To Aur Kya Karte

तो और क्या करते | To Aur Kya Karte

तो और क्या करते

( To Aur Kya Karte )

वो अपना ग़म न छिपाते तो और क्या करते
नज़र न अपनी झुकाते तो और क्या करते

अज़ल से दुश्मनी पाले थे यार हमसे वो
हमारा दिल न जलाते तो और क्या करते

रवानी चाहती है ज़िंदगी हमारी भी
क़दम अगर न बढ़ाते तो और क्या करते

क़ज़ा जो आई थी अपने तो साथ लेने को
न हाथ उससे मिलाते तो और क्या करते

भड़क रही थी जो आतिश यहाँ पे नफ़रत की
अगर न उसको बुझाते तो और क्या करते

हुए थे ख़्वाब हमारे सभी मुकम्मल यूँ
हिना को गर न रचाते तो और क्या करते

ज़मीर बेचना आता न था तो इस दिल को
कि खाली हाथ न आते तो और क्या करते

नये क़लम से लिखी थी नई ग़ज़ल मीना
सुनाने उनको न जाते तो और क्या करते

Meena Bhatta

कवियत्री: मीना भट्ट सि‌द्धार्थ

( जबलपुर )

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