शिक्षक

( Shikshak ) 

 

भटके हुए राही को मंजिल का रास्ता दिखाया उन्होंने,

रोको न कदम बस बढ़ते रहो ये  सिखाया उन्होंने।

अपनी ज्ञान की ज्योति से एक सभ्यता को वह बो‌ कर चले,

कलम की धार से समाज के‌ प्रतिबिंब को पिरो कर चले,

गलतियों को सुधार गलत को पनपने से बचाया उन्होंने,

भटके हुए राही को मंजिल का रास्ता दिखाया उन्होंने।

राष्ट्र के खातिर वे आंखों में ख्वाब संजो कर चले,

रह‌ जाएं गर चूक पलके वे अपनी भिगो कर चले,

असफलता की चोट पर प्रेरणा का मरहम लगाया उन्होंने,

भटके हुए राही को मंजिल का रास्ता दिखाया उन्होंने।

 राजनीति कभी अर्थशास्त्र तो कभी जिंदगी की पुस्तक भी पढ़ाते चले,

आए न‌ आंच इसलिए अनुभव की आंच पर व्यक्तित्व को हमारे पकाते चले,

लड़खड़ाए गर हम‌ तो हौंसलो के पंखों को लगाया उन्होंने,

भटके हुए राही को मंजिल का रास्ता दिखाया उन्होंने।

कभी मां कभी मित्र कभी मसीहा के रूप में समझा कर चले,

कुछ कर गुजरने की इच्छा के उठते हुए धुएं को सुलगा कर चले,

ज़िन्दगी को ज़िन्दगी की तरह जीना सिखाया उन्होंने,

भटके हुए राही को मंजिल का रास्ता दिखाया उन्होंने।

 

Shiwani Swami

रचनाकार: शिवानी स्वामी

गाजियाबाद, ( उत्तर प्रदेश )

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