तेरी यादों के मेघों से | Teri Yaadon ke Meghon se
तेरी यादों के मेघों से
( Teri yaadon ke meghon se )
तेरी यादों के मेघों से ,हर निशा दिवस ही मंगल है ।
जो सीच रहा मन-मरुथल को ,वो मेघ सलिल गंगाजल है।।
वर्षों से बरखा रूठ गई ,इस मुरझाई फुलवारी से।
अब नील गगन को ताक रहे, मन मारे किस लाचारी से ।
कब भाग्य विधाता रीझ सके ,
उच्छवासों की अज्ञारी से ।।
जिस ओर दृष्टि जाती जग में, हर क्षितिज नयन में जंगल है।।
तेरी यादों के—–
जब हुईं पराजित आशायें,हर पग पर ही विश्वास छले।
घनघोर तिमिर में भी लेकिन, तेरी सुधियों के दीप जले।
मन भटक रहा सन्यासी सा ,तेरी निधियों की राख मले।
जो माँगोगे दे सकता हूँ ,यह उर वरदान कमंडल है।।
तेरी यादों के—–
अभिशापों भरे सरोवर में ,मीनों की भाँति मचलते हैं ।
तुमसे मिलने की चाहत में ,मन के विश्वास तड़पते हैं ।
आकर तो देखो प्राण कभी ,नयनों में नेह उमड़ते हैं ।
मैं श्वास श्वास महका दूँगा ,सीने में खिला कमलदल है।।
तेरी यादों के——
अब तक वैसे ही बिखरे हैं ,जो खेल-खिलौने तोड़ गये ।
उन पृष्ठों को कब तक बाँचें, जिन पन्नों को तुम मोड़ गये ।
अन्तस-वीणा में क्यों साग़र, विरही तारों को जोड़ गये ।
अब तक इन सूने पंथों पर ,मचती श्वासों में हलचल है ।।
तेरी यादों के—–
जो सीच रहा——