तुम्हारे बाद | Tumhare Baad
तुम्हारे बाद
( Tumhare Baad )
साँसें थमी हैं ख़त्म भी किस्सा तुम्हारे बाद
बिखरा है मेरा जिस्म सरापा तुम्हारे बाद
कतरे से हो गए हैं समुंदर तवील से
ख़ुद पे रहा न हमको भरोसा तुम्हारे बाद
कैसे सुनाएं बज़्म में क़िस्सा-ए-इश्क़ हम
शाइर बना है दिल ये हमारा तुम्हारे बाद
मझधार में खड़े हैं मनाज़िर अजीब हैं
कैसे मिले बताओ किनारा तुम्हारे बाद
ख़्वाबों की किरचियाँ हैं, मेरी चश्मे-नम में कुछ,
तौबा, है महवे-यास, तमन्ना तुम्हारे बाद।
हर सम्त तीरग़ी है अकेला है एक शख़्स
सूना -सा लग रहा ये दरीचा तुम्हारे बाद
तश्ते-मुराद भी तो है, मीना तही मेरा,
हर्गिज़ न बन सका कोई मेरा तुम्हारे बाद।
कवियत्री: मीना भट्ट सिद्धार्थ
( जबलपुर )
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