संसय | Kavita
संसय ( Sansay ) मन को बाँध दो दाता मेरे,मेरा मन चंचल हो जाता है। ज्ञान ध्यान से भटक रहा मन,मोह जाल मे फंस जाता है। साध्य असाध्य हो रहा ऐसे, मुझे प्रेम विवश कर देता है। बचना चाहूं मैं माया से पर, वो मुझे खींच के ले जाता है। वश में…
संसय ( Sansay ) मन को बाँध दो दाता मेरे,मेरा मन चंचल हो जाता है। ज्ञान ध्यान से भटक रहा मन,मोह जाल मे फंस जाता है। साध्य असाध्य हो रहा ऐसे, मुझे प्रेम विवश कर देता है। बचना चाहूं मैं माया से पर, वो मुझे खींच के ले जाता है। वश में…
प्रतिशोध ( Pratishodh ) मै हार नही सकता फिर ये, जंग जीत दिखलाऊंगा। फिर से विजयी बनकर के भगवा,ध्वंजा गगन लहराऊगा। मस्तक पर चमकेगा फिर सें, चन्दन सुवर्णा दमकांऊगा। मै सागर जल तट छोड़ चुका पर,पुनः लौट कर आऊँगा। जी जिष्णु सा सामर्थवान बन, कुरूक्षेत्र में लौटूंगा। मैं मरा नही हूँ अन्तर्मन…
बरस बरस मेघ राजा ( Baras baras megh raja ) मेघ राजा बेगो आजा, बरस झड़ी लगा जा। सावन सुहानो आयो, हरियाली छाई रे। अंबर बदरा छाये, उमड़ घुमड़ आये। झूल रही गोरी झूला, बागा मस्ती छाई रे। रिमझिम रिमझिम, टिप टिप रिमझिम। बिरखा फुहार प्यारी, तन मन भाई रे। ठंडी…
आयी देखो फुहार सावन की ( Aayi dekho phuhaar sawan ki ) आयी देखो फुहार सावन की ! खिल रही है बहार सावन की बूंदों में सरगम उल्फ़त की ऐसी दिल करे बेक़रार सावन की प्यास तन की जाने बुझेगी कब कर रहा इंतिजार सावन की गीत गाये ग़ज़ल यादों…
राकेश शंकर भारती का उपन्यास 3020 ई. सम्भवत: हिंदी साहित्य का ऐसा पहला उपन्यास है जिसकी कल्पना का आधार विज्ञान है। आज से पूर्व हमने जितने उपन्यास पढ़े हैं वह एक परिपाटी से बंधे दिखायी देते हैं। एक कहानी जो आरंभ, उत्कर्ष, पराकाष्ठा से गुज़रती हुई फल को प्राप्त करती है। इसके अंतर्गत प्रेम कथाएँ,…
फिजाओं में जहर घोला जा रहा है ( Fizaon mein jahar ghola ja raha hai ) हवाओं में जहर घोला जा रहा है जंगलों को जड़ से काटा जा रहा है शहरों में ऑक्सीजन है नहीं फिर भी आलीशां महल बनाया जा रहा है। हम भला इंसाफ अब क्या करेंगे लगा के…
सशक्त बनो हे नारी तुम ( Sashakt bano he nari tum ) उठो नारी आंसू पौंछो खुद की कीमत पहचानो लाज का घूंघट ढाल बना लो अहंकार का तिलक लगा लो स्वाभिमान की तान के चादर खुद में खुद को सुदृढ बना लो उठो नारी आंसू पौंछो खुद की कीमत पहचानो ?☘️ अपनी शक्ति…
इस महफिल में न यादों की खुशबू आती है ( Is mehfil mein na yaadon ki khushboo aati hai ) ना पुराने इश्क पर चर्चा होती है। ना अब किसी की टांग खींची जाती है। ए मेरे दोस्त लगता है सब जिम्मो तले छोटी सी झपकी लेने चली जाती है। आओ ना यारों फिर…
बरसो मेघा प्यारे ( Barso megha pyare ) तपती रही दोपहरी जेठ की आया आषाढ़ का महीना धरा तपन से रही झूलसती सबको आ रहा पसीना कारे कजरारे बादल सारे घिर कर बरसो मेघा प्यारे क्षितिज व्योम में छा जाओ उमड़ घुमड़ कर आ जाओ मूसलाधार गरज कर बरसो रिमझिम बरस झड़ी…
हाँ खायी जीस्त में ठोकर बहुत है ( Haan khayi jeest mein thokar bahut hai ) हाँ खायी जीस्त में ठोकर बहुत है जिग़र पे इसलिए नश्तर बहुत है मुहब्बत का अपनें ने कब दिया गुल नफ़रत के ही मारे पत्थर बहुत है ! किसी को प्यार क्या देगे भला वो मुहब्बत…