तुम्हारा घर भी जल जाएगा |Tumhara ghar bhi jal jayega
तुम्हारा घर भी जल जाएगा
( Tumhara ghar bhi jal jayega )
तुम्हारा घर भी जल जाएगा ,
क्यों हो आग लगाते ।
नासमझ बन जाने की जिद,
उन्हे भला कैसे समझाते।
नाम तुम्हारा ही आता ,
बताओं कैसे जख्म दिखाते।
टूटती नहीं ख़ाबो की ताबीर,
मुझसे किया वादा कोई निभाते ।
रोना गर आया तो , बना लिए मोती ,
रूसवाई थी आंसु की , जो इन्हे गिराते ।
शायर: गौतम वशिष्ठ
झुन्झुनूं (राजस्थान)