तुम न जाओ

तुम न जाओ

तुम न जाओ

 

सूने उपवन में गहन घन प्रीति गाओ तुम न जाओ।।

मेरे अन्तर्मन अभी तुम रुक भी जाओ तुम जाओ।।

 

स्वाती बिन प्यासा पपीहा देखा होगा,

रात भर जगती चकोरी सुना होगा,

मैं तना हूं तुम लता बन लिपट जाओ तुम न जाओ।।तुम न०

 

प्रेम तो एक हवा का झोंका नहीं है,

ये बताओ हमने कब रोका नहीं है,

मेरे बहते आंसुओं पर तरस खाओ तुम न जाओ।।तुम न०

 

तुम मिले तो सोचा कि हर चीज पा ली,

जा रहे हो छोड़कर स्थान खाली,

मौन में मेरे सदा तुम नाद बनके गुनगुनाओ तुम न जाओ।।तुम न०

 

ऐ मेरे आलम्ब चेरी हूं तेरी तो

प्राण-पीड़ा औषधी तुम हो मेरी तो

शेष संग जीवन बिताओ मान जाओ तुम न जाओ।।तुम न जाओ

 

 

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कवि व शायर: शेष मणि शर्मा “इलाहाबादी”
प्रा०वि०-बहेरा वि खं-महोली,
जनपद सीतापुर ( उत्तर प्रदेश।)

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