तीर बरसाता है पर नायक नहीं है
तीर बरसाता है पर नायक नहीं है
तीर बरसाता है पर नायक नहीं है
शायरी करता है संहारक नहीं है
अनकहे अध्याय इंसा क्या पढ़ेगा
ज़िंदगी जीता है संचालक नहीं है
वेदना ही वेदना है शायरी में
वृक्ष यह भी कोई फलदायक नहीं है
वो जो दौलत के लिए रिश्ते ही छोड़े
आदमी तो है मगर लायक़ नहीं है
उसको जनता ने चुना है अपना मंत्री
शख़्स जो सच्चा प्रजापालक नहीं है
देश का सेवक है वो सबसे अनूठा
कोई हिटलर जैसा अधिनायक नहीं है
यूँ सयानों की तरह अब सीख मत दे
दोस्त है तू मेरा अध्यापक नहीं है
जो उचित-अनुचित से वाक़िफ़ है वो मीना
हो किसी भी उम्र का बालक नहीं है

कवियत्री: मीना भट्ट सिद्धार्थ
( जबलपुर )
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