तुझ तक पहुंचने की चाह
तुझ तक पहुंचने की चाह
कोई मिल जाए जो तुझ तक पहुंचा दे,
मेरे शब्द, मेरी सासें तुझ तक बहा दे।
कि तू जान ले, आज भी प्रेम वहीं खड़ा है,
तेरी राहों में, तेरी बाहों में, खुद को समेटे खड़ा है।
चाहत की लौ बुझी नहीं है अब तक,
तेरी यादों में जलती रही है अब तक।
तेरे बिना ये साँसें अधूरी सी हैं,
तेरी आहट की हलचल ज़रूरी सी है।
अगर ये हवा तुझ तक कोई संदेश ले जाए,
मेरी बेचैन धड़कनों का एहसास दे जाए।
तो तू जान ले, मैं आज भी वहीं खड़ा हूँ,
तेरी दहलीज पर, तेरी एक झलक को तरसा हूँ।

कवि : प्रेम ठक्कर “दिकुप्रेमी”
सुरत, गुजरात
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