शीत का प्रथम स्पर्श
शीत का प्रथम स्पर्श
जब शीतल पवन ने कानों को छुआ,
आँगन में अलसाई धूप ने अंगड़ाई ली।
पत्तों पर ओस की मोती-सी बूंदें,
धरती ने मानो सर्द चादर ओढ़ ली।
सूरज भी अब मद्धम मुस्कुराने लगा,
दोपहर का आलस लंबे साए में छुपा।
हाथों में गर्म चाय की प्याली सजी,
संवेदनाओं का अंश हर कण में बसा।
पगडंडियों पर कोहरे की चादर बिछी,
गाँव की गलियों में धुएं की परछाई।
बुज़ुर्गों के ऊनी शॉल और अलाव के किस्से,
सर्दियों की इस ऋतु ने यादें जगाई।
हर सुबह नए रंग, नए एहसास लाती,
शीत की शुरुआत कुछ सिखा जाती।
सादगी में सिमटी प्रकृति की छवि,
जीवन को नए सिरे से परिभाषित कर जाती।

कवयित्री: श्रीमती बसंती “दीपशिखा”
प्रतिष्ठित लेखिका, सामाजिक चिंतक
अध्यापिका एवम् विभागाध्यक्ष
पता:- हैदराबाद, वाराणसी, भारत।
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