Sone si Muskaan
Sone si Muskaan

सोने सी मुस्कान

( Sone si muskaan ) 

 

सूरज सबको बाँट रहा है सोने सी मुस्कान
कौन है जिसने बंद किये हैं सारे रोशनदान

हमने गीत सदा गाये हैं सत्य अहिंसा प्यार के
देख के हमको हो जाता है दुश्मन भी हैरान

ख़ुद्दारी भी टूट गई मजबूरी के हाथो से
दो रोटी की खातिर क्या क्या सहता है इन्सान

मैं मुफ़लिस हूँ जेब है खाली मँहगा है बाज़ार
कैसे अब त्यौहार मनाऊँ मुश्किल में है जान

सोच रहा हूँ चेहरे की हर सिलवट को धो डालूँ
बच्चों को होने लगती है सुख-दुख की पहचान

आज दुशासन दुर्योधन कौरव दल की ख़ैर नहीं
अर्जुन ने अब तान लिया है अपना तीर कमान

साग़र फूलों की ख़ुशबू अपने ज़हनो में रखिये
घेर लिए हैं नागफनी ने घर-घर में गुलदान

 

कवि व शायर: विनय साग़र जायसवाल बरेली
846, शाहबाद, गोंदनी चौक
बरेली 243003

 

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