Tanha Raat ki Duhai deti Hai

तन्हा रात की दुहाई देती है | Tanha Raat Shayari

तन्हा रात की दुहाई देती है!

( Tanha raat ki duhai deti hai )

 

तन्हा रात की दुहाई देती है!
रौशनी जब दिखाई देती है!

यूं उजालों से निस्बत है मेरी
खामुशि घर की रुस्वाई देती है!

कैसे जी लेते हैं तन्हा लोग होकर
हमसफर हिज्र से रिहाई देती है!

खुश हैं वो लगाके आग बस्ती में
चीख घर से उसे भी सुनाई देती है!

वो दौर था कलम से डरते थे हुक्मरा
हुकूमत ही अब रोशनाई देती है!

संग नहीं कुछ भी आमाल जाएगा
नेकियां ज़माने की शनासाई देती है!

रौशन दरखत हैं जबतक परिंदे यहां
भला पतझड़ में कब शैदाई देती है!!

 

 शायर: मोहम्मद मुमताज़ हसन
रिकाबगंज, टिकारी, गया
बिहार-824236

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