचपन अबोध, नहीं  था  किसी  बात का बोध। जहाॅ॑  तक  भी  नजर जाती थी, सूझता था सिर्फ आमोद -प्रमोद।   निश्छल मन क्या तेरा क्या मेरा, मन लगे सदा जोगी वाला फेरा। हर  ग़म मुश्किल से थे अनजान मन  में  होता  खुशियों का डेरा।   हर  किसी  में …

पत्रकार हूँ पत्रकार रहने दो

Kavita | पत्रकार हूँ पत्रकार रहने दो

पत्रकार हूँ पत्रकार रहने दो ( Patrakar Hoon Patrakar Rahne Do ) ******* लिखता हूं कलम को कलम कागज़ को काग़ज़ ग़ज़ल को ग़ज़ल महल को महल तुम रोकते क्यों हो? टोकते क्यों हो? चिढ़ते क्यों हो? दांत पीसते क्यों हो? मैं रूक नहीं सकता झुक नहीं सकता बिक नहीं सकता आजाद ख्याल हूं अपनी…

वृक्ष की पीड़ा

Vriksh Ki Peeda | वृक्ष की पीड़ा

वृक्ष की पीड़ा ( Vriksh Ki Peeda )    काटकर मुझे सुखाकर धूप में लकड़ी से मेरे बनाते हैं सिंहासन वार्निश से पोतकर चमकाते हैं वोट देकर लोग उन्हें बिठाते हैं वो बैठ कुर्सी पर अपनी किस्मत चमकाते हैं, बघारते हैं शोखी, इठलाते हैं; हर सच्चाई को झुठलाते हैं। मोह बड़ा उन्हें कुर्सी का नहीं…

शिव-स्तुति

Shiv Stuti | शिव-स्तुति

शिव-स्तुति ( Shiv Stuti ) ऐसे हैं गुणकारी महेश। नाम ही जिनका मंगलकारी शिव-सा कौन हितेश।।   स्वच्छ निर्मल अर्धचंद्र हरे अज्ञान -तम- क्लेश। जटाजूट में बहती गंगा पवित्र उनका मन-वेश।।   त्रिगुण और त्रिताप नाशक त्रिशूल धारे देवेश।। त्रिनेत्र-ज्वाला रहते काम कैसे करे मन में प्रवेश।।   तमोगुणी क्रोधी सर्प, रखते वश, देते संदेश।…

ये क्या हो रहा है

Kavita | ये क्या हो रहा है

ये क्या हो रहा है  ( Ye Kya Ho Raha Hai )     घर से बाहर निकल कर देखिए- मुल्क़ में ये क्या हो रहा है, सबका पेट भरने वाला आजकल सड़कों पर भूखे पेट सो रहा है । मुल्क़ में ये…   खेतों की ख़ामोशियों में काट दी जिसने अपनी उम्र सारी, बुढ़ापे…

कैसा दौर जमाने आया

Ghazal | कैसा दौर जमाने आया

कैसा दौर जमाने आया ( Kaisa Daur Jamane Aya )   कैसा   दौर   जमाने   आया। लालच है हर दिल पे छाया।।   बात  कहां  वो अपनेपन की। सब कुछ लगता आज पराया।।   कोई  सच्ची  बात  न  सुनता। झूठ सभी के मन को भाया।।   कौन किसी से कमतर बोलो। रौब  जमाते  सब  को  पाया।।…

अनमोल धरोहर

Kavita अनमोल धरोहर

अनमोल धरोहर ( Anmol Dharohar )   बेटी हैं अनमोल धरोहर, संस्कृति और समाज की। यदि सभ्यता सुरक्षित रखनी, सींचो मिल सब प्यार से ।।   मां के पेट से बन न आई, नारी दुश्मन नारी की । घर समाज से सीखा उसने, शिक्षा ली दुश्वारी से।।   इच्छाओं को मन में अपने, एक एक…

धीरे-धीरे

Kavita धीरे-धीरे

धीरे-धीरे ( Dhire Dhire )     साजिश का होगा,असर धीरे-धीरे। फिजाँ में घुलेगा ,जहर धीरे-धीरे।   फलाँ मजहब वाले,हमला करेंगे, फैलेगी शहर में,खबर धीरे-धीरे।   नफरत की अग्नि जलेगी,हर जानिब, धुआँ-धुआँ होगा,शहर धीरे-धीरे।   मुहल्ला-मुहल्ला में,पसरेगा खौप, भटकेंगे लोग दर,बदर धीरे-धीरे।   सियासत के गिद्ध,मँडराने लगेंगे, लाशों पर फिरेगी,नज़र धीरे-धीरे। कवि : बिनोद बेगाना जमशेदपुर, झारखंड…